सोमवार, 27 दिसंबर 2010

नीरा राडिया,धीरज सिंह

नीरा राडिया के सहयोगी रहे धीरज सिंह के खुलासे ने ईमानदारी का ढिंढोरा पीटने वाले कई भाजपा नेताओं को बेनकाब कर दिया है। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर यूपीए सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाली भाजपा के नेताओं ने राडिया के इशारे पर क्या-क्या किया, पर्दे के बाहर आ गया है। धीरज की मानें, तो राडिया का उत्थान 1998 में एनडीए का शासन आने के बाद ही हुआ।
एनडीए राज में नागरिक उड्डयन मंत्री अनंत कुमार और अन्य भाजपा नेताओं ने राडिया को कैसे फायदा पहुंचाया और कमाई गई रकम कैसे स्विस खातों में पहुंची, धीरज ने एक समाचार चैनल को विस्तार से बताया है। धीरज ने तो इतना तक बताया है कि भाजपा राज में किस तरह बेशकीमती जमीनें राडिया के ट्रस्ट को आवंटित की गई और भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ट्रस्ट के भवन का शिलान्यास तक किया।
क्या आडवाणी को पता नहीं था कि राडिया कौन हैं? खुलासे वाकई चौंकाने वाले हैं और इसका सार इतना-सा ही निकलता है कि जब जिसको मौका मिला, उसने अपनों को फायदा पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 23 दिन तक संसद को ठप करने वाली भाजपा और इसके नेता धीरज सिंह के रहस्योद्घाटन को भले ही आरोपों का पुलिन्दा बताएं, लेकिन इस बात से वे इनकार नहीं कर सकते कि दलाली के खेल में वे शामिल नहीं थे। धीरज सिंह अगर स्विस बैंकों के खातों का नंबर बताने का दावा भी कर रहे हैं, तो उनके आरोपों को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। देश आज उस दौर से गुजर रहा है, जब हर नेता-बड़ा अफसर सन्देह के घेरे में खड़ा है।

चिन्ता की बात तो ये है कि सत्ता में बैठे लोग देश को लूट भी रहे हैं और अपना दामन पाक-साफ बताते हुए सामने वाले को बेईमान बताने का घिनौना खेल खेलने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और कॉमनवेल्थ खेलों में हुए घोटालों को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक पर आंखें मूंदने के आरोप लगे हैं।

सवाल ये है कि क्या इन बड़े-बड़े घोटालों का राज देश की वह जनता जान पाएगी, जिसका पैसा लूटा गया है। या फिर हर बार की तरह इस बार भी आरोप-प्रत्यारोप और आयोग-कमेटियों की आड़ में सच दफन हो जाएगा। मनमोहन सिंह को चाहिए कि वह सर्वोच्च न्यायालय की भावना के अनुरूप पिछले सालों में हुए तमाम बड़े सौदों की बारीकी से जांच कराएं।
ये विचार किए बिना कि सौदे किस राज में हुए और उसमें कौन फंसेगा? मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं और जनता उनसे भ्रष्टाचार के मकड़जाल को तोड़ने की अपेक्षा करती है। घोटालों में चाहे कांग्रेस नेता फंसे या भाजपा, द्रमुक अथवा एनसीपी के, किसी को भी छोड़ा न जाए। मनमोहन सिंह को याद रखना चाहिए, 10 साल प्रधानमंत्री रहना कोई उपलब्धि नहीं होगी और न ही देश ऎसे लोगों को याद करता है। जनता उसे याद करती है, जो सिर्फ देश के भले के बारे में सोचे। मनमोहन सिंह के पास अच्छा मौका है, ये साबित करने के लिए कि जनता ने उन पर जो विश्वास किया है, उसकी रक्षा करने में वे समर्थ हैं। [साभार पत्रिका]

न्यायाधीशों का सत्यापन

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों को निर्देश दिया है कि वे ऎसे नियम बनाएं जिसकी पालना में न्यायिक अधिकारियों की विस्तृत सत्यापन रिपोर्ट पुलिस द्वारा राज्य के उच्च न्यायालय को प्रस्तुत की जा सके और न्यायपालिका में आपराधिक चरित्र के व्यक्तियों का प्रवेश रोका जा सके। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट ने खाजिया मोहम्मद मुजाम्मिल, जो कि बेंगलुरू का जिला एवं सत्र न्यायाधीश था, की अपील को निस्तारित करते हुए दिया है। इस न्यायाधीश को वर्ष 2000 में नौकरी से इस आधार पर बर्खास्त कर दिया गया था कि कारवाड़ पुलिस स्टेशन में उसका नाम 8 जनवरी, 1993 की गुण्डाशीट में दर्ज था। मुजाम्मिल, लायर्स एसोसिएशन का अध्यक्ष था। वह "मजलिस-इसा-ओ तन्जिम" का जनरल सेक्रेटरी था। उसके विरूद्ध यह आरोप था कि वह कातिलों और लुटेरों को शरण देता था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी उल्लेख किया है कि मुजाम्मिल ने भड़काऊ और फिरकापरस्ती के भाषण दिए थे, जिनके कारण 1993 में भटकल में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे तथा उन दंगों में 19 व्यक्तियों की मृत्यु हुई थी तथा कई लोग घायल हुए थे। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दो वर्ष तक मुजाम्मिल का गोपनीय प्रतिवेदन नहीं भरा था। एक मात्र प्रविष्टि गोपनीय प्रतिवेदन में 1997 में की गई थी, जिसके आधार पर मुजाम्मिल की परफॉरमेंस या कामकाज को संतोषजनक पाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों की गोपनीय रिपोर्ट में किस प्रकार अंकन किया जाए, के संबन्ध में भी टिप्पणी की है। यह निर्णय उस समय आया है, जब राजस्थान लोक सेवा आयोग को राजस्थान न्यायिक सेवा के सफल अभ्यर्थियों की सूची प्रकाशित करना है और राजस्थान उच्च न्यायिक सेवा का परिणाम घोषित होना है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को दृष्टिगत रखते हुए अब राजस्थान उच्च न्यायालय व राजस्थान सरकार को अविलंब न्यायिक अधिकारियों की विस्तृत सत्यापन रिपोर्ट के संबन्ध में नियम बनाना चाहिए। न्यायिक सेवा में प्रवेश देने से पूर्व अभ्यर्थी के चरित्र व अतीत के संबन्ध में पुलिस द्वारा विस्तृत छानबीन करना चाहिए। जांच करने वाला अधिकारी पुलिस अधीक्षक की श्रेणी का होना चाहिए तथा जांच रिपोर्ट के साथ उसका शपथपत्र संलग्न होना चाहिए कि जांच उसकी निजी जानकारी के अनुसार सही है। जांच का काम सामान्य पुलिसकर्मियों को सौंपना ठीक नहीं होगा। इस बाबत नीति जितनी जल्दी बन जाए, उतना अच्छा है। हर राज्य को ऎसी नीति बनाने की कार्यवाही करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की यह नई व्यवस्था ऎसी है कि उसे न्यायिक क्षेत्र की एक छोटी जरूरत या छोटी बात मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

यदि किसी अधिवक्ता का चयन न्यायिक सेवा में हुआ है, तो जिस जिला न्यायालय में ऎसा अधिवक्ता प्रेक्टिस करता रहा है, उस न्यायालय के न्यायाधीश की रिपोर्ट भी ऎसे अधिवक्ता के चारित्रिक सत्यापन के संबन्ध में मांगी जा सकती है। न्यायिक अधिकारियों के चयन में पूरी सावधानी बरतना बहुत जरूरी है। एक भी गलत छवि का न्यायिक अधिकारी अगर न्यायपालिका का हिस्सा बनेगा, तो इससे न्यायपालिका की छवि ही खराब होगी। इस लिहाज से सुप्रीम कोर्ट की नई सक्रियता प्रशंसनीय है।

निष्कर्ष यही है कि न्यायिक सेवा में प्रवेश लेने वाले अभ्यर्थी कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार हों और इसके लिए उनके चरित्र व अतीत के संबन्ध में दी जाने वाली रिपोर्ट "केजुअल" नहीं होना चाहिए।
शिव कुमार शर्मा
पूर्व न्यायाधीश, उच्च न्यायालय, राजस्थान

