रविवार, 24 दिसंबर 2017

2जी घोटाला अगर हुआ ही नहीं, तो इन सवालों के जवाब कौन देगा?

इससे पहले कि 2जी घोटाला खबर बनती, देश की प्रमुख जांच एजेंसियां नामी-गिरामी गुनाहगारों को रिहाई दिलाने की कला में माहिर हो चुकी थीं. देश में घोटालों के सुखद अंत की भी परंपरा रही है.
इसके बावजूद बोफोर्स और कॉमनवेल्थ गेम्स घोटालों से इतर 2जी घोटाले ने देश में नीति निर्माण के तरीकों को झकझोड़ते हुए टेलिकॉम बाजार को पूरी तरह बदल दिया. वहीं 2जी मामले में दूसरा अपवाद है कि तथाकथित घोटाले की जांच कर रही सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय पूरी तरह से सरकारी मंत्रालयों से सामंजस्य रखते हुए उनके निर्देश पर काम कर रही थीं. लिहाजा, केन्द्र सरकार का भ्रष्टाचार के लिए जीरो टॉलरेंस का दावा यहां कोई मायने नहीं रखती.   
हालिया इतिहास में 2जी घोटाला संभवत: पहला मौका है जब अदालत को यह कहने में कोई गुरेज नहीं था कि अभियोजन पक्ष को यह नहीं पता था कि क्या साबित किया जाना है. लिहाजा जांच की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल के साथ-साथ यह तय है कि पूरी कोशिश दिशाहीन रही. वहीं हकीकत यह भी है कि 2जी मामले ने न सिर्फ राजनीतिक भूचाल लाने का काम किया बल्कि देश में टेलिकॉम क्रांति कि दिशा को भी पलटने का काम किया है.
यह पहला मौका है कि किसी कोर्ट को कहना पड़ा,'सभी आम धारणा पर चल रहे थे, अफवाह सच्चाई पर हावी थी. कोर्ट में किसी भी आरोप को साबित करने के लिए कोई साक्ष्य तक पेश नहीं किया गया.' वहीं सच्चाई यह भी है कि इन्हीं आरोपों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने आवंटित किए जा चुके 122 टेलिकॉम लाइसेंस को निरस्त करने का फैसला सुनाया. लेकिन सीबीआई ने पांच साल तक कोशिश करने के बाद भी एक आरोप को साबित करने के लिए भी पर्याप्त सुबूत एकत्र नहीं किया.
लिहाजा कुछ गंभीर सवाल...यदि यह घोटाला नहीं होता...
1. जिन निवेशकों ने 2012 में लाइसेंस गंवाया उनके नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है? नेता और अधिकारी क्लीनचिट पा चुके हैं. लिहाजा अब इंडस्ट्री को हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा? उन कर्मचारियों की भरपाई कौन करेगा जिन्होंने लाइसेंस रद्द होने के बाद अपनी नौकरी गंवा दी? हकीकत यही है कि 2जी के झटके से सुस्त पड़ा टेलिकॉम सेक्टर अभी तक अपनी रफ्तार नहीं पकड़ पाया है.
2. वैश्विक स्तर पर निवेश के ठिकाने के तौर पर भारत की स्थिति को 2जी घोटाले ने बुरी तरह प्रभावित किया है. इस घोटाले के बाद किसी भी मल्टीनैशनल टेलिकॉम कंपनी ने भारत का रुख नहीं किया है. जिन्होंने किया था वह 2012 में अपना लाइसेंस गवां बैठे और कभी न लौटने के लिए यहां से चले गए. लिहाजा, इसकी जिम्मेदारी किसके सर मढ़ी जाएगी?
3. इस पूरे विवाद में किसे फायदा पहुंचा? 2008 से पहले देश के टेलिकॉम सेक्टर में कुछ चुनिंदा कंपनियां थीं. लेकिन 2जी आवंटन ने सेक्टर में प्रतियोगिता का माहौल पैदा किया जिसके बाद देश में कॉल दरें लगातार कम होने की दिशा में आगे बढ़ीं. लेकिन 2012 में लाइसेंस रद्द होने के बाद सेक्टर में तीन से चार कंपनियां बचीं और टेलिकॉम सेक्टर का अधिकांश काम इन्हीं कंपनियों के पास सीमित हो गया. लिहाजा, प्रतियोगिता को खत्म करने के लिए कौन जिम्मेदार है?
4. इस 2जी घोटाले ने केन्द्र सरकार को स्पेक्ट्रम की नीलामी के जरिए अपना राजस्व बढ़ाने का मौका दिया. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि नीलामी प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है लेकिन इससे स्पेक्ट्रम की कीमतों में इजाफा हुआ और टेलिकॉम कंपनियों की जेब पर यह भारी पड़ने लगा. कंपनियों ने इस कीमत को तो वहन किया लेकिन बदलती टेक्नोलॉजी में वह अपने नेटवर्क को मजबूत करने का खर्च करने में विफल हो गईं. इसका नतीजा यह हुआ कि तेज गति और नए जेनरेशन के स्पेक्ट्रम के बावजूद देश में टेलिकॉम सर्विस खराब होने लगी. लिहाजा, बीते कुछ वर्षों में महंगी और घटिया टेलिकॉम सर्विस के लिए कौन जिम्मेदार है?
केन्द्र सरकार ने हाल ही में मंत्रियों का समूह का गठन किया है जिसे कर्ज में डूबी हुई टेलिकॉम कंपनियों को उबारने का काम करना है. भारतीय टेलिकॉम कंपनियों पर 4.85 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और यह कर्ज देश के बैंकों के लिए बड़ी चुनौती है. इसके अलावा टेलिकॉम कंपनियों को लगभग 3 लाख करोड़ रुपये आवंटित स्पेक्ट्रम के मद में केन्द्र सरकार को अदा करना है. लिहाजा, इन सवालों के साथ एक सवाल और पूछा जाना चाहिए. घोटाले में किसे फायदा हुआ यह सब पूछ रहे हैं लेकिन पूछा यह भी जाना चाहिए कि घोटाले से किसे फायदा पहुंचा?

