रविवार, 24 दिसंबर 2017

2जी घोटाला अगर हुआ ही नहीं, तो इन सवालों के जवाब कौन देगा?

इससे पहले कि 2जी घोटाला खबर बनती, देश की प्रमुख जांच एजेंसियां नामी-गिरामी गुनाहगारों को रिहाई दिलाने की कला में माहिर हो चुकी थीं. देश में घोटालों के सुखद अंत की भी परंपरा रही है.
इसके बावजूद बोफोर्स और कॉमनवेल्थ गेम्स घोटालों से इतर 2जी घोटाले ने देश में नीति निर्माण के तरीकों को झकझोड़ते हुए टेलिकॉम बाजार को पूरी तरह बदल दिया. वहीं 2जी मामले में दूसरा अपवाद है कि तथाकथित घोटाले की जांच कर रही सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय पूरी तरह से सरकारी मंत्रालयों से सामंजस्य रखते हुए उनके निर्देश पर काम कर रही थीं. लिहाजा, केन्द्र सरकार का भ्रष्टाचार के लिए जीरो टॉलरेंस का दावा यहां कोई मायने नहीं रखती.   
हालिया इतिहास में 2जी घोटाला संभवत: पहला मौका है जब अदालत को यह कहने में कोई गुरेज नहीं था कि अभियोजन पक्ष को यह नहीं पता था कि क्या साबित किया जाना है. लिहाजा जांच की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल के साथ-साथ यह तय है कि पूरी कोशिश दिशाहीन रही. वहीं हकीकत यह भी है कि 2जी मामले ने न सिर्फ राजनीतिक भूचाल लाने का काम किया बल्कि देश में टेलिकॉम क्रांति कि दिशा को भी पलटने का काम किया है.
यह पहला मौका है कि किसी कोर्ट को कहना पड़ा,'सभी आम धारणा पर चल रहे थे, अफवाह सच्चाई पर हावी थी. कोर्ट में किसी भी आरोप को साबित करने के लिए कोई साक्ष्य तक पेश नहीं किया गया.' वहीं सच्चाई यह भी है कि इन्हीं आरोपों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने आवंटित किए जा चुके 122 टेलिकॉम लाइसेंस को निरस्त करने का फैसला सुनाया. लेकिन सीबीआई ने पांच साल तक कोशिश करने के बाद भी एक आरोप को साबित करने के लिए भी पर्याप्त सुबूत एकत्र नहीं किया.
लिहाजा कुछ गंभीर सवाल...यदि यह घोटाला नहीं होता...
1. जिन निवेशकों ने 2012 में लाइसेंस गंवाया उनके नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है? नेता और अधिकारी क्लीनचिट पा चुके हैं. लिहाजा अब इंडस्ट्री को हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा? उन कर्मचारियों की भरपाई कौन करेगा जिन्होंने लाइसेंस रद्द होने के बाद अपनी नौकरी गंवा दी? हकीकत यही है कि 2जी के झटके से सुस्त पड़ा टेलिकॉम सेक्टर अभी तक अपनी रफ्तार नहीं पकड़ पाया है.
2. वैश्विक स्तर पर निवेश के ठिकाने के तौर पर भारत की स्थिति को 2जी घोटाले ने बुरी तरह प्रभावित किया है. इस घोटाले के बाद किसी भी मल्टीनैशनल टेलिकॉम कंपनी ने भारत का रुख नहीं किया है. जिन्होंने किया था वह 2012 में अपना लाइसेंस गवां बैठे और कभी न लौटने के लिए यहां से चले गए. लिहाजा, इसकी जिम्मेदारी किसके सर मढ़ी जाएगी?
3. इस पूरे विवाद में किसे फायदा पहुंचा? 2008 से पहले देश के टेलिकॉम सेक्टर में कुछ चुनिंदा कंपनियां थीं. लेकिन 2जी आवंटन ने सेक्टर में प्रतियोगिता का माहौल पैदा किया जिसके बाद देश में कॉल दरें लगातार कम होने की दिशा में आगे बढ़ीं. लेकिन 2012 में लाइसेंस रद्द होने के बाद सेक्टर में तीन से चार कंपनियां बचीं और टेलिकॉम सेक्टर का अधिकांश काम इन्हीं कंपनियों के पास सीमित हो गया. लिहाजा, प्रतियोगिता को खत्म करने के लिए कौन जिम्मेदार है?
4. इस 2जी घोटाले ने केन्द्र सरकार को स्पेक्ट्रम की नीलामी के जरिए अपना राजस्व बढ़ाने का मौका दिया. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि नीलामी प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है लेकिन इससे स्पेक्ट्रम की कीमतों में इजाफा हुआ और टेलिकॉम कंपनियों की जेब पर यह भारी पड़ने लगा. कंपनियों ने इस कीमत को तो वहन किया लेकिन बदलती टेक्नोलॉजी में वह अपने नेटवर्क को मजबूत करने का खर्च करने में विफल हो गईं. इसका नतीजा यह हुआ कि तेज गति और नए जेनरेशन के स्पेक्ट्रम के बावजूद देश में टेलिकॉम सर्विस खराब होने लगी. लिहाजा, बीते कुछ वर्षों में महंगी और घटिया टेलिकॉम सर्विस के लिए कौन जिम्मेदार है?
केन्द्र सरकार ने हाल ही में मंत्रियों का समूह का गठन किया है जिसे कर्ज में डूबी हुई टेलिकॉम कंपनियों को उबारने का काम करना है. भारतीय टेलिकॉम कंपनियों पर 4.85 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और यह कर्ज देश के बैंकों के लिए बड़ी चुनौती है. इसके अलावा टेलिकॉम कंपनियों को लगभग 3 लाख करोड़ रुपये आवंटित स्पेक्ट्रम के मद में केन्द्र सरकार को अदा करना है. लिहाजा, इन सवालों के साथ एक सवाल और पूछा जाना चाहिए. घोटाले में किसे फायदा हुआ यह सब पूछ रहे हैं लेकिन पूछा यह भी जाना चाहिए कि घोटाले से किसे फायदा पहुंचा?

