शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार

संसद का बजट सत्र प्रारंभ होने के एक सप्ताह पूर्व रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार के नए प्रकरण का खुलासा हुआ है, जिससे यूपीए सरकार के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने फिनमैकानिका से 2010 में करीब 3600 करोड़ रुपए में 12 अति सुरक्षित अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टरों की ख़रीदारी की थी। इनमें से तीन हेलीकाप्टर भारत आ चुके हैं, जबकि शेष 9 जून-जुलाई तक आने वाले थे। पर अब इस भ्रष्टाचार की खबर आने पर फिलहाल भारत सरकार ने हेलीकाप्टरों की अगली खेप के भारत उतरने पर रोक लगा दी है। ज्ञात हो कि फिनमैकानिका इटली की कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड की सहयोगी कंपनी है और इसमें 30 फीसदी हिस्सेदारी इटली की सरकार की है। अति विशिष्ट व्यक्तियों के लिए खरीदे गए इन हेलीकाप्टरों के सौदे में लंबे समय से आरोप लग रहे हैं कि इसमें रिश्वत का लेन-देन हुआ है। फिनमैकानिका के मुखिया गियूसेप्पे ओरसी के ख़िलाफ़ बीते कई महीनों से जांच चल रही थी। उन पर भारतीय अधिकारियों को लगभग 3 सौ करोड़ की रिश्वत देने का आरोप है। गियूसेप्पे ओरसी को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार के मामले में मिलान में गिरफ्तार किया गया है। भ्रष्टाचार के इस मामले में तीन अन्य लोगों को भी नजरबंद करके पूछताछ की जा रही है। माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार के इस मामले की गूंज इटली के आम चुनावों पर भी असर दिखाएगी। इटली में संसदीय चुनाव इसी 24-25 फरवरी को होने वाले हैं। यही वजह है कि इटली के प्रधानमंत्री मारियो मोंटी ने कहा कि सरकार इस कंपनी के प्रबंधन की जांच कर रही है।
रक्षा सौदों में दलाली और रिश्वतखोरी नयी बात नहींहै। दो-दो विश्वयुध्दों के बाद जिस तरह दुनिया के विकसित देशों की तर्ज पर विकासशील और पिछड़े देशों ने रक्षा बजट को बढ़ाना शुरु किया, उसमें भ्रष्टाचार के पनपने की पूरी गुंजाइश थी। सुरक्षा कारणों से बरती जा रही गोपनीयता ने दलाली की परंपरा को विकसित किया। हथियारों के सौदागरों को विकासशील विशेषकर तीसरी दुनिया के देशों में अच्छा-खासा बाजार मिल गया। इन देशों में येन-केन-प्रकारेण अपने रक्षा उत्पाद बेचने की तरकीबें आयुध निर्माताओं ने अपनायी। ताजा मामले में इसी प्रवृत्ति का एक और उदाहरण हमारे सामने आया है। फिनमैकानिका के साथ जो सौदा हुआ है, उसके तार ब्रिटेन तक से जुड़े हैं। इस सौदे के एक साल बाद ही इटली की मीडिया में ऐसी रिपोटर्ें आईं कि यूरोप में दो बिचौलियों को गिरफ्तार किया गया है जिन्होंने इस सौदे को कराने में अहम भूमिका निभाई है। इसके बाद यह रक्षा सौदा भी विवादों के घेरे में आ गया और इटली में इस मामले की जांच शुरू हुई। भ्रष्टाचार की ताली एक हाथ से नहींबजी, इसमें दूसरा हाथ भारत का है। अब तक इस बात का खुलासा नहींहुआ है कि भारत में रिश्वत लेने वाला अधिकारी कौन है, लेकिन 3 सौ करोड़ रूपयों की घूस दी गई है, तो किसी के खाते में तो यह रकम गयी ही है। कुछ उंगलियां पूर्व वायुसेना प्रमुख एस पी त्यागी की ओर उठी, लेकिन उन्होंने आरोपों से साफ इन्कार करते हुए कहा कि वे 2007 में सेवानिवृत्त हो चुके थे और यह सौदा 2010 में हुआ है। इधर रक्षामंत्री ए.के.एंटनी ने दोषियों को न बख्शने की बात कही है और मामले की जांच सीबीआई के हवाले सौंप दी है। भ्रष्टाचार साबित होने पर वे सौदा रद्द होने की संभावना भी जतला रहे हैं।
 भारत सरकार को ब्रिटेन और इटली की सरकारों से न्यायिक अड़चनों के कारण उनकी जांच प्रक्रिया की जानकारी नहींदी गई है, इसलिए सीबीआई अपनी सीमित जानकारी के आधार पर ही जांच कर रही है। उसकी जांच कब तक पूरी होती है और इसमें असली दोषी कभी पकड़ में आएंगे भी या नहीं, इस बारे में फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। किंतु रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार का एक और मामला उजागर होने पर अब यह विचार किया जाना जरूरी है कि देश हित के नाम पर बरती जा रही गोपनीयता से सचमुच लाभ हो रहा है या हम दोहरा नुकसान उठा रहे हैं। एक महंगे सौदे का और दूसरा भ्रष्टाचार के बढ़ने का। आयुध या तकनीकों की खरीदी में बिचौलियो को कब तक स्थान मिलता रहेगा और विदेशी कंपनियों से अरबों का सामान खरीदने की जगह हम स्वदेशी तकनीकी को विकसित करने में अधिक से अधिक धनराशि क्यों न खर्च करें, इस पर भी विचार होना चाहिए।
(साभार-देशबन्धु )