साभार -अंशुमान तिवारी (आज तक)

11 बड़े घोटाले, जो लाए देश की राजनीति में भूचाल

 चारा घोटाले में शनिवार को अदालत ने अपने फैसला सुनाते हुए आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव समेत 16 लोगों को दोष करार दे दिया है। हालांकि ये पहला घोटाला नहीं है, जिसमें किसी राजनेता या कोई बड़ी हस्ती का नाम आया हो और उसे सजा मिली हो। आजादी के बाद से अबतक लगभग 40 घोटाले एेसे हुए, जिसने देश-दुनिया में तहलका मचा दिया। आइए हम आपको एेसे ही 11 बड़े घोटालों के बारे में बताते हैं, जिसने देश की राजनीति को हिलाकर रख दिया।
 
जीप घोटाला (1948)
देश में घोटाले आजादी के बाद से ही शुरू हो गए थे। इसकी शुरुआत जीप घोटाले से हुई। यह देश में होने वाला पहला घोटाला था। आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से 2000 जीपों को सौदा किया था। सौदा 80 लाख रुपए का था लेकिन इसमें केवल 155 जीप ही मिल पाई। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वीके कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई थी लेकिन 1955 में केस बंद कर दिया गया।
 
मारुति घोटाला (1974) 
इस घोटाले में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया था। इस घोटाले का खुलासा 1974 में हुआ था। मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ था। इस मामले में पैसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।
 
बोफोर्स घोटाला (1987)
1986 में स्वीडन की ए बी बोफोर्स कंपनी से 155 तोपें खरीदने का सौदा तय किया गया। कहा गया कि इस सौदे को पाने के लिए 64 करोड़ रुपये की दलाली दी गई थी। इसमें स्वीडन की एक कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी और ओटावियो क्वात्रोची  का नाम सामने आया था।
 
स्टॉक मार्केट (1992 व 2002)
स्टॉक माक्रेट में 10 साल के अंतराल में दो बड़े घोटाले हुए थे। पहला साल 1992 में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंकों का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब 5000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। इसके स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख ने स्टॉक मार्केट में 1,15,000 करोड़ रुपए का घोटाला किया। दिसंबर, 2002 में इन्हें गिरफ्तार किया गया।
 

यूरिया घोटाला (1996)
इस मामले में 26 मई, 1996 को 133 करोड़ रुपए घपले का मामला दर्ज हुआ था।नेशनल फर्टिलाइजर के एमडी सीएस रामकृष्णन ने कई अन्य व्यापारियों, जो कि नरसिम्हाराव के नजदीकी थे, के साथ मिलकर दो लाख टन यूरिया आयात करने के मामले में सरकार को 133 करोड़ रुपए का चूना लगाया। यह यूरिया कभी भारत तक पहुंच ही नहीं पाई। इसमें किसी को सजा नहीं हुई।
 

चारा घोटाला (1996)
साल 1996 में बिहार में हुआ यह उस समय का सबसे बड़ा घोटाला था। चारा घाटाले ने देश में सनसनी फैला दी थी, क्योंकि यह एेसा घोटाला था, जो एक-दो करोड़ रुपए से शुरू होकर अब 900 करोड़ रुपए तक जा पहुंचा है। इस घपले के सूत्रधार बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। आज इस चर्चित घोटाले में लालू यादव समेत कई लोगों को दोषी करार दिया गया है और 3 जनवरी को उन्हें सुनाई जाएगी।
 
आदर्श घोटाला (2002)
आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी ने गैर कानूनी तरीके से कोलाबा के आवासीय क्षेत्र नेवी नगर और रक्षा प्रतिष्ठान के आसपास इमारत का निर्माण किया। इस घोटाले का आरम्भ फरवरी 2002 में हुआ। यह योजना कारगिल युद्ध में शहीद हुए लोगों के परिवार वालों के लिए बनाई गई थी, जबकि इसके फ्लैट्स 80 फीसदी असैनिक नागरिकों को आवंटित किए गए। इस घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण नाम आने से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। 
 
स्टांप घोटाला (1995)
यह घोटाला भारत में हुए अब तक के घोटालों में कुछ न अलग और नया था। इसमें अब्दुल करीम तेलगी ने स्टांप की हेरा फेरी कर देश को 20 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया था। 1995 में तेलगी के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए गए लेकिन गिरफ़्तारी 2001 में ही हो सकी।
 
सत्यम घोटाला (2009)
सत्यम घोटाला कॉरपोरेट जगत में अबतक का सबसे बड़ा घोटाला बना, जो 7 जनवरी 2009 को सामने आया था। देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी सत्यम कंप्यूटर सर्विस ने रियल इस्टेट और शेयर मार्केट के जरिए देश को लगभग 14 हजार करोड़ की चपत लगाई। कंपनी के चेयरमैन रामालिंगा राजू ने लोगों को काफी समय तक अंधेरे में रखा और शेयर के सारे पैसे हजम कर लिए।
 
कॉमनवेल्थ घोटाला (2008)
इस घोटाले में खेल के नाम पर जमकर लूट-खसोट की गई थी। घोटाले के सूत्रधार आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी और उनके सहयोगी रहे। 2008 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों के लिए राजधानी दिल्ली में आयोजन से विकासकार्य कराए, जिसमें जमकर बंदरबांट किया गया। इसमें करीब 70 हजार करोड़ का घपला सामने आया था।
 
2G घोटाला (2011)
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला भारत का एक बहुत बड़ा घोटाला है। यह साल 2011 की शुरुआत के दौरान प्रकाश में आया था। 1.76 लाख करोड़ के इस चर्चित घोटाले ने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी। इस घोटाले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा पर गाज गिरी। हालांकि सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 21 दिसंबर 2017 को घोटाले के सभी आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है।

