सोमवार, 14 नवंबर 2011

भ्रष्टाचार के तीन स्रोत

भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात करने से पूर्व भ्रष्टाचार की उत्पत्ति के कारण अथवा भ्रष्टाचार के स्रोतों का अध्ययन करना भी आवश्यक है. ताकि उन स्रोतों पर कुठाराघात किया जा सके और देश को भ्रष्टाचार मुक्त किया जा सके. सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाकर ही इस बुराई से लड़ना संभव होगा.भ्रष्टाचार के निम्नलिखित तीन मुख्य स्रोत हैं .
प्रथम;सरकारी कर्मी,सरकारी अधिकारी अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए, उसे मिली निर्णय शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए, आपके सही काम को भी गलत सिद्ध करने की धमकी देता है, और उसके बदले में रिश्वत की मांग करता है,या फिर आपके काम को अनावश्यक रूप से देर करने बात करता है ,जल्दी काम करवाने के लिए सेवा पानी की जरूरत बताता है.इस प्रकार के भ्रष्टाचार में सरकारी खाजने को कोई हानि तो नहीं पहुँचती परन्तु आपकी जेब पर डाका पड़ता है और सही काम के लिए घूस देना आपके लिए कुछ ज्यादा ही कष्ट दायक होता है.क्योंकि आपको कानून सम्मत काम के लिए भी जेब ढीली करने की मजबूरी जो है.
द्वितीय ;इस स्रोत द्वारा आपकी जेब पर तो डाका डाला ही जाता है,परन्तु सरकारी राजकोष को भी क्षति पहुंचाईजाती है,अर्थात या राजस्व को आने से रोका जाता है या फिर राजस्व को आवश्यकता से अधिक खर्च कर राजकोष को नुकसान पहुँचाया जाता है.लाभान्वित होते हैं आप या सरकारी कर्मी.इस प्रकार के भ्रष्टाचार में सरकारी अधिकारी,सत्ताधारी नेता राजकोष को चूना लगाकर अपने खजाने भरते हैं.जनता की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टेक्स को चंद लोग चाट कर जाते हैं.और जनता को विकास के नाम पर मिलता है सिर्फ आश्वासन .भ्रष्टाचार के इस स्रोत को विशालतम स्रोत कहा जा सकता है जिसके द्वारा हजारों करोड़ का फटका लगता है .जैसे किसी टैक्स की बसूली करते समय ताक्स्दाता को लाभ पहुँचाना,किसी अपराध में दंड की राशी को घटा दें या फिर ख़त्म कर देना,किसी प्रकार की खरीदारी ,किसी कार्य करने की निविदा जारी करते समय सेवा प्रदाता या बिक्रेता को लाभ पहुंचा कर अपना लाभ प्राप्त करना इत्यादि मुख्य स्रोत है.
तृतीय ;इस स्रोत से जनित भ्रष्टाचार का कारण सरकारी कर्मचारी नहीं बल्कि जनता स्वयं जिम्मेवार होती है.जब कोई व्यक्ति सरकारी कार्यालय में जाकर अपनी आवश्यकतानुसार कार्य कराने ,या अपने पक्ष में गैर कानूनी कार्यों को कराने के लिए सरकारी कर्मी को लालच देता है,उससे सौदेबाजी करता है,कभी कभी अपनी ताकत की धमकी देता है यहाँ तक की जान से मारने की चेतावनी भी दे देता है. ऐसी परिस्थिति में अक्सर सरकारी कर्मी अपने लालच में नहीं अपनी सुरक्षा से चिंतित होते हुए भ्रष्टाचार को गले लगाता है.
सभी प्रकार के भ्रष्टाचार इन्ही स्रोतों से उत्पन्न होते है. अतः यदि भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना है तो उपरोक्त माध्यमो को समझना होगा और उसी के अनुरूप पारदर्शिता को बढ़ाना होगा .
साभार-सत्यशील अग्रवाल 

और भी रूप हैं भ्रष्टाचार के

आज जब भी हम भ्रष्टाचार की बात करते हैं,तो अक्सर सरकारी कर्मचारियों द्वारा ली जाने वाली रिश्वत को ही लक्ष्य मानते हैं या समझते है. वास्तव में भ्रष्टाचार का रूप काफी व्यापक है. भ्रष्टाचार के मूल अर्थ है भ्रष्ट आचार अर्थात कोई भी अनैतिक व्यव्हार, गैरकानूनी व्यव्हार भ्रष्टाचार ही होता है. अतः सिर्फ नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किये जा सकते .आम जनता को भी अपने व्यव्हार में ईमानदारी,पारदर्शिता,शुचिता,मानवता जैसे गुणों को अपनाना होगा. आईये देखते हैं कैसे;
1. उचित मार्ग अर्थात नैतिकता और आदर्शों पर चलने वाले व्यक्ति को साधारणतया हम मूर्ख कहते है, अव्यवहारिक कहते हैं,कभी कभी बेचारा भी कहते हैं.
2. कोई भी सरकारी या गैरसरकारी कर्मचारी अपने कार्य के प्रति उदासीन रहता है ,जनता की समस्या को सुनने,समझने समाधान करने में कोई रूचि नहीं रखता.
3. दुकानदार नकली वस्तुओं को असली बता कर बेचता है,और अप्रत्याशित कमाई करता है.
4. उत्पादक नकली वस्तुओं या मिलावटी वस्तुओं का निर्माण करता है,उन्हें असली ब्रांड नाम से पैक करता है.
5. कोई भी जब दहेज़ की मांग पूरी न होने पर बहू को प्रताड़ित करता है उसके साथ हिंसक व्यव्हार करता है.
6. जब कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ छेड़खानी करता है, तानाकशी करता है.या दुर्व्यवहार करता है.
7. ऑफिस में,व्यवसाय में,कारोबार में कार्यरत मातहत महिला की विवशता का लाभ उठाते हुए उसका शारीरिक या मानसिक शोषण किया जाता है.
8. समाज में किसी के भी साथ अन्याय,दुराचार,अत्याचार किया जाता है.
9. चापलूसी कर कोई नौकरी हड़पना,या फिर अपने प्रोमोशन का मार्ग प्रशस्त करना भी भ्रष्टाचार का ही एक रूप है.
10. यदि कोई व्यक्ति योग्य है ,सक्षमहै ,कर्मठ है,बफादार है अर्थात सर्वगुन्संपन्न है परन्तु चापलूस नहीं है, इस कारण उसे प्रताड़ित किया जाना,दण्डित करना,अपमानित करना भी क्या भ्रष्टाचार का हिस्सा नहीं है?
11. अपने छोटे से लाभ की खातिर किसी दलाल,कमीशन एजेंट,व्यापारी द्वारा ग्राहक को दिग्भ्रमित करना और ग्राहक की बड़ी पूँजी को दांव पर लगा देना क्या भ्रष्टाचार का ही रूप नहीं है?
12. डाक्टर,इंजीनयर ,मिस्त्री,अपने लाभ के लिए अनाप शनाप बिल बना कर ग्राहक के साथ अन्याय करते हैं.
13. असंयमित आहार विहार अथवा असंतुलित खान पान द्वारा विभिन्न बिमारियों को आमंत्रित कर लेना भी भ्रष्टाचार का ही रूप है स्वयं अपने साथ अन्याय है .मदिरा पान,बीडी सिगरेट व अन्य नशीले पदार्थों का सेवन अपने शरीर पर अत्याचार है, भ्रष्टाचार है.
साभार-सत्यशील अग्रवाल