अनंत कुमार और नीरा की एक गुप्त फाइल

नीरा राडिया तब कुछ और ज्यादा जवान रही होगी। अब भी देखने में वे अच्छी ही लगती है, लेकिन 1994 में जब भारतीय जनता पार्टी के कर्नाटक के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक अनंत कुमार से उनकी जान पहचान हुई थी, तो देखते ही देखते निजी और व्यवसायिक अंतरंगता में बदल गई। कांग्रेस के पास उचित ही बहाना है कि नीरा राडिया और राजा के मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर हमला करने के पहले वे अनंत कुमार से सवाल कर लें। नीरा शर्मा से नीरा राडिया बनी यह महिला जब भारत आई थी तो सबसे पहले सहारा समूह में संपर्क अधिकारी यानी वेतन भोगी दलाल की नौकरी उन्हें मिली थी। साथ ही साथ वे सिंगापुर एयर लाइन, ब्रिटिश एयर लाइन और केएलएम के साथ भी टाका भिड़ाए हुई थी। पूतना के पांव पालने में दिख रहे थे। नागरिक उड्डयन मंत्री के तौर पर अनंत कुमार से उनकी अंतरंगता ऐसी थी कि मंत्रालय की इमारत राजीव गांधी भवन में बगैर रोक टोक के उनका आना-जाना था।
इसी अंतरंगता का सहारा ले कर नीरा राडिया ने पूरी फाइल तैयार करवा ली थी, जिसमें सिर्फ एक लाख रुपए की लागत से एक पूरी एयर लाइन चलाने का लाइसेंस उन्हें मिल रहा था। इसके अलावा अनंत कुमार चूंकि पर्यटन मंत्री भी थे इसलिए भारतीय पर्यटन विकास निगम के कई शानदार होटल बिकवाने में भी नीरा राडिया ने उतनी ही शानदार भूमिका अदा की। विमान सेवा चलाने के लिए नीरा राडिया के पास एक लाख रुपए की पूंजी थी। उन्होंने विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड यानी एफआईपीबी में विमान सेवा स्थापित करने के लिए आवेदन किया और एक महीने के भीतर उन्हें अनुमति मिल गई। इतने समय में तो लोगों को राशन कार्ड भी नहीं मिलता। मगर फिर सब लोग नीरा राडिया नहीं होते।
चूंकि एफआईपीबी का काम विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देना था इसलिए उस समय के वाणिज्य मंत्री मुरासोली मारन ने भी इसके लिए फौरन अनुमति दे दी। उन्होंने यह भी नहीं देखा कि नियम क्या कहते हैं और ये आंटी जी है कौन? थोड़ा आगे बढ़े तो मुरासोली मारन उन दयानिधि मारन के पिता थे, जिन्हें बाहर रख कर ए राजा को मंत्री बनाने के लिए नीरा राडिया ने जो-जो कर्तव्य किए और जहां-जहां वीरों और बरखाओं का इस्तेमाल किया यह आप टेलीफोन टेप से जान चुके हैं।
नीरा राडिया को निवेश की अनुमति मिल गई। जब एफआईपीबी से कागज मिला तो विमान सेवा का नाम क्राउन एक्सप्रेस रखा गया और इसकी ओर से एयरक्राफ्ट एक्वीजीशन कमेटी यानी एएसी को आवेदन किया गया। आवेदन में कहा गया था कि शुरू में छह बड़े विमान ला कर उन्हें जेट और सहारा की तरह विमान सेवा शुरू करने की अनुमति दी जाए। याद किया जाना चाहिए कि क्राउन एक्सप्रेस के पास पूंजी एक लाख रुपए ही थी, जितने में एक सेकेंड हैंड खटारा कार भी नहीं आती।
एएसी के निदेशक उस समय सुनील अरोड़ा थे जो इंडियन एयरलाइंस के प्रबंध निदेशक और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में संयुक्त सचिव भी थे। इन्हीं सुनील अरोड़ा को बाद में एयर इंडिया का प्रबंध निदेशक बनाया गया और अगर आपने गौर से टेलीफोन टेप सुने हों तो बार-बार सुनील अरोड़ा एयर इंडिया के घाटे के लिए मंत्री प्रफुल्ल पटेल को जिम्मेदार ठहराते हैं और नीरा राडिया उनसे कहती हैं कि वे प्रधानमंत्री से सेटिंग कर रही हैं और जल्दी ही प्रफुल्ल पटेल बीड़ी बेचते नजर आएंगे।
मगर यह बाद की बात है। उस समय तो सुनील अरोड़ा ने अनंत कुमार के निर्देश पर राडिया की हास्यास्पद फाइल को रद्दी की टोकरी में डालने की बजाय सिर्फ कुछ मासूम से स्पष्टीकरण मांगे। बाद में अरोड़ा ने कहा कि उदारीकरण का दौर था और ऐसे में प्रतियोगिता होती हैं और कई कंपनियां आती हैं, मगर उनकी पात्रता पर मौजूद नियमों और निर्देशों के हिसाब से विचार किया जाता है। मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना था कि राडिया की अर्जी में काफी कुछ कमजोरियां थी। सबसे बड़ी कमजोरी तो यही थी कि जब कंपनी के पास जमा पूंजी एक लाख रुपए की हैं तो जहाज कहां से खरीदेगी क्योंकि कुल परियोजना 133 करोड़ की बन रही थी।
नीरा ने अनंत से शिकायत की। अनंत ने अफसरों को बुलाया। नीरा ने कहा कि वे नियमानुसार जरूरी तीस करोड़ रुपए की न्यूनतम शेयर राशि की बजाय 111 करोड़ रुपए इस कंपनी में डालने वाली है और 30 करोड़ का पैमाना तो वे उसी दिन पूरा कर देंगी जिस दिन उन्हें अनुमति मिल जाएगी। बाकी पैसा वे विदेशी संस्थानों से ले कर आएंगी। दूसरे शब्दों में अनुमति के लिए तीस करोड़ रुपए की पूंजी चाहिए थी मगर नीरा पूंजी के लिए अनुमति मांग रही थी।
नीरा राडिया ने यह भी कहा था कि जब तक एएसी का अनापत्य प्रमाण पत्र नहीं मिल जाता, तब तक पूँजी  तीस करोड़ करने का कोई मतलब नहीं होगा। उन्होंने तो यहां तक कहा था कि अनुमति मिल जाने के बाद भी मंत्रालय इसे वापस ले सकता है अगर उसे लगता है कि कंपनी के पास पर्याप्त पूंजी नहीं है। असल में नीरा राडिया भारत सरकार को भारत सरकार का कानून और कायदा सीखा रही थी। नीरा 6 बोईंग 737 विमान ला कर अपनी विमान सेवा शुरू करना चाहती थी और इसके लिए 500 करोड़ रुपए की जरूरत थी, मगर नीरा राडिया ने इस आपत्ति का जवाब यह कह कर दिया कि वे बहुत सारी विमान सेवा कंपनियों के लिए दलाली करती रही हैं और जैसे दूसरों के लाती थी, अपने लिए भी जहाज किराए पर ले आएंगी।
मंत्रालय के अधिकारियों ने खुद मंत्री अनंत कुमार को समझाया और नियमों की किताब दिखाई जिसके अनुसार जब तक पूंजी के स्रोत का पता नहीं चलता और सरकार उससे संतुष्ट नहीं होती, तब तक विमान सेवा शुरू करने की अनुमति देने का कोई रिवाज नहीं है। फिर भी अनंत कुमार चाहते थे कि उनकी नीरा को लाइसेंस जारी कर दिया जाए। कुछ भक्त अधिकारी इसके लिए तैयार भी थे, मगर नागरिक उड्डयन के महानिदेशक कार्यालय ने इसकी अनुमति नहीं दी, वरना तो नीरा को उसी दिन लाइसेंस मिल जाता और हो सकता है कि आज क्राउन एक्सप्रेस के नाम से कोई बड़ी विमान सेवा चल रही होती। दलाली और दोस्ती में बड़ी ताकत होती है।
एएसी के कुछ सदस्यों का मानना था, और यह मंत्रालय के रिकॉर्ड में अब तक दर्ज हैं कि अगर पैसे का स्रोत और शेयर धारकों के नाम पते नहीं बताए जाते तो पिछले दरवाजे से विदेशी विमान सेवाएं भारत के आकाश में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकती हैं, और यह देश की सुरक्षा के हिसाब से भी ठीक नहीं होगा और भारत के कारोबारी हितों में भी नहीं होगा। अनंत कुमार के बहुत सारे प्रेम के बावजूद नीरा राडिया का सपना टूट गया और पता नहीं प्रफुल्ल पटेल किस बात का इंतजार कर रहे हैं और पुरानी फाइलों को निकाल कर अनंत कुमार को जितना कर सकते हैं, उतना बेनकाब क्यों नहीं करते? [साभार भड़ास४मीडिया]
लेखक आलोक तोमर देश के जाने-माने पत्रकार हैं.