साभार- पंजाब केशरी

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

सीएपीडी के 147 कर्मचारियों की संपत्ति व बैंक खाते सील

उपभोक्ता मामले एवं जनवितरण (सीएपीडी) विभाग में आए दिन होने वाले राशन घोटालों और लंबी जांच प्रक्रिया पर कड़ा संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने विभाग के 147 आरोपी कर्मचारियों की संपत्ति व बैंक खाते सील करने का निर्देश दिया है। बेंच ने कहा है कि अगली सुनवाई तक ये कर्मचारी अपनी चल-अचल संपत्ति से छेड़छाड़ न करें और न ही बैंक खातों में कोई लेनदेन करें। बेंच ने इन कर्मचारियों और उनके पति-पत्नी, भाई-बहन व बच्चों के नाम चल-अचल संपत्ति व उनके बैंक खातों का ब्योरा भी मांगा है।
बेंच ने विभाग के कमिश्नर सेक्रेटरी को सभी कर्मचारियों को नोटिस जारी करने को कहा, ताकि आरोपियों की जवाबदेही तय की जा सके। बेंच ने विभाग को एक सप्ताह के भीतर इन सभी 147 कर्मचारियों व अधिकारियों के नाम समाचार पत्रों में भी प्रकाशित करने का निर्देश दिया है।
बेंच ने यह महत्वपूर्ण व दूरगामी निर्देश विभाग में जारी राशन घोटालों पर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए। बेंच ने पाया कि इस जनहित याचिका में अभी तक हुई सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आए हैं कि विभाग में करोड़ों रुपये के राशन घोटाले हुए। कुछ मामलों में क्राइम ब्रांच जांच कर रही है और आरोपी सस्पेंड हैं, लेकिन सरकार ने राशन घोटाले से हुए नुकसान की वसूली करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। बेंच ने पाया कि सुनवाई के दौरान जो स्टेटस रिपोर्ट पेश हुई, उनके अनुसार कश्मीर डिवीजन में 88 कर्मचारी इन घोटालों में संलिप्त पाए गए, जबकि जम्मू डिवीजन में 57 कर्मचारियों पर राशन घोटाले का आरोप है।
बेंच ने पाया कि कश्मीर डिवीजन में अब्दुल राशिद नामक कर्मचारी पर ही 71,18,704.68 रुपये के राशन घोटाले का आरोप है। इसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन सरकार ने वसूली करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। बेंच ने पाया कि ऐसे दर्जनों मामले हैं। बेंच ने कहा कि यह जरूरी है कि इन आरोपियों की जवाबदेही तय की जाए और इनसे वसूली करने की दिशा में भी कदम उठाए जाएं।
साभार- जागरण

बाबू सिंह कुशवाहा की 60 करोड़ की सम्पत्ति जब्त

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले में जेल की सलाखों के पीछे कैद बसपा सरकार के कद्दावर मंत्री और अब सपा की शरण में गए बाबू सिंह कुशवाहा को एक और तगड़ा झटका लगा है। प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने कुशवाहा की नकदी समेत करीब साठ करोड़ रुपये की सम्पत्ति जब्त की है। यह कार्रवाई बांदा, लखनऊ, नोएडा और दिल्ली में की गयी है। इस सम्पत्ति में करीब पांच प्रतिशत हिस्सेदारी देवरिया जिले के पूर्व विधायक राम प्रसाद जायसवाल की है। इडी अब कुशवाहा के खिलाफ मुकदमा चलायेगा।
एनआरएचएम घोटाले में कुशवाहा की गिरफ्तारी के बाद सीबीआइ की रिपोर्ट के आधार पर इडी ने वर्ष 2012 में उनके खिलाफ जांच पंजीकृत की। करीब दो साल की छानबीन के बाद इडी ने पाया कि कुशवाहा ने अपने एजेंटों, नौकरों और सहयोगियों के नाम काफी सम्पत्ति बनाई। जांच की अवधि में इडी ने दो सौ से अधिक लोगों से पूछताछ की और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद कार्रवाई की। कुशवाहा के खिलाफ पहले चरण की बड़ी कार्रवाई करते हुए इडी ने काफी सम्पत्ति जब्त की है। इसमें कुशवाहा का बैंक में जमा 7.30 करोड़ रुपये भी है। इडी से मिली जानकारी के मुताबिक कुशवाहा की बांदा स्थित तथागत शिक्षा समिति तथा भगवत प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट के भवन जब्त किये गये हैं। राजधानी के गौरी में उनकी सात एकड़ की महंगी जमीन भी जब्त की गयी है। नोएडा में औद्योगिक क्षेत्र की जमीनों के साथ ही दिल्ली और लखनऊ के दो फ्लैट्स भी इडी ने जब्त किये हैं। लखनऊ के फ्लैट्स कालिदास मार्ग चौराहा और पार्क रोड स्थित बहुमंजिला रिहायशी अपार्टमेंट में है, जबकि दिल्ली के पॉश इलाके में भी उनका फ्लैट है। फेक नाम से बनाई गयी इन सम्पत्तियों के जब्त होने से उनके कई साझीदारों के होश उड़ गए हैं।
इडी की अदालत में चलेगा मुकदमा : बाबू सिंह कुशवाहा की जब्त की गयी सम्पत्ति का मुकदमा दिल्ली स्थित इडी की न्यायिक अथारिटी में चलेगा। इस सम्पत्ति को सही रास्ते से हासिल करने संबंधी साक्ष्य दिए जाने का कुशवाहा को मौका मिलेगा। अगर अथारिटी ने कुशवाहा के पक्ष में फैसला नहीं दिया तो यह सारी सम्पत्ति नीलाम कर दी जायेगी।
मुकद्दर ने ला दिया फिर उसी मुकाम पर
यह वक्त का तकाजा है कि बांदा के अतर्रा में लकड़ी का टाल लगाकर अपनी रोजी-रोटी शुरू करने वाले बाबू सिंह कुशवाहा का तकदीर ने साथ दिया तो वह बुलंदियों पर पहुंच गए। बसपा शासन में मिनी मुख्यमंत्री के तौर वह एक हस्ताक्षर बन गए, लेकिन एनआरएचएम घोटाले से तकदीर ने ऐसी पलटी मारी कि फिर वह उसी मुकाम पर आ गए। जिस धन और वैभव के लिए उन्होंने भ्रष्टाचार को अपनी परछाई बना लिया, अब वह भी रेत की तरह मुट्ठी से फिसलने लगा है।
इडी द्वारा साठ करोड़ की सम्पत्ति जब्त किये जाने के बाद बाबू सिंह कुशवाहा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। कयास यही लग रहा है कि अभी उनकी बहुत सी बेनामी सम्पत्तियां जब्त होंगी। पिछले डेढ़ दशक से सुर्खियों में रहे कुशवाहा ने कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें ऐसे दिन देखने पड़ेंगे। कांशीराम के सम्पर्क में आने के बाद फर्श से अर्स तक पहुंचे कुशवाहा बबेरू तहसील के पखरौली गांव में कृषक परिवार से हैं। उन्होंने अतर्रा से ही हाईस्कूल व इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। पांच भाइयों के परिवार में आर्थिक संकट देखकर बाबू सिंह ने अतर्रा में 1986 में लकड़ी का टाल खोल लिया। आइआरडी कंपोनेंट योजना के अंतर्गत बैंकों से मिलकर लोन भी कराने लगे। बसपा के कुछ नेताओं से संपर्क होने के बाद 1988 में बाबू सिंह की मुलाकात कांशीराम से हुयी। दिल्ली कार्यालय में ही बाबू सिंह को संगठन के कार्य की जिम्मेदारी दे दी गयी। यहीं से उनका राजनैतिक सफर शुरू हो गया। इसके बाद लखनऊ बसपा कार्यालय में काम किया फिर बांदा में बसपा जिलाध्यक्ष पद भी 1993 में संभाला। 1994 में ये बसपा सुप्रीमो मायावती के संपर्क में आये। काम के प्रति निष्ठा से नजदीकियां बढ़ती गयी फिर इन्हें लगातार तीन बार विधान परिषद सदस्य नामित किया गया। पहली बार 2003 में पंचायती राज मंत्री का पद मिला। दोबारा सरकार बनी तो बाबू सिंह का कद और बढ़ा दिया गया। उनके पास खनिज, नियुक्ति विभाग, सहकारिता विभाग दिये गये। इतना ही नहीं सीएम के सबसे करीबी मंत्रियों में गिनती होने के साथ अफसरों में इनका खासा रौब और दबाव था। स्कूल, कालेज, जमीन के साथ अकूत संपति बनायी है।
साभार-जागरण कॉम  