साभार -अंशुमान तिवारी (आज तक)

11 बड़े घोटाले, जो लाए देश की राजनीति में भूचाल

 चारा घोटाले में शनिवार को अदालत ने अपने फैसला सुनाते हुए आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव समेत 16 लोगों को दोष करार दे दिया है। हालांकि ये पहला घोटाला नहीं है, जिसमें किसी राजनेता या कोई बड़ी हस्ती का नाम आया हो और उसे सजा मिली हो। आजादी के बाद से अबतक लगभग 40 घोटाले एेसे हुए, जिसने देश-दुनिया में तहलका मचा दिया। आइए हम आपको एेसे ही 11 बड़े घोटालों के बारे में बताते हैं, जिसने देश की राजनीति को हिलाकर रख दिया।
 
जीप घोटाला (1948)
देश में घोटाले आजादी के बाद से ही शुरू हो गए थे। इसकी शुरुआत जीप घोटाले से हुई। यह देश में होने वाला पहला घोटाला था। आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से 2000 जीपों को सौदा किया था। सौदा 80 लाख रुपए का था लेकिन इसमें केवल 155 जीप ही मिल पाई। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वीके कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई थी लेकिन 1955 में केस बंद कर दिया गया।
 
मारुति घोटाला (1974) 
इस घोटाले में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया था। इस घोटाले का खुलासा 1974 में हुआ था। मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ था। इस मामले में पैसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।
 
बोफोर्स घोटाला (1987)
1986 में स्वीडन की ए बी बोफोर्स कंपनी से 155 तोपें खरीदने का सौदा तय किया गया। कहा गया कि इस सौदे को पाने के लिए 64 करोड़ रुपये की दलाली दी गई थी। इसमें स्वीडन की एक कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी और ओटावियो क्वात्रोची  का नाम सामने आया था।
 