प्रभु (दशरथ) चावला की राम कहानी

कहानी अब नए-नए मोड़ लेती जा रही है। तत्कालीन पाकिस्तान के डेरा गाजीखान से दो साल का एक बच्चा विभाजन के दौरान शरणार्थी के तौर पर माता पिता के साथ भारत आया था। जमुना पार में झिलमिल कॉलोनी में परिवार को एक छोटा सा घर मिला। यह बालक अब प्रधानमंत्रियों और कैबिनेट सचिवों के साथ उठता बैठता है और दिल्ली के पुलिस कमिश्नर उसके फोन पर लगभग खड़े हो कर बात करते है। जानने वाले बताते हैं कि बच्चा बड़ा हुआ और देशबंधु कॉलेज, कालका जी से पढ़ाई करने के बाद पहले एक कॉलेज में पढ़ाया और फिर पत्रकार बन गया। ऐसे भी बहुत सारे लोग हैं जिन्होंने इस बच्चे यानी प्रभु चावला को झिलमिल कॉलोनी की रामलीला में दशरथ की भूमिका करते देखा था।
लेकिन प्रभु चावला सिर्फ मंच तक ही दशरथ रह गए। बेटे अंकुर को राम नहीं बना पाए। सीबीआई की फाइलों में अंकुर चावला का नाम अमर उजाला दलाली प्रकरण के एक दलाल के तौर पर दर्ज है। अब आपको बताते हैं अमर उजाला की कहानी। 1948 मे ही जब प्रभु चावला माता पिता की गोद में सीमा पार कर के दिल्ली पहुंचे थे, आगरा में स्वर्गीय डोरी लाल अग्रवाल और स्वर्गीय एम एल माहेश्वरी ने मिल कर अमर उजाला दैनिक की स्थापना की थी और आज यह देश का तीसरा सबसे बड़ा अखबार है। अमर उजाला कुटुंब में हिस्सेदारी को लेकर झगड़ा चल रहा है और भले ही डोरी लाल अग्रवाल के पुत्र अशोक अग्रवाल कंपनी के अध्यक्ष हों मगर सबसे ज्यादा शेयर अतुल माहेश्वरी और राहुल माहेश्वरी के पास है। अशोक अग्रवाल के पास सिर्फ 17.33 प्रतिशत शेयर्स हैं। मगर हाल ही के दिनों में अशोक अग्रवाल और मनु आनंद को किनारे किया जाना शुरू हो गया था और हालत यह हो गई थी अतुल माहेश्वरी अशोक अग्रवाल के फोन,एसएमएस और ईमेल किसी का जवाब नहीं दे रहे थे। एक बोर्ड मीटिंग में अशोक अग्रवाल के बेटे मनु को बोलने भी नहीं दिया गया और तब अशोक अग्रवाल मामले के निपटारे के लिए कंपनी लॉ बोर्ड में गए।
मामले की पहली सुनवाई 28 अक्तूबर को हुई थी और दूसरी 14 दिसंबर को होनी है। अतुल माहेश्वरी पर आरोप है कि उन्होंने अंकुर चावला के जरिए कंपनी लॉ बोर्ड के सदस्य और कार्यवाहक अध्यक्ष वासुदेवन को अपने हक में फैसला सुनाने के लिए दस लाख रुपए की नकद रिश्वत दी और वासुदेवन और रिश्वत देने वाला मनोज बाठिया अब जेल में है। अंकुर चावला पर प्रभु कृपा है इसलिए वे बाहर हैं। यहां यह याद किया जा सकता है कि जब अशोक अग्रवाल के दो भाईयों अजय और सौरभ अग्रवाल ने अपने शेयर्स 160 करोड़ रुपए में बेचे थे तो अशोक अग्रवाल ने अतुल माहेश्वरी का साथ दिया था। अजय अग्रवाल भी कंपनी लॉ बोर्ड के पास गए थे और माहेश्वरी के शेयर्स खरीदने का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने जी समूह से निवेश का तालमेल कर लिया था। मगर लॉ बोर्ड ने उनका यह प्रस्ताव नहीं माना।
बाद में अमर उजाला डी ई शॉ को 18 प्रतिशत भागीदारी दे कर 117 करोड़ का जुगाड़ किया। जब अमर उजाला शुरू हुआ था तो स्वर्गीय डोरी लाल अग्रवाल की हिस्सेदारी 53 प्रतिशत और एम एल माहेश्वरी की 47 प्रतिशत थी। कंपनी लॉ बोर्ड ने माहेश्वरियों से पूछा कि जी समूह को चलाने वाले एस्सेल समूह की मीडिया वेस्ट कंपनी से उनका क्या समझौता हुआ है? जी अजय अग्रवाल की मदद कर रहा था ताकि वे अमर उजाला के धंधे में 65 प्रतिशत की हिस्सेदारी प्राप्त कर सके। अजय अग्रवाल ने बोर्ड को मीडिया वेस्ट के साथ समझौते की शर्ते बता दी। इसकी सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह थी कि एक निवेश कंपनी ने कहा था कि अगर मीडिया वेस्ट 101 करोड़ रुपए यानी 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी के लिए रकम देने को तैयार हो जाए तो बाकी 60 प्रतिशत के लिए पैसा भेजेंगे।
माहेश्वरी बंधुओं के वकील ने इस पर ऐतराज किया था और कहा था कि कंपनी लॉ बोर्ड पहले ही आदेश दे चुका है कि अमर उजाला का स्वामित्व इन दोनों परिवारों के बीच ही रहना चाहिए। आरोप यह भी था कि माहेश्वरी परिवार कॉरपोरेट ढांचे को बदलने के नाम पर स्वामित्व का ढांचा बदलना चाहता है। 4 अप्रैल को लॉ बोर्ड के चेयरमैन एस बाला सुब्रमण्यन ने भी माहेश्वरियों का दावा खारिज कर दिया था और अशोक अग्रवाल से कहा था कि वे एमओयू के पूरे विवरण दें। कानूनी दांव पेंच में लगातार मार खाते आ रहे अतुल माहेश्वरी ने शॉर्टकट अपनाया और इसके लिए दलाल मौजूद थे। कंपनी सेक्रेटरी मनोज बाठिया को इस्तेमाल किया गया, प्रभु पुत्र अंकुर चावला ने दलाली की और वासुदेवन और बाठिया दोनों जेल पहुंच गए। अब कंपनी लॉ बोर्ड के नए मुखिया की तलाश की गई और हालांकि कंपनी मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा था कि दिलीप राव देशमुख 27 नवंबर को इस पद की जिम्मेदारी संभाल लेंगे मगर अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।
इस बीच वासुदेवन के खातों और तिजोरियों से रकम निकलती आ रही है। एक विदेशी कानूनी कंपनी द्वारा अंकुर
चावला के जरिए अपने सीनियर एक प्रसिद्ध वकील को दो करोड़ रुपए की एक बैंटले कार भी दिए जाने की जानकारी मिली है और उसकी भी जांच हो रही है। पद्मविभूषण यानी भारत रत्न से सिर्फ एक कदम नीचे झिलमिल कॉलोनी के दशरथ प्रभु चावला हाल ही में एक समारोह में देश के सबसे अच्छे हिंदी इंटरव्यू लेने वाले चुने गए हैं और इसके लिए उन्हें बधाई दी जानी चाहिए। बधाई उन्हें अंकुर चावला जैसे प्रतिभाशाली बेटे को जन्म देने के लिए भी मिलनी चाहिए। [साभार भड़ास४मीडिया]
लेखक आलोक तोमर हिंदी पत्रकारिता के बड़े नाम हैं. खरी-खरी लिखने-बोलने वाली अपनी शैली के कारण वे हर क्षेत्र में दोस्त और दुश्मन लगभग समान मात्रा में पैदा करते रहते हैं