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

स्मारक घोटाला: सिद्दीकी व कुशवाहा समेत 19 पर मुकदमा

सपा सरकार ने नए साल के पहले ही दिन अपने मुख्य विपक्षी बसपा की घेरेबंदी कर दी। सूबे के बहुचर्चित स्मारक घोटाले में पिछली बसपा सरकार के कद्दावर मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बाबू सिंह कुशवाहा और चहेते अफसरों समेत 19 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार समेत कई प्रमुख धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया है। इस मुकदमे के घेरे में कुल 199 आरोपी हैं। सतर्कता विभाग के महानिदेशक एएल बनर्जी के निर्देश पर बुधवार को देर शाम यह मुकदमा राजधानी के गोमतीनगर थाने में दर्ज किया गया।
इस मामले में वर्ष 2007 में प्रमुख पदों पर तैनात रहे तीन आइएएस अफसर तत्कालीन प्रमुख सचिव आवास और शहरी नियोजन मोहिन्दर सिंह, प्रमुख सचिव पीडब्लूडी रवीन्द्र सिंह और लखनऊ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष हरभजन सिंह और तत्कालीन प्रमुख अभियंता पीडब्लूडी और अब विधायक त्रिभुवन राम भी जांच के दायरे में होंगे। विवेचना के दौरान भूमिका के आधार पर इनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 30 नवंबर को सतर्कता विभाग को लोकायुक्त जांच के दस्तावेजों का परीक्षण कर मुकदमा दर्ज कराने का आदेश दिया था।
स्मारक घोटाले के आरोपी : उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान लखनऊ सेक्टर के निरीक्षक रामनरेश सिंह राठौर की तहरीर पर लखनऊ के गोमतीनगर थाने में 19 लोगों के खिलाफ धारा 409 (अमानत में खयानत) व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की 13 (1) डी और 13 (2) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
1- नसीमुद्दीन सिद्दीकी-पूर्व मंत्री
2. बाबू सिंह कुशवाहा-पूर्व मंत्री
3. सुहेल अहमद फारुखी-जेडी खनन
4. सीपी सिंह-पूर्व एमडी राजकीय निर्माण निगम (आरएनएन)
5.राकेश चन्द्रा-अपर परियोजना प्रबंधक आरएनएन
6. एके सक्सेना-अपर परियोजना प्रबंधक आरएनएन
7.केआर सिंह-इकाई प्रभारी, आरएनएन
8. राजीव गर्ग-स्थानिक अभियंता आरएनएन
9. एसपी गुप्ता-परियोजना प्रबंधक आरएनएन
10. पीके जैन-परियोजना प्रबंधक आरएनएन
11. एके अग्रवाल-परियोजना प्रबंधक आरएनएन
12. आरके सिंह-परियोजना प्रबंधक आरएनएन
13.बीडी त्रिपाठी-इकाई प्रभारी आरएनएन
14. मुकेश कुमार-परियोजना प्रबंधक आरएनएन
15.हीरालाल-परियोजना प्रबंधक आरएनएन
16.एसके चौबे-परियोजना प्रबंधक आरएनएन
17. एसपी सिंह-इकाई प्रभारी आरएनएन
18. एसके शुक्ला-इकाई प्रभारी आरएनएन
19. मुरली मनोहर-इकाई प्रभारी आरएनएन।
सिद्दीकी ने फैसलों का जिम्मेदार ठहराया था कैबिनेट को
इस घोटाले में फंसे पूर्व कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन से ईओडब्ल्यू के अफसरों ने जब एक-एक कर कई सवाल पूछे थे तो उनका जवाब था कि स्मारकों के निर्माण का फैसला बसपा सरकार में कैबिनेट के सदस्यों ने लिया था। उन्होंने वही किया जो कैबिनेट का फैसला था। नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा था कि स्मारकों के निर्माण के लिए बजट एलडीए और अन्य विभाग जो पास करके भेजते थे, उसे कैबिनेट ही पास करती थी।
अब शुरू होगी विवेचना
हमने बुधवार की शाम को मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया है। शासन की मंशा के अनुरूप यह कार्रवाई की गयी है। लोकायुक्त जांच की कुल 1200 पन्ने की रिपोर्ट के परीक्षण के बाद यह कार्रवाई की गयी है। मुकदमा दर्ज होने के बाद अब विवेचना की कार्रवाई शुरू होगी।
लखनऊ [जागरण ब्यूरो]।

