शनिवार, 29 जनवरी 2011

घोटालों का कारोबार

कुछ दिन पहले 26 वर्षीय एक युवक की दिल्ली में जहर खाने के कारण मृत्यु हो गई। उसने एक नई अनजान-सी कम्पनी के ज्यादा ब्याज और राशि वापसी के कई विकल्पों के झांसे में आकर अच्छी-खासी पंूजी उसमें निवेश कर दी थी। जब उसे अन्य निवेशकों के साथ पता लगा कि कम्पनी रकम हजम कर गायब हो गई है, तो वह इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सका तथा आत्महत्या कर ली। विभिन्न तौर-तरीके अपनाकर किए जा रहे घोटाले भारत में ही नहीं, विश्व भर में बढ़ रहे हैं। आस्ट्रेलिया में तो पुलिस विभाग समय-समय पर इस बारे में चेतावनी जारी करता रहता है।

ब्रिटेन और जापान में नागरिकों को ऎसे धोखेबाजों और उनके नए-नए तौर-तरीकों के बारे में चेताया जाता रहता है। सिंगापुर विश्व का सबसे सुरक्षित शहर माना जाता है। वहां की पुलिस भी बहुत सक्षम और प्रभावी मानी जाती है इसके बावजूद वहां वर्ष 2007 की तुलना में 2008 में धोखाधड़ी की घटनाएं 15 प्रतिशत बढ़ गई। एक अनुमान के अनुसार ब्रिटेन में प्रति वर्ष लगभग 33 लाख लोग धोखाधड़ी का शिकार होकर साढ़े तीन अरब पाउण्ड से हाथ धो बैठते हैं। विश्व अर्थव्यवस्था में जब से मंदी का दौर आया है, धोखाधड़ी और घोटालों की वारदातें बहुत बढ़ गई हैं। रोजगार छिनने के बाद लोग ऎसी वारदातों में लिप्त हो जाते हैं। इंटरनेट के उपयोग की व्यापकता और विश्वव्यापी स्वीकार्यता के कारण एक नई तरह के अपराधियों की जमात बढ़ रही है। आए दिन लोगों के मोबाइल और ई-मेल पर यह संदेश/सूचना आती है कि आपको लॉटरी में एक बड़ी राशि का इनाम मिला है, जो दुनिया भर के नाम और टेलीफोन नम्बरों में से चयनित हुआ है। मुझे मिले एसएमएस में तीन लाख अमरीकी डालर का पुरस्कार मिलने के लिए बधाई देते हुए भेजने वाले के मोबाइल या ई-मेल पर सम्पर्क करने के लिए कहा गया, ताकि पुरस्कार की राशि भेजी जा सके। यदि संदेश पाने वाला सम्पर्क करता है तो उससे बैंक खाता संख्या और अन्य व्यक्तिगत जानकारियां मांगी जाती हैं। इस तरह के छलावों में अक्सर व्यक्ति आ जाता है। इसके बाद उससे एक निश्चित राशि स्थानीय कर के नाम पर या किसी अन्य बहाने से मंगवा ली जाती है।

सत्यम्, एनरॉन और मेडौफ जैसे बड़े घोटाले तो सुर्खियों में छाए रहे, क्योंकि ये मामले अरबों-खरबों रूपए के थे, लेकिन ठगी और धोखाधड़ी के शिकार ज्यादातर लोग छोटे-मोटे ठगों, जालसाजों और धोखाधड़ी करने वालों के चंगुल में फंसते हैं। ऎसे ज्यादातर लोगों के पास मामूली सी बचत और सम्पत्ति होती है। भारत में धोखाधड़ी का सबसे प्रचलित तरीका फल, सब्जी और किराने के सामान को तोलने में हेराफेरी करना है। दालों, खाने के तेल, मसालों, दूध, घी, मावा आदि में मिलावट बहुत बड़ी समस्या बन गया है, जिसका आम तौर पर पता भी नहीं लग पाता। इसका कारण भ्रष्ट अधिकारी और मिलीभगत के कारण समय-समय पर खाद्य वस्तुओं के नमूने लेकर जांच नहीं करवाना है। अस्सी अरब रूपए के हाल के सत्यम घोटाले से पहले हर्षद मेहता ने कुछ और शेयर दलालों के साथ मिलकर अरबों रूपए का शेयर घोटाला किया था। हर्षद मेहता ने अप्रेल 1991 से मई 1992 के दौरान अल्प समय में चालबाजी और तिकड़मों से शेयर बाजार में कृत्रिम तेजी पैदा कर सूचकांक को दुगना-तिगुना कर उसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया, लेकिन यह तेजी ज्यादा नहीं टिक पाई। स्टाम्प बेचने वाले अब्दुल करीम तेलगी ने सिक्योरिटी प्रेस की पुरानी छपाई मशीनें खरीद कर जाली स्टाम्प पेपर छापना शुरू कर दिया। वर्ष जब वह गिरफ्तार हुआ तब तक वह अठारह शहरों में अपना जाल बिछा चुका था। अटकलें थीं कि उसने दो से तीन खरब रूपए का घोटाला किया, लेकिन सीबीआई के अनुसार तेलगी ने एक अरब 33 करोड़ 33 लाख का घोटाला किया था।

इन सभी घोटालों में एक बात समान थी, वह थी धनलिप्सा। सभी मामलों में धोखाधड़ी इसी कारण हुई। जिनके हाथ में पैसा था, वे और पैसा चाहते थे। सत्यम के रामलिंगा राजू इसके ताजा उदाहरण हैं। जिनके पास पैसा नहीं है, वे येन-केन-प्रकारेण कोई भी तरीका अपनाकर पैसा हासिल करना चाहते हैं। जल्दी अमीर होने की इच्छा की मानवीय कमजोरी का अपराधी पूरा फायदा उठाते हैं। ठग बातचीत कर लोगों को लुभाते हैं और उनके सम्भावित प्रश्नों का उत्तर पहले ही सोच कर तैयार रखते हैं। वे अपने सहयोगियों को पहले भेजकर आधार तैयार करते हैं और बाद में खुद जाकर शिकार करते हैं। सभी घोटालों में एक बात और समान रही है, वह है भ्रष्ट अधिकारियों को फुसलाने की। तेलगी ने सिक्योरिटी प्रेस के अधिकारियों को छपाई मशीन नष्ट नहीं करने के लिए रिश्वत दी और उनसे कहा कि वह नियमों के अनुरूप मशीन को अनुपयोगी बना दें। हर्षद और राकेश मेहता ने घोटाले करने के लिए अधिकारियों को घूस दी। रामलिंगा राजू ने कई महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञों और अफसरशाहों से नजदीकियां बढ़ाई। निवेशकों को आसान कमाई और ज्यादा मुनाफे के झांसों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। निवेश के बहुत से ऎसे विकल्प हैं, जिनमें रिटर्न भले ही अधिक नहीं मिले, लेकिन पूंजी सुरक्षित रहती है। बाद में पछताने से सुरक्षित रास्ता अपनाना हमेशा बेहतर होता है।

अरूण भगत
[लेखक गुप्तचर ब्यूरो के निदेशक रहे हैं]

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