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

70 लाख करोड़ रुपए का सवाल उठाइए

भारत सरकार की अमीरपरस्त और विदेशपरस्त नीतियों का सबसे ज्वलंत उदाहरण तब सामने आया जब पता चला कि देश की बहुत बड़ी पूंजी स्विट्जरलैंड और अन्य कई देशों के बैंकों में अवैध रूप से जमा है और सरकार उसे वापस भारत लाने के पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही है।
गुप्त और काले धन के गढ़ के रूप में कुख्यात स्विस बैंक तथा इस तरह अन्य बैंकों में भारत में रहने वाले कुछ लोगों के लगभग 70 लाख करोड़ रुपये  जमा हैं। चोरी-छिपे जमा किए गये इन गुप्त खातों के स्वामी हैं देश के कई बड़े-बड़े नेता, ऊंचे पदों पर बैठे कुछ नौकरशाह और भ्रष्ट व्यापारी तथा तस्कर इत्यादि। सबसे दिलचस्प बात यह है कि ऐसे बैंकों में सबसे ज्यादा रुपया भारत का जमा है। भारत ने इस मामले में अमेरिका और चीन को भी पीछे छोड़ दिया है।
‘70 लाख करोड़ रुपये’ का मतलब क्या होता है, देश की अधिसंख्यक जनता इसका अनुमान भी नहीं लगा सकती। यह इतनी विशाल राशि है कि यदि इसे भारत के सबसे गरीब 7 करोड़ परिवारों यानी 40 प्रतिशत लोगों में बांट दिया जाए तो हर गरीब परिवार को लगभग दस लाख रुपये मिलेंगे। इस संबंध में एक और तथ्य यह भी है कि इस राशि के मात्र 15 प्रतिशत हिस्से से पिछले 60 वर्षों में लिये गये भारत के सारे विदेशी कर्ज चुकाये जा सकते हैं। मंदी से जूझ रहे देश के लिए इस पैसे का मिलना किसी वरदान से कम नहीं होगा।
एक समय था जब स्विस बैंकाें या ऐसे ही अन्य विदेशी बैंकों से कोई जानकारी लेना असंभव था। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिका की मंदी समाप्त करने के लिये इन्हीं स्विस बैंकों से अमेरिकी धन वापस लाने की पहल की है। अमेरिकी दबाब के आगे स्विट्जरलैंड (स्विस) सरकार ने कोई ना-नाकुर नहीं की और उनके कहे अनुसार कदम उठाने को तैयार हो गई है। इससे भारत के लिये भी रास्ते खुल गये हैं। भारत सरकार को भी अपने रुपयों को वापस लाने के लिये अमेरिका की तरह पहल करनी चाहिए थी। किन्तु भारत सरकार ने अभी तक ऐसा नहीं किया है। शायद ऐसा करने से भारत के कई ऐसे सफेदपोश लोगों की करतूतें सामने आ जाएंगी, जो सरकार में खासा प्रभाव रखते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्यों सरकार ने ये जानकारी नहीं प्राप्त की? सरकार की निष्क्रियता इस मामले में उसकी नीयत पर सवाल उठाने के लिए विवश कर रही है।
लेकिन अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। सरकार चाहे तो अब भी इस मुद्दे को आगे बढ़ा सकती है। लेकिन हम जानते हैं कि सरकार यह तब तक नहीं चाहेगी जब तक उस पर जनमत का दबाव नहीं पड़ता। जब राजसत्ता संवेदनशून्य हो जाए तो समाजसत्ता की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इस मामले में भी स्थितियां ऐसी ही हैं।
अभी चुनाव का वक्त है और इस समय इस मसले पर जनता काफी कुछ अपने तरफ से कर सकती है और कम से कम भ्रष्ट नेताओं पर तो नकेल कसने में सफलता पाई जा सकती है। एक बार अगर भ्रष्ट नेताओं पर लगाम लग जाए तो दूसरों के भ्रष्टाचार को उजागर करना आसान हो जाएगा। क्योंकि भ्रष्टाचार के जड़ में तो सियासी लोग ही हैं। जब जड़ पर चोट की जाएगी तो दूसरे हिस्से तक इस मार का असर स्वाभाविक रूप से पड़ेगा। ऐसे में देश की आम जनता, प्रबुध्द जनों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और देश व समाज का भला चाहने वाले सभी लोगों को निम्न बातों को सुनिश्चित करने के लिए अपने-अपने स्तर पर कुछ न कुछ करते हुए जनदबाव बनाना चाहिए:-
1. हमें इस बात के लिए दबाव बनाना चाहिए कि राजनैतिक दल वैसे ही लोगों को उम्मीदवार बनाएं जो बाकायदा हलफनामा दें कि उनका स्विस बैंक या ऐसे ही अन्य किसी बैंक में गुप्त खाता नहीं है। इसके अलावा हलफनामें में उम्मीदवार यह भी घोषणा करे कि मैं चुने जाने के बाद गुप्त खातों में जमा रकम को वापस लाने के लिए कानून बनाने का प्रस्ताव लाऊंगा या ऐसा कोई प्रस्ताव आने पर उसका समर्थन करूंगा।
2. सभी लोग अपने मत की ताकत को समझते हुए नेताओं से साफ तौर पर यह कह दें कि वे वैसे प्रत्याशी को ही अपना मत देंगे जो हलफनामा दाखिल करके यह घोषणा करेगा कि स्विस बैंक या अन्य किसी ऐसे बैंक में उसका खाता नहीं है।
3. हम सब को स्विस बैंक में जमा काले धन की बाबत अपने-अपने स्तर पर आम जनता के बीच जागरूकता फैलाने का काम करना चाहिए। जनजागरण होने के बाद ही ऐसा जनदबाव कायम हो सकेगा जिसके बूते आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी।
स्विस बैंक और दूसरे ऐसे बैंकों में जमा काले धन के मसले को राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन जनहित से जुड़ा एक बड़ा मसला मानता है। इस संबंध में आंदोलन समविचारी संगठनों और व्यक्तियों को साथ लेकर ‘जनजागरण अभियान’ चला रहा है। विदेशों में जो विशाल धनराशि जमा है, वह भारत के लोगों की गाढ़ी कमायी है। जिन लोगों ने इस पैसे को विदेशी बैंकों में जमा किया है, वे भारत के दुश्मन हैं। न केवल हमें अपने पैसे को वापस लाना है, बल्कि उन सभी लोगों को दंडित भी करना चाहिए जिन्होंने अपने देश से गद्दारी की है। इस मसले पर राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन किसी को भी समर्थन देने और किसी का भी समर्थन लेने के लिए तैयार है। क्योंकि इससे पूरे देश का भविष्य जुड़ा है।
[साभार स्वाभिमान.इन]