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

425 करोड के घोटाले में फंसे अभिनेता बोमन ईरानी

बॉलीवुड अभिनेता बोमन ईरानी और उनका बेटा दानिश मुश्किलों में फंस गए है। बाप-बेटे पर 425 करोड के घोटाले का आरोप लगा है। इस मामले में मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा में शिकायतकर्ता गुरूप्रीत सिंह ने बोमन ईरानी और उनके बेटे दानिश पर 425 करोड के क्यूनेट घोटाले का मामला दर्ज करवाया है। वेबसाइट मनीलाइफ ने यह जानकारी दी। मामले में पूर्व बिलियर्ड चैंपियन माइकल फरेरा के खिलाफ भी केस दर्ज किया जा चुका है।
पिछले सप्ताह आर्थिक अपराध शाखा ने फरेरा और क्यू नेट के संस्थापक विजय ईश्वरन सहित 10 लोगों के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी किया था। जिनमें से 9 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। सूत्रों के मुताबिक दानिश के क्यूनेट से जुडे बैंक अकाउंट में 81 करोड रूपए का ट्रांजेक्शन हुआ है। बोमन ईरानी पर आरोप है कि क्यूनेट के कथित 425 करोड रूपए के घोटाले को उन्होंने प्रोमोट किया और लोगों को गुमराह किया।
फरेरा एक मल्टी-लेवल मार्केटिंग कंपनी क्यूनेट के 425 करोड रूपये के घोटाले से जुडे मामले में पुलिस के सामने हाजिर होने में नाकाम रहे थे। पुलिस ने उन्हें तीन हफ्ते पहले पूछताछ के लिए बुलाया था, लेकिन वे हाजिर नहीं हुए. इससे पहले इस सिलसिले में क्यूनेट के नौ टीम लीडरों को निवेशकों को धोखा देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। क्यूनेट पर अपने मल्टी लेवल मार्केटिंग के लिए प्रतिबंधित बाइनरी पिरामिड बिजनेस मॉडल के इस्तेमाल का भी आरोप है। 8/1/2014

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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार

संसद का बजट सत्र प्रारंभ होने के एक सप्ताह पूर्व रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार के नए प्रकरण का खुलासा हुआ है, जिससे यूपीए सरकार के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने फिनमैकानिका से 2010 में करीब 3600 करोड़ रुपए में 12 अति सुरक्षित अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टरों की ख़रीदारी की थी। इनमें से तीन हेलीकाप्टर भारत आ चुके हैं, जबकि शेष 9 जून-जुलाई तक आने वाले थे। पर अब इस भ्रष्टाचार की खबर आने पर फिलहाल भारत सरकार ने हेलीकाप्टरों की अगली खेप के भारत उतरने पर रोक लगा दी है। ज्ञात हो कि फिनमैकानिका इटली की कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड की सहयोगी कंपनी है और इसमें 30 फीसदी हिस्सेदारी इटली की सरकार की है। अति विशिष्ट व्यक्तियों के लिए खरीदे गए इन हेलीकाप्टरों के सौदे में लंबे समय से आरोप लग रहे हैं कि इसमें रिश्वत का लेन-देन हुआ है। फिनमैकानिका के मुखिया गियूसेप्पे ओरसी के ख़िलाफ़ बीते कई महीनों से जांच चल रही थी। उन पर भारतीय अधिकारियों को लगभग 3 सौ करोड़ की रिश्वत देने का आरोप है। गियूसेप्पे ओरसी को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार के मामले में मिलान में गिरफ्तार किया गया है। भ्रष्टाचार के इस मामले में तीन अन्य लोगों को भी नजरबंद करके पूछताछ की जा रही है। माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार के इस मामले की गूंज इटली के आम चुनावों पर भी असर दिखाएगी। इटली में संसदीय चुनाव इसी 24-25 फरवरी को होने वाले हैं। यही वजह है कि इटली के प्रधानमंत्री मारियो मोंटी ने कहा कि सरकार इस कंपनी के प्रबंधन की जांच कर रही है।
रक्षा सौदों में दलाली और रिश्वतखोरी नयी बात नहींहै। दो-दो विश्वयुध्दों के बाद जिस तरह दुनिया के विकसित देशों की तर्ज पर विकासशील और पिछड़े देशों ने रक्षा बजट को बढ़ाना शुरु किया, उसमें भ्रष्टाचार के पनपने की पूरी गुंजाइश थी। सुरक्षा कारणों से बरती जा रही गोपनीयता ने दलाली की परंपरा को विकसित किया। हथियारों के सौदागरों को विकासशील विशेषकर तीसरी दुनिया के देशों में अच्छा-खासा बाजार मिल गया। इन देशों में येन-केन-प्रकारेण अपने रक्षा उत्पाद बेचने की तरकीबें आयुध निर्माताओं ने अपनायी। ताजा मामले में इसी प्रवृत्ति का एक और उदाहरण हमारे सामने आया है। फिनमैकानिका के साथ जो सौदा हुआ है, उसके तार ब्रिटेन तक से जुड़े हैं। इस सौदे के एक साल बाद ही इटली की मीडिया में ऐसी रिपोटर्ें आईं कि यूरोप में दो बिचौलियों को गिरफ्तार किया गया है जिन्होंने इस सौदे को कराने में अहम भूमिका निभाई है। इसके बाद यह रक्षा सौदा भी विवादों के घेरे में आ गया और इटली में इस मामले की जांच शुरू हुई। भ्रष्टाचार की ताली एक हाथ से नहींबजी, इसमें दूसरा हाथ भारत का है। अब तक इस बात का खुलासा नहींहुआ है कि भारत में रिश्वत लेने वाला अधिकारी कौन है, लेकिन 3 सौ करोड़ रूपयों की घूस दी गई है, तो किसी के खाते में तो यह रकम गयी ही है। कुछ उंगलियां पूर्व वायुसेना प्रमुख एस पी त्यागी की ओर उठी, लेकिन उन्होंने आरोपों से साफ इन्कार करते हुए कहा कि वे 2007 में सेवानिवृत्त हो चुके थे और यह सौदा 2010 में हुआ है। इधर रक्षामंत्री ए.के.एंटनी ने दोषियों को न बख्शने की बात कही है और मामले की जांच सीबीआई के हवाले सौंप दी है। भ्रष्टाचार साबित होने पर वे सौदा रद्द होने की संभावना भी जतला रहे हैं।
 भारत सरकार को ब्रिटेन और इटली की सरकारों से न्यायिक अड़चनों के कारण उनकी जांच प्रक्रिया की जानकारी नहींदी गई है, इसलिए सीबीआई अपनी सीमित जानकारी के आधार पर ही जांच कर रही है। उसकी जांच कब तक पूरी होती है और इसमें असली दोषी कभी पकड़ में आएंगे भी या नहीं, इस बारे में फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। किंतु रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार का एक और मामला उजागर होने पर अब यह विचार किया जाना जरूरी है कि देश हित के नाम पर बरती जा रही गोपनीयता से सचमुच लाभ हो रहा है या हम दोहरा नुकसान उठा रहे हैं। एक महंगे सौदे का और दूसरा भ्रष्टाचार के बढ़ने का। आयुध या तकनीकों की खरीदी में बिचौलियो को कब तक स्थान मिलता रहेगा और विदेशी कंपनियों से अरबों का सामान खरीदने की जगह हम स्वदेशी तकनीकी को विकसित करने में अधिक से अधिक धनराशि क्यों न खर्च करें, इस पर भी विचार होना चाहिए।
(साभार-देशबन्धु )