स्टॉक मार्केट (1992 व 2002)
स्टॉक माक्रेट में 10 साल के अंतराल में दो बड़े घोटाले हुए थे। पहला साल 1992 में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंकों का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब 5000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। इसके स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख ने स्टॉक मार्केट में 1,15,000 करोड़ रुपए का घोटाला किया। दिसंबर, 2002 में इन्हें गिरफ्तार किया गया।
 

यूरिया घोटाला (1996)
इस मामले में 26 मई, 1996 को 133 करोड़ रुपए घपले का मामला दर्ज हुआ था।नेशनल फर्टिलाइजर के एमडी सीएस रामकृष्णन ने कई अन्य व्यापारियों, जो कि नरसिम्हाराव के नजदीकी थे, के साथ मिलकर दो लाख टन यूरिया आयात करने के मामले में सरकार को 133 करोड़ रुपए का चूना लगाया। यह यूरिया कभी भारत तक पहुंच ही नहीं पाई। इसमें किसी को सजा नहीं हुई।
 

चारा घोटाला (1996)
साल 1996 में बिहार में हुआ यह उस समय का सबसे बड़ा घोटाला था। चारा घाटाले ने देश में सनसनी फैला दी थी, क्योंकि यह एेसा घोटाला था, जो एक-दो करोड़ रुपए से शुरू होकर अब 900 करोड़ रुपए तक जा पहुंचा है। इस घपले के सूत्रधार बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। आज इस चर्चित घोटाले में लालू यादव समेत कई लोगों को दोषी करार दिया गया है और 3 जनवरी को उन्हें सुनाई जाएगी।
 
आदर्श घोटाला (2002)
आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी ने गैर कानूनी तरीके से कोलाबा के आवासीय क्षेत्र नेवी नगर और रक्षा प्रतिष्ठान के आसपास इमारत का निर्माण किया। इस घोटाले का आरम्भ फरवरी 2002 में हुआ। यह योजना कारगिल युद्ध में शहीद हुए लोगों के परिवार वालों के लिए बनाई गई थी, जबकि इसके फ्लैट्स 80 फीसदी असैनिक नागरिकों को आवंटित किए गए। इस घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण नाम आने से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। 
 
स्टांप घोटाला (1995)
यह घोटाला भारत में हुए अब तक के घोटालों में कुछ न अलग और नया था। इसमें अब्दुल करीम तेलगी ने स्टांप की हेरा फेरी कर देश को 20 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया था। 1995 में तेलगी के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए गए लेकिन गिरफ़्तारी 2001 में ही हो सकी।
 
सत्यम घोटाला (2009)
सत्यम घोटाला कॉरपोरेट जगत में अबतक का सबसे बड़ा घोटाला बना, जो 7 जनवरी 2009 को सामने आया था। देश की सबसे बड़ी आईटी कंपनी सत्यम कंप्यूटर सर्विस ने रियल इस्टेट और शेयर मार्केट के जरिए देश को लगभग 14 हजार करोड़ की चपत लगाई। कंपनी के चेयरमैन रामालिंगा राजू ने लोगों को काफी समय तक अंधेरे में रखा और शेयर के सारे पैसे हजम कर लिए।
 
कॉमनवेल्थ घोटाला (2008)
इस घोटाले में खेल के नाम पर जमकर लूट-खसोट की गई थी। घोटाले के सूत्रधार आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी और उनके सहयोगी रहे। 2008 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों के लिए राजधानी दिल्ली में आयोजन से विकासकार्य कराए, जिसमें जमकर बंदरबांट किया गया। इसमें करीब 70 हजार करोड़ का घपला सामने आया था।
 
2G घोटाला (2011)
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला भारत का एक बहुत बड़ा घोटाला है। यह साल 2011 की शुरुआत के दौरान प्रकाश में आया था। 1.76 लाख करोड़ के इस चर्चित घोटाले ने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी। इस घोटाले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा पर गाज गिरी। हालांकि सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 21 दिसंबर 2017 को घोटाले के सभी आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है।

साभार- पंजाब केशरी