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

भ्रष्टाचार कैंसर की तरह लाइलाज नहीं

-एन. आर. नारायणमूर्ति
एक विकसित देश के रूप में भारत के उदय में मैं भ्रष्टाचार को सबसे बड़ी बाधा समझता हूं। अब तो देश के सर्वोच्च और अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखे जाने वाले संस्थान भी इसकी लपेट में आ चुके हैं। सन् 2001 में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.पी. भरूचा ने आजिज आकर वक्तव्य दिया था कि न्यायालयों के 20 प्रतिशत न्यायाधीश भ्रष्ट हो चुके हैं। अब जब हमारी न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार की यह हालत है तो प्रशासन का क्या पूछना। प्रशासन में भ्रष्टाचार का फैलाव तो अत्यंत भयावह स्थिति में पहुंच चुका है। इस सन्दर्भ में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी का वक्तव्य सभी को याद होगा। उन्होंने कहा था कि गरीबी उन्मूलन परियोजनाओं को केन्द्र द्वारा दिए जाने वाले प्रत्येक सौ करौड़ रुपए में मात्र 15 करोड़ रुपए ही मूल परियोजना में खर्च हो पाते हैं। शेष राशि बीच के सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े भ्रष्ट लोग खा जाते हैं।
लेकिन क्या भ्रष्टाचार केवल हमारी राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था में ही व्याप्त है? मेरा अनुभव कहता है, नहीं। इनके बाहर जो हमारे व्यावसायिक समूह है, उनमें भी भ्रष्टाचार के अनेक उदाहरण हमने देखे हैं। हर्षद मेहता, केतन पारीख से जुड़े स्कैण्डल किसकी देन हैं? कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि मानो भ्रष्टाचार हम भारतीयों के मन में एक स्वीकृत परिदृश्य बनकर गहरी पैठ कर चुका है। शायद ही जीवन का कोई क्षेत्र इसकी पकड़ से बाहर हो।
   भ्रष्टाचार केवल नैतिकता पर प्रश्न नहीं है बल्कि यह भारत जैसे गरीब किन्तु विकासशील देश की आर्थिक उन्नति में सबसे बड़ी बाधा है। बहुत सारे अर्थशास्त्री मानते हैं कि भ्रष्टाचार की जड़ में हमारे राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी हैं। अधिकांश बड़ी-बड़ी परियोजनाएं इन्हीं लोगों के दिमाग की उपज होती हैं। जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के नाम पर बनने वाली परियोजनाओं में जबर्दस्त भ्रष्टाचार होता है। नकली दवाएं, विद्यालयों की जर्जर इमारतें, अयोग्य अध्यापक और स्तरहीन भोजन-व्यवस्था देकर आखिर किस तरह गरीबों का, इस देश का भला किया जा सकता है? शायद इसीलिए प्रख्यात अर्थशास्त्री विमल जालान का यह कहना उपयुक्त है कि भ्रष्टाचार पहले से ही गैर-बराबरी वाले समाज में असमानता को बढ़ाता है।
   भ्रष्टाचार का प्रभाव हमारे उद्यमों पर भी होता ही है। मध्यम श्रेणी के, लघु श्रेणी के उद्योग जहां इससे प्रभावित होते हैं, वहीं बड़े औद्योगिक समूह भ्रष्टाचार के द्वारा बाजार में अपना एकाधिकार और वर्चस्व कायम करने की होड़ करते हैं।
   अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भ्रष्टाचार जहां हमारी प्रगति, उत्पादकता को नुकसान पहुंचाता है, वहीं इससे निवेश भी हतोत्साहित होता है, आर्थिक हानि के साथ लोगों का व्यवस्था पर से विश्वास टूटता है। यदि हमारे देश में भ्रष्टाचार पर शुरू में ही लगाम लगाई जाती, तो सम्भवत: 80-90 के दशक में ही हमने 8 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त कर ली होती, जो आज 6.1 प्रतिशत तक ही पहुंच सकी है।
   आज लोग निराश हैं, सोचते हैं भ्रष्टाचार अब खत्म नहीं हो सकता, पर मैं उनमें नहीं हूं। मुझे भारत के उज्ज्वल भविष्य में पूरी आस्था है। भ्रष्टाचार समाप्त करना है तो पहल उन लोगों से शुरू होनी चाहिए जो ऊंचे स्थानों पर बैठे हैं, जिन पर समाज ने, देश ने अपनी देखभाल का दायित्व सौंपा है। हमारे राजनेताओं, प्रशासकों और उद्यमियों को मिल-जुलकर इस मुसीबत से पार पाना है। सबसे पहले हमें प्रेरक, नि:स्वार्थ और साहसी नेतृत्व चाहिए। सच्चाई, पारदर्शिता और दायित्व निर्वहन के द्वारा नेतृत्व सरकार और समाज में आत्मविश्वास पैदा करता है। दुर्भाग्यवश, आज यह स्थिति नहीं है। जरूरत इस बात की है कि हम भ्रष्टाचारी को त्वरित ढंग से दण्ड देने की व्यवस्था करें। ऐसा वातावरण बने कि अभी भी ईमानदारी की कद्र है और ऐसा करने के लिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उदाहरण चाहिए। भ्रष्टाचार में आरोपित व्यक्ति, चाहे कोई भी क्यों न हो, उसे किसी दायित्व पर तब तक नहीं रखा जाना चाहिए जब तक कि वह खुद को निर्दोष साबित न कर ले। त्वरित और कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए। यदि ऊंचे पदों पर बैठे गलत तत्वों पर  कारवाई हो तो हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक संदेश दे सकेंगे। पर आज तो वातावरण ऐसा है कि भ्रष्टाचार को वैश्विक परिदृश्य का अंग बताकर इसे हमारे सामाजिक जीवन की अनिवार्यता सिद्ध किया जा रहा है। वस्तुत: हमारे राजनीतिक वर्ग और प्रशासनिक वर्ग के विरुद्ध जब भ्रष्टाचार के मामले में शिथिलता बरती जाती है, तो स्वभाविक ही समाज में संदेश चला जाता है कि ऊंचे बनने के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाने मे कोई हर्ज नहीं है।
   हमारे प्रशासनिक अधिकारी बड़ी संख्या में ईमानदार रहते हैं, लेकिन धीरे-धीरे भ्रष्टाचार के मकड़जाल में उलझ जाते हैं। कैसे उलझते हैं, इससे संबंधित एक घटना मुझे याद है। सन् 1980 के दशक के मध्य में एक बार मैं दिल्ली आया हुआ था। एक शाम को होटल अशोक के यात्री निवास में डिनर पर मेरी मुलाकात मेरे एक मित्र से हुई। केन्द्र सरकार के मंत्रालयों में उसकी गिनती एक ईमानदार और स्वच्छ चरित्र वाले आफिसर के रूप में थी। भोजन के समय मैंने उसे कुछ चिंतित पाया। बातचीत में उसने अपनी तकलीफ मुझे बताई। उसने बताया कि जीवन में पहली बार आज उसने एक केस में रिश्वत ली है और तब से ही एक प्रकार की बेचैनी मुझे परेशान किए है। मैंने कहा कि रिश्वत लेना तो गलत है, इसमें कोई संशय नहीं है। और तब उसने मुझे जो कहा, सुनकर मुझे धक्का लगा। उसने कहा कि मेरे विचारों का एक हिस्सा इस कार्य को उचित ठहराता है क्योंकि मैंने अपने मंत्री को रिश्वत लेते हुए देखा है। मैं अपने उस मित्र की मन:स्थिति समझ सकता था। मुझे वह कारण समझ में आ गया कि क्यों हमारे अच्छे-भले, उत्साही प्रशासनिक अधिकारी धीरे-धीरे इस मकड़जाल में उलझते जाते हैं। लेकिन मैं यह भी कहूंगा कि जिन्हें देश-समाज को दिशा देनी है, नेतृत्व देना है, वे इस प्रकार की उलझनों में नहीं फंसते। अनैतिकता को आखिर किस तर्क से नैतिकता का जामा पहनाया जा सकता है?
   सिंगापुर में सन् 80 के दशक में एक घटना घटित हुई थी। भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे एक मंत्री के विरुद्ध जांच में आरोप को प्रथम दृष्टया सही पाया गया। उस मंत्री ने प्रधानमंत्री से स्वयं को निर्दोष बताते हुए हस्तक्षेप की गुहार लगाई। प्रधानमंत्री ने उस मंत्री को स्पष्ट कहा कि आपका काम खत्म हो चुका है। इस मामले में कड़ी कार्रवाई होगी और अब आगे चुनाव लड़ने का ख्वाब देखना भी छोड़ दीजिए। अपने नेता की बात सुनकर वह मंत्री घर चला गया। अगले दिन समाचार पत्रों द्वारा पूरे सिंगापुर को खबर लगी कि उस मंत्री ने स्वयं ही सिर पर गोली मारकर आत्महत्या कर ली। तो यह है वह संदेश, जिससे भ्रष्टाचार रुकता है, रुक सकता है। भ्रष्टाचारी व्यक्ति को कदापि कहीं से भी संरक्षण नहीं मिलना चाहिए।
   हमारे कार्यों में पारदर्शिता झलकनी चाहिए। भ्रष्टाचार समाप्त करने का एक तरीका यह भी है कि हम अपने चुनाव में खर्च होने वाले धन पर भी नियंत्रण करें। इस बारे में हम जर्मनी का उदाहरण ले सकते है। वहां प्रत्येक प्रत्याशी पर खर्च होने वाले धन के बारे में जनता को जानकारी दी जाती है कि इतना पैसा प्रत्याशी ने कहां से जुटाया। हमें इसी के साथ ऐसा तंत्र भी विकसित करना पड़ेगा जो धन के अतिगमन पर न केवल नजर रखे वरन् जरूरत पड़ने पर तत्काल कार्रवाई भी कर सके। इस सन्दर्भ में चुनाव आयोग को और शक्तिसम्पन्न किया जाना चाहिए। प्रत्येक प्रत्याशी के अनाधिकृत और भ्रष्ट कार्यों को व्यापक रूप में प्रकाशित कर जनता को उससे अवगत कराना आवश्यक है। इस संदर्भ में त्रिलोचन शास्त्री और उनके सहयोगियों के चलते उठाए गए कदम का पूरे देश में अच्छा संदेश गया है।
   प्रशासनिक भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए ऐसे बहुत से कार्यों को, उपायों को तलाशने की जरूरत है, जिनमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है। जैसे जब सरकार ने कम्प्यूटरों का आयात करने के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता समाप्त कर दी, इलेक्ट्रॉनिक विभाग में फैला भष्टाचार एक ही झटके में समाप्त हो गया। सरकार की प्रवृत्ति कुछ ऐसी हो गई है कि वह जितनी नई योजनाएं बनाती है, प्रत्येक में सरकारी स्वीकृति प्राप्त करने के लिए व्यवसायियों को  भारी कशमकश का सामना करना पड़ता है। हमें प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार की छोटी से छोटी संभावना का ध्यान रखकर उसे मिटाने के उपाय करने होंगे।
   भ्रष्टाचार को दूर करने का एक बड़ा उपाय हमें ई-गवर्नेंस के रूप में मिल गया है। ई-गवर्नेंस ने निर्णय प्रक्रिया और निर्णय के क्रियान्वयन को भी अत्यंत आसान कर दिया है। हमें अपनी निर्णय-प्रक्रिया में अधिकाधिक पारदर्शिता रखनी होगी और इस कार्य में यदि हम साफ्टवेयर का इस्तेमाल सहज क्रियाशीलता के साथ प्रत्येक महत्वपूर्ण निर्णय-प्रक्रिया में करते हैं तो मैं मानता हूं कि इससे सरकारी कार्यों और निर्णयों में पर्याप्त चुस्ती आएगी और भ्रष्टाचार की सम्भावनाएं भी समाप्त हो जाएंगी। ई-गवर्नेंस न केवल सेवाओं को सहज-सुलभ बनाता है बल्कि इससे यह पता लगाना भी आसान है कि कहां पर निर्णय या उसके क्रियान्वयन में देरी हो रही है।
   हैदराबाद के ई-सेवा केन्द्रों ने साधारण जनता की कठिनाइयों को जिस तरह दूर किया है, वह इस सन्दर्भ में एक प्रेरक उदाहरण है। सरकारी कार्यों से इसके चलते भ्रष्टाचार भी समाप्त हुआ है। सरकार की उपयोगी सेवाओं, विविध प्रमाण पत्रों, सरकारी अभिलेखों, अनुपत्रों, और तो और प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) के लिए देय शुल्क का भुगतान भी अब इसी माध्यम से होने लगा है।
   आज हमें उत्तरदायी प्रशासन चाहिए। सरकारी कार्यों में गलती, लापरवाही और भ्रष्टाचार करने वालों के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए। दुर्भाग्यवश हमारे देश के अधिकांश लोकायुक्त असफल हो चुके हैं, क्योंकि एक तो उन्हें सरकार के अन्तर्गत कार्य करना पड़ता है, दूसरे उनके कार्मिकों की गुणवत्ता भी बेहतर नहीं है। हमें अब एक अलग ज्यूरी खड़ी करनी होगी जो न्यायिक शक्तियों के साथ हमारी न्याय व्यवस्था के अंग के रूप में सिर्फ भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए त्वरित रूप में काम करे। इन्हें प्रशासकों और सरकारों के अन्तर्गत न रखकर केवल संसद के प्रति उत्तरदायी बनाना होगा। साथ ही, ज्यूरी द्वारा निर्णीत मामलों में उच्च स्तर पर सुनवाई का अवसर भी निषिद्ध करना होगा।
   मैं कहना चाहूंगा कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो भी इस संदर्भ में अपने हाथ में लिए गए मामलों मे जिस तत्परता से कार्रवाई करनी चाहिए, उसमें सफल नहीं हुआ है। केन्द्रीय जांच ब्यूरो के वर्तमान ढांचे में परिवर्तन कर उसमें तेज-तर्रार अफसरों की नियुक्ति की जानी चाहिए। केन्द्रीय जांच ब्यूरो को किसी केस के बारे में प्राथमिक तथ्यों का अन्वेषण बारीकी से करके उस पर आगे कदम बढ़ाना चाहिए।
   देश के औद्योगिक जगत, उद्यमी समूहों पर भी भ्रष्टाचार खत्म करने का दायित्व है। इन्फोसिस कम्पनी में हमने मूल्यों के क्षरण को रोकने के लिए इसी सन्दर्भ में एक कदम उठाया था। हमारे एक वरिष्ठ सहयोगी ने जब हमारी मूल्य-परंपरा के विपरीत काम किया तो हमें निर्णय लेने में मात्र कुछ घण्टे लगे और उनका त्यागपत्र ले लिया गया। आज देश को दृढ़ निश्चयी और सुयोग्य नेतृत्व जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चाहिए। ऐसे लोग हैं भी, बस जनता में विश्वास और कुछ करने का वातावरण बन जाए, तो हम सब कुछ ठीक कर लेंगे।[साभार भारतीय पक्ष]