रविवार, 2 सितंबर 2012

कोयले की कालिख

कोयले की कालिख कई दिग्गजों के चेहरे पर पुती है. सरकार चाहे एनडीए की रही हो या फिर यूपीए की, इससे कोयले की इस दलाली में सबने अपने मुंह काले किये हैं. इस काले सोने को लूटने में कोई पीछे नहीं रहा. एक वेब साईट ने जब इस पूरे मामले की पड़ताल की तो कई हैरतंगेज तथ्य सामने आये जिसमें कोयला खदानों को सिर्फ कागजों पर ही इधर उधर कर खदान हासिल करने वाली कंपनियों ने अरबों के वारे न्यारे कर लिए. यानि की कोयला खदान हासिल करने के बाद कुछ कम्पनियों ने कोयला खनन करने के बजाय मोटा मुनाफा लेकर खदानें बेच डाली. और तो और सरकार ने कोयला खदान आवंटित करते समय इन कम्पनियों के रिकॉर्ड भी नहीं देखे. अंधा बंटे रेवड़ी की तर्ज पर बंटी इन कोयला खदानों को ऐसी कम्पनियों तक को दे दिया गया जिनकी औकात सिर्फ एक लाख रुपये थी. यहाँ तक कि एक कम्पनी तो जिस दिन पंजीकृत हुई उसी दिन उसने कोयला खदान के लिए आवेदन भी कर दिया और उसे खदान भी आवंटित कर दी गई. यही नहीं आयुर्वेद दावा बनने वाली कम्पनी भी इस बंदर बाँट में हिस्सा लेने आ गई और उसे हिस्सा मिल भी गया. सीबीआई अब ये जांच कर रही है कि आखिर इस फॉर्मूले से कंपनियों को कितना फायदा हुआ. खास बात ये है कि इन कंपनियों को जरूरत से कहीं ज्यादा बड़ी कोयला खदान दी गईं. सवाल ये है कंपनियों को बैठे बिठाए मोटी कमाई करने का मौका दिया गया.
पहला राजः पुष्प स्टील और माइनिंग कंपनी
20 जुलाई 2010 को दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इस कंपनी का गठन 2 जून 2004 को हुआ. और इसी दिन दिल्ली से हजार किलोमीटर दूर कांकेर में इस कंपनी ने कच्चे लोहे की खदान के लिए आवेदन भी कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि ये कैसे संभव है. आवेदन में न तो तारीख लिखी गई और ना ही कंपनी से जुड़े कोई कागजात लगाए गए. जबकि नियमों के मुताबिक आवेदन करने वाली कंपनी को पिछले साल के इनकम टैक्स रिटर्न की कॉपी लगानी जरुरी है.
कोर्ट ने ये भी कहा कि आवंटन की शर्तों में साफ है कि कोयला खदान उसी कंपनी को मिलनी चाहिए जिसके पास माइनिंग का अनुभव हो. लेकिन ना तो पुष्प के पास खनन का कोई अनुभव था और ना ही कंपनी की माली हालत इतने बड़े प्रोजेक्ट के काबिल थी. आवेदन करते वक्त कंपनी का पेड अप कैपिटल सिर्फ 1 लाख रुपए था. सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कंपनी की मंशा सिर्फ आयरन और कोल ब्लॉक हासिल कर उससे मोटा मुनाफा कमाने की थी?
पुष्प स्टील ने 2004 में छत्तीसगढ़ सरकार के साथ 384 करोड़ रुपए के निवेश का करार किया. ये करार स्पांज आयरन प्लांट बनाने के लिए था. इसके लिए कंपनी ने 11 हेक्टेयर जमीन खरीदी और चीन की एक कंपनी को मशीनरी के लिए 22 लाख रुपए का एडवांस दिया. जी हां 384 करोड़ के प्लांट की मशीनरी के लिए 22 लाख रुपए का एडवांस. कंपनी का कुल निवेश 1 करोड़ 20 लाख था. लेकिन इसी आधार पर छत्तीसगढ़ सरकार ने 2005 में कंपनी को कच्चे लोहे के लिए माइनिंग लीज और प्रोस्पेक्टिव लीज दे दी.
इसके बाद कंपनी ने कोयला खदान के लिए आवेदन किया और उन्हें मध्य प्रदेश सरकार ने 2007 में 550 लाख टन कोयले वाला ब्रह्मपुरी ब्लॉक दे दिया. ये बताना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश दोनों जगह बीजेपी की सरकार थी. एक ऐसी कंपनी को सैकड़ों एकड़ की खदान दे दी गई जो दरअसल छोटी सी ट्रेडिंग फर्म थी. कंपनी ने अभी तक खनन का काम शुरू भी नहीं किया है.
दूसरा राज – सवालों के घेरे में धारीवाल ग्रुप
कोयले का खेल कुछ ऐसा था कि गुटखा बनाने वाली कंपनी धारीवाल ग्रुप को भी कोयला खदान मिल गई. धारीवाल इंफ्रा नाम की कंपनी ने स्पांज आयरन प्लांट लगाने के लिए जमीन खरीदी और इसी आधार पर उसे 22 नवंबर 2008 को गोड़खरी कोयला ब्लॉक दे दिया गया. लेकिन 7 महीने के भीतर ही 240 लाख टन का ब्लॉक रखने वाली धारीवाल इंफ्रा ही बिक गई. इसे गोयनका ग्रुप की कंपनी CESC ने करीब 300 करोड़ रुपए में खरीदा. मजे की बात ये है कि CESC एक बिजली कंपनी है. यानी स्टील के लिए दी गई कोयला खदान पॉवर कंपनी के हिस्से चली गई. और सरकार तमाशा देखती रही. अपनी सफाई में धारीवाल ग्रुप ने सिर्फ इतना कहा कि माइनिंग लीज मंजूर नहीं हो पाई है और भूमि अधिग्रहण में भी दिक्कत आ रही है.
तीसरा राज – नवभारत ग्रुप
विस्फोटक बनाने वाली कंपनी जिसे 13 जनवरी 2006 को स्पांज आयरन प्लांट लगाने के लिए मदनपुर नॉर्थ कोयला खदान दे दी गई. खुद का प्लांट न होने की वजह से नवभारत ने अपनी सहयोगी कंपनी के प्लांट के आधार पर आवेदन किया था.
उस प्लांट की क्षमता सालाना 3 लाख टन स्पांज आयरन के उत्पादन की थी. यानी हर साल कंपनी को तकरीबन 5 लाख टन कोयला की जरूरत थी. लेकिन सरकार ने उसे जो खदान दी – उसमें 3 करोड़ 60 लाख टन कोयला है. कुछ साल खदान पर कुंडली मार कर बैठने के बाद नवभारत ने अपनी कंपनी का 74 फीसदी शेयर किसी और को बेच दिया. यानी पूरी कंपनी ही बेच डाली गई. यानि कोयला बेचा किसी को लेकिन गया किसी और की झोली में.
चौथा राज – फील्ड माइनिंग एंड इस्पात लिमिटेड
इस कंपनी को 8 अक्टूबर 2003 को दो कोयला खदानें – चिनोरा और वरोरा वेस्ट दी गईं. दोनों खदानों को मिलाकर कोयला उत्पादन की कुल क्षमता थी 380 लाख टन. फील्ड माइनिंग की प्रोजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक उन्हें सालाना 2 लाख 60 हज़ार टन कोयले की जरूरत थी. इस कंपनी ने 5 साल यानी 2008 तक खदान पर कोई काम शुरू नहीं किया. उसने स्क्रीनिंग कमेटी के सामने कहा कि वो जल्द ही स्टील प्लांट खरीदने वाली है. आखिर 2010 में फील्ड माइनिंग एंड इस्पात लिमिटेड को KSK एनर्जी वेन्चर्स ने खरीद लिया. KSK वर्धा में 600 मेगावॉट का पॉवर प्लांट लगा रही है. अपनी सफाई में फील्ड माइनिंग एंड इस्पात लिमिटेड ने स्क्रीनिंग कमेटी को कहा कि उनकी कंपनी को लेकर कोर्ट का कोई फैसला आया है. इसलिए वो काम आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं.
पांचवां राज – बी एस इस्पात
बी एस इस्पात- 25 अप्रैल 2001 को विदर्भ की मरकी मंगली कोयला खदान बीएस इस्पात को दी गई. उनके पास 60 हजार टन का स्पांज आयरन प्लांट था. लेकिन उन्हें भी जरूरत से कहीं ज्यादा 343 लाख टन कोयले वाली खदान दे दी गई. उनकी जरूरत सालाना 1 लाख टन कोयला से ज्यादा नहीं थी. ये कंपनी 8 साल तक इस खदान पर यूं ही बैठी रही. 8 साल बाद कंपनी ने पर्यावारण क्लीयरेंस लेते वक्त कहा कि वो अपने प्लांट की क्षमता बढ़ाकर 1 लाख 84 हजार टन प्रति वर्ष करना चाहती है जिसके लिए उसे अब 3 लाख टन कोयले की सालाना जरुरत होगी. जानकारों का कहना है कि कंपनी ने जरूरत से कहीं बड़ी कोयला खदान पर पर्दा डालने की कोशिश में ऐसा किया था. अपनी सफाई में बी एस इस्पात ने साल 2010 में स्क्रीनिंग कमेटी को भरोसा दिलाया कि वो सितंबर 2010 तक कोयला उत्पादन शुरू कर देगी. लेकिन इसके बाद कंपनी ही बिक गई.
छठा राज – सवालों के घेरे में गोंडवाना इस्पात
बी एस इस्पात की ही एक और कंपनी गोंडवाना इस्पात को भी 2003 में माजरा ब्लॉक आवंटित किया गया. इनके प्लांट की क्षमता 1 लाख 20 हजार टन कोयले की थी लेकिन अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट में उन्होंने भी अपनी जरूरत 3 लाख टन प्रति वर्ष दिखाई. और कमाल देखिए उन्हें 315 लाख टन कोयले वाली खदान दे दी गई. यानि 100 साल तक की जरूरत आराम से पूरी. हम बता दें कि स्पॉन्ज आयरन प्लांट की औसत जिंदगी 30 साल की होती है. लेकिन अभी तक सबकुछ कागजों पर ही चल रहा था.
2008 में आकर गोंडवाना इस्पात का बी एस इस्पात में विलय हो गया. बाद में बीएस इस्पात को तीसरी कंपनी गरिमा बिल्डकॉर्प ने खरीद लिया और फिर 2011 में उसने ये कंपनी उड़ीसा सीमेंट लिमिटेड को बेच दी.
यानी न सिर्फ बी एस इस्पात ने खदान पर बैठने के बाद उसे मोटे मुनाफे में बेच दिया बल्कि खदान का एंड यूज भी बदल गया. फिर भी इन खदानों का आवंटन रद्द नहीं किया गया. आखिर क्यों? आखिर क्यों स्क्रीनिंग कमेटी और कोयला मंत्रालय सिर्फ कारण बताओ नोटिस जारी करते रहे. अपनी सफाई में गोंडवाना इस्पात ने कहा कि उनकी खदान का एक हिस्सा जंगल की जमीन पर पड़ता है इसलिए उन्हें वन विभाग की मंजूरी मिलने में दिक्कत आ रही है.
सातवां राज – सवालों के घेरे में वीरांगना स्टील कंपनी
वीरांगना स्टील कंपनी- 2005 में मरकी मंगली नंबर 2,3,4 खदानें इस कंपनी को दी गईं. इनके पास एक पुराना 60 हजार टन का स्टील प्लांट था, उसके लिए जो खदानें दी गईं उनकी क्षमता थी 190 लाख टन. फिर भी कंपनी ने पांच साल तक खनन शुरू नहीं किया. आखिरकार 2010 में कंपनी का नाम बदल कर टॉपवर्थ हो गया. इसके बाद क्रेस्ट नाम की कंपनी ने उसे खरीद लिया. यानी ये कंपनी दो बार बिक चुकी है. जाहिर है नागपुर की इस छोटी सी कंपनी की बोली इसलिए लगी क्योंकि इसके पास बड़े कोल ब्लॉक थे.
आठवां राज – सवालों के घेरे में वैद्यनाथ आयुर्वेद
आयुर्वेद उत्पाद बनाने वाली कंपनी वैद्यनाथ आयुर्वेद को भी 27 नवंबर 2003 में कोल ब्लॉक दिया गया. लेकिन 2010 तक भी ये कंपनी माइनिंग शुरू नहीं कर पाई. यहां तक कि स्क्रीनिंग कमेटी को ये कंपनी 2010 में भी ये भरोसा नहीं दिला पाई कि वो खुदाई कब शुरू करेगी और बिजली का उत्पादन कब शुरू होगा. 2011 में आकर आखिर 8 साल बाद स्क्रीनिंग कमेटी ने वैद्यनाथ को मिले कोल ब्लॉक को रद्द कर दिया. अपनी सफाई में वैद्यनाथ आयुर्वेद ने स्क्रीनिंग कमेटी को कहा कि माइनिंग प्लान को मंजूरी मिलने में देरी हो रही है क्योंकि कंपनी ने परियोजना का आकार बदल दिया है. साथ ही कंपनी में शेयर होल्डिंग पैटर्न भी बदल गया है.
उक्त आठ में से तीन मामले ऐसे हैं जब केंद्र में एनडीए की सरकार थी. इसमें से दो मामले विदर्भ के हैं. इस दौरान महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी. यानी राज्य में कांग्रेस और केन्द्र में बीजेपी. ठीक वैसे ही जैसे 2004 के बाद केन्द्र में कांग्रेस और छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी की सरकार है. क्या ऐसे में दोनों पार्टियों को कोल ब्लॉक आवंटन पर राजनीति करने का अधिकार है.