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

यूपी का अनाज घोटाला

उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर हुए अनाज घोटाले से हाई कोर्ट भी बेहद चिंतित है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भ्रष्टाचार पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि "भ्रष्टाचार इस कदर है कि इससे देश की एकता पर खतरा पैदा हो गया है। क्या न्यायपालिका को चुप रहना चाहिए। हे भगवान सहायता करो और शक्ति दो। यदि न्यायपालिका चुप रही या असहाय हुई तो देश से लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। सरकार ने भ्रष्टाचार को रोकने में कदम नहीं उठाया तो देश की जनता कानून अपने हाथ में लेगी और भ्रष्टाचारियों को सड़कों पर दौड़ा कर पीटा जाएगा।" निश्चित ही हाई कोर्ट की इस टिप्पणी पर विचार करने की जरूरत है।

यूं तो सरकार वर्ष 2004 से वर्ष 2007 तक हुआ यह अनाज घोटाला 35 हजार करोड़ रूपए का बता रही है पर हकीकत में यह दो लाख करोड़ रूपए का है। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई है।
कब क्या हुआ -
नवंबर 2004: खाद्य एवं आपर्ति विभाग के प्रधान सचिव प्रशांत चतुर्वेदी ने रेलवे से बांग्लादेश और अन्य देशों को भेजे जा रहे अनाज के बारे में पूछा था।
दिसंबर 2004: रेलवे ने जिलों और स्टेशन की एक सूची उपलब्ध कराई जहां से बांग्लादेश को अनाज भेजने का काम होना था।
वर्ष 2005 : अधिकारियों को लखीमपुर खीरी के तत्कालीन डीएम एसपीएस सोलंकी समेत उन ऑफीसर्स की सूची मुहैया कराई गई जिनका अनाज घोटाले में नाम आया था।
वर्ष 2006 : उस समय सत्तारूढ़ मुलायम सिंह सरकार ने इस मामले की जांच ईओडब्लू (इकोनॉमिक ऑफिस विंग) को सौंपी। ईओडब्लू ने जांच शुरू की और अकेले बलिया जिले में 50 केस दर्ज किए।
जून 2007 : मायावती ने वर्ष 2007 में सीएम की कमान संभालने के बाद मामला विशेष जांच टीम के हवाले कर दिया। एसआईटी की जांच का दायरा राज्य के 54 जिलों में था।
सितंबर 2007 : एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर यूपी सरकार ने यह स्वीकार किया कि अनाज घोटाले से उसे भारी घाटा हुआ।
दिसंबर 2007 : मायावती सरकार ने अनाज घोटाला मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी।
वर्ष 2008 : सीबीआई ने सिर्फ तीन जिलों में कुछ ही मामलों पर ध्यान दिया जिसके बाद विश्वनाथ चतुर्वेदी ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर मामले की जांच तेजी से किए जाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने फिर यह मामला इलाहाबाद हाई को भेज दिया।
दिसंबर 3 2010 : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सीबीआई से पूरे मामले की जांच का आदेश दिया। छह महीने में जांच पूरी करने का आदेश।
सरकार का इनकार
उत्तर प्रदेश सरकार अनाज घोटाला दो लाख करोड़ रूपए होने से इनकार कर रही है। हालांकि, उसने सीबीआई जांच में पूरा सहयोग करने को कहा है।
सूचना विभाग के प्रमुख सचिव विजय शंकर पांडेय का कहना है कि केन्द्र से प्रति वर्ष दो हजार करोड़ रूपए का अनाज आता है इसलिए इसका घोटाला दो लाख करोड़ रूपए का नहीं हो सकता। मीडिया का यह कहना ठीक नहीं है कि घोटाला दो लाख करोड़ रूपए का है। हालांकि वह मानते हैं कि घोटाला तो घोटाला है चाहे वह दो लाख करोड़ का हो या फिर हजारों करोड रूपए का या कुछ रूपयों का।

सिर्फ 35 हजार करोड़ का घोटाला
सरकार ने हाई कोर्ट में पेश किए गए अनाज घोटाले के 35 हजार करोड़ रूपए से ज्यादा के होने की बात स्वीकार की है।

सरकार का कहना है कि केन्द्र सरकार से सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए तथा स्कूलों में बच्चों के मिडडे मील के लिए अनाज मिले। घोटाले के मुख्य साल 2004-05 में सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के तहत केन्द्र सरकार से चार लाख 79 हजार टन गेहूं, दो लाख 35 हजार टन चावल और गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए 14 लाख टन गेहूं, दस लाख 72 हजार टन चावल और चार लाख 52 हजार टन चावल मिडडे मील के मिले।
[साभार पत्रिका]

कर्नाटक का जमीन घोटाला

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येडि्डयूरप्पा भी इस साल जमीन घोटाले को लेकर आरोपों में घिरे। हालांकि, घोटाले में फंसने के बाद उनकी कुर्सी पर मंडरा रहा खतरा टल गया और आखिरकार भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें सीएम पद पर बनाए रखने का फैसला लिया।

येडि्डयूरप्पा ने सरकारी प्लॉट पर हेरफेर करके अपने बेटों और बहुओं को उनके रियल एस्टेट व्यापार के लिए दे दिए थे। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री येडि्डयूरप्पा ने दुबई के एक उद्योगपति के अनुरोध पर 11.25 एकड़ सरकारी जमीन कथित तौर पर डीनोटिफाई करवाई। इस उद्योगपति की येडि्डयूरप्पा के बेटे की रियल एस्टेट फर्म में भागीदारी है। डिनोटिफिकेशन के एक महीने बाद ही नई कंपनियां खोली गईं।

विपक्ष के हमले तेज होने के बाद येडि्डयूरप्पा ने कहा था कि अगर विपक्ष को एतराज न हो तो वह सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज से पिछले दस साल के भूमि डीनोटिफिकेशन और आवंटन की जांच कराने को तैयार हैं। येडि्डयूरप्पा ने स्वीकार किया था कि उन्होंने अपने बेटों को प्लॉट आवंटित किए। बाद में येडि्ड ने अपने बेटे बी. वाई विजेंद्र और बेटी उमादेवी से तुरंत सरकारी आवास खाली करने का फरमान दे दिया था। [साभार पत्रिका]

राडिया टाटा की बात

भारत के जाने माने उद्योगपति रतन टाटा पर 2जी स्पैक्ट्रम की जांच की फंदा पड़ा। दरसल कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया से हुई बातचीत सार्वजनिक होने के बाद टाटा को भी लाइसेंस मिलने में गड़बड़ी की आशंका जताई गई। टाटा इन टेपों के सार्वजनिक होने से घबरा गए और कोर्ट का दरवजा खटखटाया कि उनकी बातचीत के टैपों को सार्वजनिक तौर पर प्रकाशित होने से रोकना चाहिए। हालांकि सरकार ने टाटा को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि वह नीरा राडिया के टेप प्रकाशित हीोने पर रोक नहीं लगा सकती।

राडिया ने टाटा से भी की थी बात
नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े व्यावसायिक समूह टाटा ग्रुप को भी दलाल नीरा राडिया की सेवाएं लेने की जरूरत पड़ी थी। इसका खुलासा हुआ है नीरा राडिया के टैप किए गए फोन कॉल्स से। टाटा ने भले ही राडिया के टेप लीक होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हो पर उनकी राडिया से काफी बातें होती रहती थीं। टाटा उनके लिए हर समय उपलब्ध रहते थे।

राडिया और टाटा के बीच हुई बातचीत का अंश-

राडिया- मीडिया में भगदड़ मची है कि रतन टाटा को एयर इंडिया की अंतरराष्ट्रीय सलाहकार समिति का अध्यक्ष बनाया जा रहा है।
रतन टाटा- सही है मगर अभी तक कुछ हुआ नहीं है। एयर इंडिया के सीईओ जाधव मिलने जरूर आए थे।
राडिया- जाधव? वही तो प्रफुल्ल पटेल का आदमी है और बोइंग वाला सौदा करने के लिए लाया गया है। इसीलिए ये लोग तुम्हारा नाम इस्तेमाल करना चाहते हैं क्योंकि इससे इनकी साख बनी रहेगी। मेरे पास टाइम्स ऑफ इंडिया से फोन आया था और मैंने कह दिया कि फिलहाल मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगी।
टाटा- सही है जब कुछ हो नहीं जाए तब तक तो यही कहना पड़ेगा। तुम बता रही थी कि प्रफुल्ल ने तो आधिकारिक तौर पर कह दिया है कि रतन टाटा को हम अपने साथ शामिल कर रहे हैं। अच्छा है, उसे खुद बोलने दो।
राडिया- हम तो बस नो कमेंट ही करते रहेंगे। तुम लंदन पहुंच गए क्या?
टाटा- अभी तो तेल अबीब में पड़ा हूं, जहाज दो घंटे लेट है और देखते हैं, कब उड़ता है।
नीरा- तुम्हें तो अपने जहाज में ही उड़ना चाहिए। वैसे भी कल कोई प्रोग्राम है न।
टाटा- लंदन में है जहां मुझे काली टाई यानी एकदम फॉर्मल सूट पहनना पड़ेगा। तुम्हे तो पता है कि मुझे ऎसे कपड़े कितने पसंद हैं।
नीरा- मुझे भी बुला लेते तो मैं अपना काला गाउन पहन सकती थी।
टाटा- अच्छा होता कि तुम ही मेरी जगह काला गाउन पहन कर चली जाती, मगर अब तो बहुत देर हो गई है।
नीरा- मुझे तो अपना काला गाउन पहनने का मौका ही नहीं मिलता, रतन तुम कुछ करो ना।
टाटा- मुंबई में मौका निकालेंगे। वहां तुम अपनी हसरतें पूरी कर लेना। वैसे गाउन रखा कहां है, लंदन में या बॉम्बे में?
नीरा- दिल्ली में मेरे पास रखा है, मैं हमेशा अपने साथ रखती हूं मगर पहनने का मौका ही नहीं मिलता।
टाटा- अब जब तुम हिलेरी क्लिंटन से मिलो या मैं बताऊंगा कि कौन काले गाउन के लिए ठीक रहेगा तब इसको पहनना। तब तक ठीक से रखो।
नीरा- मैं तो तभी पहनूंगी जब अगली तुम काला सूट पहनोगे । मुझे बुलाओगे न? अरे हां, एटी एंड टी ने अनिल अंबानी के साथ सौदा खत्म कर दिया है। हुआ ये कि मुकेश ने अपना अमरीका वाला वकील यह चिटी लिख कर भेजा कि सबसे पहले इनकार करने का अधिकार मुकेश के पास है और उधर से जवाब आया कि अभी वे मामले पर विचार कर रहे हैं। मुकेश अब चाइना पावर से अपनी कंपनी के लिए बिजली की बात कर रहा है।
टाटा- चाइना पावर इस सौदे में शामिल होगा, इस पर मुझे शक है क्योंकि वो लोग काफी पुराने ढंग से सोचते हैं। वैसे भी सुना है कि मुकेश दूसरी पार्टी को दस परसेंट ही दे रखा है। अगर यही सौदा मुकेश के साथ हम कर रहे होते तो वह कभी नहीं करता। उन्हें तो हर चीज पर पूरा कंट्रोल चाहिए। वैसे भी मैं इसमें नहीं पड़ने वाला। मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।
नीरा- लेकिन फिलहाल तो वो फंसा हुआ है। उसने टेलीकॉम स्पेस ले लिया। एटी एंड टी ने मना कर दिया, एमटीएन ने मना कर दिया, ऑस्ट्रेलिया की टालेस्टा ने मना कर दिया। अब क्यू टेल से बात करने के अलावा और कोई चारा नहीं हैं। और हां, राजा बता रहा था कि अब तुम्हारे लिए भी स्पेक्ट्रम नहीं बचा है। जब कोर्ट का आदेश नहीं मिलेगा और रक्षा मंत्रालय स्पेक्ट्रम खाली नहीं करेगा तब तक अपना काम नहीं बनेगा। यह होना मुश्किल है, मैं आज राजा से मिली थी। वो बड़ा खुश नजर आ रहा था। चीफ जस्टिस के फैसले के बाद तो उसकी खुशी समझ में आती है। जब मैंने उसे बताया कि चिटी और चेक उसके पास आ रहा है तो और खुश हो गया।
टाटा- क्या वो जानता है कि दूसरी पार्टी उसे निपटाने पर तुली है।
नीरा- उसे पता है और वो मीडिया में मुझसे मदद मांग रहा है और मैं मदद कर रही हूं। दिक्कत सिर्फ यह है कि जब भी उसकी मदद करने की कोशिश करो तो वह कहीं भी जा कर कुछ उल्टा सीधा बोल देता है। उसका अपनी जुबान पर काबू ही नहीं है। अब सबसे नई खबर यह है कि कनिमोझी और राजा का चक्कर चल रहा है।
टाटा- सही है क्या?
नीरा- एकदम नहीं। कोरी अफवाह है। वो तो राजा मीडिया के सामने कनिमोझी के बारे में बड़ी प्यार भरी बातें करता है और इसीलिए सारा लफड़ा खड़ा हो जाता है। राजा की बातों से लगता है कि वो कनिमोझी को प्यार करता है और कनिमोझी उसे भाव नहीं देती। कनिमोझी मुझे कहती है कि मुझे राजा से बचाओ। राजा की आंखों में साफ नजर आता है कि वो कनिमोझी का दीवाना है। एक बात और, मेरी नई जगुआर कार शनिवार को आ रही है।
टाटा- मुबारक हो।
राडिया- तुम मिडिल ईस्ट में कहीं हो रतन?
टाटा- हां, मैं इजराइल में हूं।
नीरा- बजट तो अच्छा आ गया। ग्रामीण विकास का ध्यान रखा गया हैं।
टाटा- मैंने तो खैर किसी को कोई सलाह नहीं दी है। मुझे लगता है कि मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि दयानिधि मारन ए राजा के पीछे सारे हथियार ले कर पड़ गया है और मैं उम्मीद ही कर सकता हूं कि राजा टिका रहेगा। फिसलने के बहुत चांसेज हैं।
नीरा- नहीं फिसलेगा। अभी जब खबर आई थी कि एक केंद्रीय मंत्री ने मद्रास उच्च न्यायालय के एक जज को एक फैसले में बदलाव करने के लिए फोन किया था तो मारन ने राजा का सीधे नाम लिया था।
टाटा- ऎसा क्या?
नीरा- भारत के चीफ जस्टिस ने बयान जारी किया। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने भी कहा कि किसी मंत्री का कोई फोन किसी जज के पास नहीं आया था। इसमें तो मारन की खुद की इज्जत खराब हुई। उसे लोग बेवकूफ समझने लगे।
टाटा- ऎसा तो होगा ही। चाहे जो हो अगर कुछ हुआ होता तो इससे कनिमोझी का फायदा होता और मारन को कुछ नहीं मिलने वाला था। वैसे भी बाल एसोसिएशन के अध्यक्ष ने खुली अदालत में सच और झूठ का फैसला कर दिया गया।
नीरा- अब तो टेलीकॉम युद्व के दूसरे सत्र की लड़ाई शुरू हो गई और पता नहीं कितने युद्ध और होंगे।
टाटा- मुझे तो राजा पर हैरत हो रही है कि तुमने उसके लिए इतना किया, उसे कुर्सी पर बैठाया मगर वही तुम्हारे साथ खेल कर रहा है।
नीरा- मैंने कनि से बात की थी। मै उससे कल मिली थी और हम लोग साथ ही लौटे थे। मैंने कहा था कनि, देख लो क्या हो रहा है? राजा क्या कर रहा है? कनि ने कहा था कि वो राजा से बात कर के अपना रवैया ठीक करने के लिए कहेगी। इसके बाद मेरी राजा से बात हुई और उसने साफ साफ कहा कि नीरा तुम्ही बताओ कि मैं अदालत के फैसले के खिलाफ कैसे जाऊं? मैंने कहा कि मिस्टर राजा तुम अदालत के खिलाफ जा सकते हो। लाइसेंस के कागज में जो लिखा है उसे मानो तो कोर्ट को कोई दिक्कत नहीं होने वाली। आखिर चार चार मेगाहर्ट्स सबको देने की बात है। अब पता नहीं तुम्हारी समझ में आता है या नहीं।
टाटा- मगर अब यह नया एटॉर्नी जनरल या जो भी आया है....
नीरा- नहीं रतन, ये तो अच्छा ही हुआ है। मैं बताती हूं क्यों। वे बेचारा तो सिर्फ संवैधानिक मामलों से निपटेगा। सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम अच्छा आदमी हैं। मैंने स्विमिंग पूल में उसके साथ क्या किया था, मैं बता चुकी हूं। उसे ही सही मामलों में परिभाषा करनी है और मैं उससे मिलने जा रही हूं। फोन पर बात हुई थी और साढ़े पांच छह बजे फिर फोन करने के लिए कहा था। मैं तो घर पर मिलती हूं। वैसे भी वो अनिल अंबानी से नफरत करता है और उनकी नहीं मानेगा। बहुत कड़क आदमी है। राजा भी उसे ही लाने की सोच रहा है। कल राजा जब पीएम से थ्री जी की बात कर रहा था तो उसने भी यह कहा था कि यह मामला जीओएम को देने की बजाय कैबिनेट नोट बना दिया जाए। ये जल्दी करना पड़ेगा क्योंकि अनिल को 6.25 मेगाहर्ट्स देने के बाद राजा खुद एटी एंड टी को अपने शेयर बेचने वाला है, बातचीत चल रही है।
टाटा- तो ये खेल है।
नीरा- राजा को कहीं न कहीं से शेयर खरीदने वाले चाहिए वरना उसके पहले के कर्जे भी डूब जाएंगे। जब तक वो फैसला नहीं जुगाड़ता, उसका अपना धंधा चौपट हो जाएगा। [साभार पत्रिका]