साभार-मीडिया दरबार

रविवार, 22 जनवरी 2012

जीप घोटाला



 स्वतन्त्र भारत का पहला घोटाला 
 सन् 1947 में देश को स्वतन्त्रता मिली और उसके साथ ही देश भारत और पाकिस्तान में बँट गया। उसके मात्र एक साल बाद यानी कि सन् 1948 में पाकिस्तानी सेना ने भारत की सीमा में घुसपैठ करना आरम्भ कर दिया उस घुसपैठ को रोकने के लिए भारतीय सैनिक जी-जान से जुट गए.  भारतीय सेना के लिए जीपें खरीदने का भार व्ही.के. कृष्णा मेनन को, जो कि उस समय लंदन में भारत के हाई कमिश्नर पद पर थे, सौंपा गया। जीप खरीदी के लिए श्री मेनन ने ब्रिटेन की कतिपय विवादास्पद कंपनियों से समझौते किये और वांछित औपचारिकताएँ पूरी किए बगैर ही उन्हें एक लाख 72 हजार पाउंड की भारी धनराशि अग्रिम भुगतान के रूप में दे दिया। उन कंपनियों को 2,000 जीपों के लिए क्रय आदेश दिया गया था किन्तु ब्रिटेन से भारत में 155 जीपों, जो कि चलने की स्थिति में भी नहीं थीं, की मात्र एक ही खेप पहुँची। तत्कालीन विपक्ष ने व्ही.के.कष्णा मेनन पर सन 1949 में जीप घोटाले का गंभीर आरोप लगाया। उन दिनों कांग्रेस की तूती बोलती थी और वह पूर्ण बहुमत में थी, विपक्ष में नाममात्र की ही संख्या के सदस्य थे। विपक्ष के द्वारा प्रकरण के न्यायिक जाँच के अनुरोध को रद्द करके अनन्तसायनम अयंगर के नेतृत्व में एक जाँच कमेटी बिठा दी गई। बाद में 30 सितम्बर 1955 सरकार ने जाँच प्रकरण को समाप्त कर दिया। यूनियन मिनिस्टर जी.बी. पन्त ने घोषित किया, “सरकार इस मामले को समाप्त करने का निश्चय कर चुकी है". यह तो इक क्षणिक धटना है यू ही भुला दी जाएगी।