2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला

अब तक के सबसे बड़े 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले पर आई कैग की रिपोर्ट ने देश को हिलाकर रख दिया है। यूपीए केबिनेट में दूरसंचार मंत्री रहे ए. राजा ने सरकार को तकरीबन पौने दो लाख करोड़ रूपए का चूना लगाया। जिसके चलते उन्हें अपनी कुर्सी भी गंवानी पड़ी।

इस घोटाले में कई नामचीन हस्तियों के नाम सामने आने से खलबली मचना स्वाभाविक था। कॉर्पोरेट घरानों के लिए लॉबिंग करने वाली नीरा राडिया की राजनीतिक हस्तियों के अलावा प्रमुख उद्योपतियों और पत्रकारों के साथ हुई बातचीत के टेप लीक होने के बाद उठा तूफान अभी भी नहीं थमा है। इसमें घोटाले के मुख्य आरोपी ए. राजा, लॉबिस्ट नीरा राडिया और मीडिया की मिलीभगत की घिनौनी तस्वीर सामने आई। कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया जनसंपर्क की दुनिया की बड़ी हस्ती हैं। जो एक तरफ टाटा समूह के लिए काम करती हैं, तो दूसरी तरफ रिलायंस समूह के लिए भी। बताया जा रहा है कि राजा को दूरसंचार मंत्री बनवाने में भी राडिया का योगदान रहा।

राडिया राजा की करीबी थीं और तीन टेलीकॉम ऑपरेटरों यूनिटेक, स्वान और डाटाकॉम को 2 जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस दिलवाने के प्रयास में लगी थीं। जारी लाइसेंसों में राजा की भी हिस्सेदारी है। राडिया और कनिमोझी (करूणानिधि की बेटी) ने पत्रकार वीर संघवी और बरखा दत्त के मार्फत राजा को दूरसंचार मंत्री बनवाने के लिए बातचीत की।

दूसरी ओर, 2-जी घोटाले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराए जाने की मांग को लेकर विपक्षी दलों के हंगामे के कारण संसद के शीतकालीन सत्र की कार्यवाही एक भी दिन सुचारू रूप से नहीं चल सकी। हालांकि, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई और ईडी को मामले की जांच वर्ष 2001 से किए जाने का आदेश देने से एनडीए को तगड़ा झटका लगा है। जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी।


क्या है स्पेक्ट्रम
2-जी यानी सेकेण्ड जनरेशन वायरलैस टेलीफोन टेक्नोलॉजी। 1991 में पहली बार फिनलैण्ड में रेडियोलिंजा कम्पनी की ओर से जीएसएम मोबाइल सर्विस में लॉंच की गई। डाटा ट्रांसफरिंग, टेक्स विद रेडियो सिग्नल्स आदि सुविधाएं इसमें दी गर्ई।

कैग के आरोप
नियमों को धता बताकर 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया, जो कि उसकी वास्तविक कीमत से बहुत कम था। वर्ष 2008 में 2001 की कीमतों के आधार पर आवंटन किया गया। कैग के मुताबिक यदि नियमों का पालन किया जाता, तो सरकार को हजारों करोड़ का मुनाफा हो सकता था।

यूएएस लाइसेंसों का आवंटन भी मनमाने तरीके से 2001 के बाजार मूल्यों के आधार पर किया गया। जबकि, 3 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से सरकार को 68 हजार करोड़ रूपए से ज्यादा का मुनाफा हुआ।

2 जी आवंटन की प्रक्रिया निराधार थी। खुद विभाग ने आवंटन में अपनी गाइडलाइन को नजरअंदाज किया। आवंटन तिथि अपने हिसाब से तय की गई। पहले आओ-पहले पाओ की नीति पर आवंटन हुआ। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सलाह भी दरकिनार की गई। 122 में 85 अयोग्य कंपनियों को लाइसेंस बांटे गए।

कैसे चला घटनाक्रम
2 जी स्पेक्ट्रम में घोटाले का मामला वर्ष 2008 में तब सामने आया, जब सरकार पर 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन में पहले आओ-पहले पाओ की नीति पर आवंटन शुरू किया। ए. राजा पर आरोप लगे कि उन्होंने 2001 की कीमतों के आधार पर 2 जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस कम्पनियों को बांटे। ऑल इण्डिया लाइसेंस की कीमत 1658 करोड़ रू. तय की। वो भी 4.4 मेगाहर्ट्ज के लिए।

- कम्पनियों को जारी लाइसेंस में घपला तब पकड़ा गया, जब लाइसेंस जमा करने और उसकी कीमत अदा करने की तिथि में मनमाना रवैया अपनाया गया।

- अक्टूबर 2009 में सीबीआई ने 2 जी स्पेक्ट्रम मामले पर पहली बार केस दायर किया।

- 9 नवम्बर 2010 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने जांच रिपोर्ट में पाया कि राजा दोषी हैं, उन्होंने कुछ चुनिंदा ऑपरेटरों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार को 1.76 लाख करोड़ का चूना लगाया।

- 14 नवम्बर को राजा ने देर रात प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस्तीफा सौंपा।

- 8 दिसंबर को सीबीआई ने राजा के घर पर छापा मारा। छापे में कई अहम दस्तावेज मिले। राजा की एक डायरी भी बरामद हुई जिसमें वर्ष 2003 से 2010 के बीच हुए घटनाक्रम का विस्तृत ब्यौरा है।


तीन तरह से हुआ खुलासा
पहला, जनवरी 2008 में लाइसेंस जारी होने से पहले आवेदक कंपनियों में से एक एसटेल ने राजा को ऑल इंडिया लाइसेंस के लिए 13621 करोड़ रूपए का प्रस्ताव दिया था, जिसे राजा मात्र 1658 करोड़ में बेच रहे थे। मतलब इस लाइसेंस से सरकार को नौ गुना ज्यादा राशि मिल सकती थी। जब इस कंपनी का प्रस्ताव खारिज हो गया, तो कंपनी दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गई, कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। राजा के मंत्रालय ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, तब तक दबाव के कारण एसटेल के मालिक पीछे हट गए, लेकिन उन्होंने बिगुल तो बजा ही दिया था। इसी कंपनी के प्रस्ताव के आधार पर कैग ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकार को 67300 करोड़ रूपए के घाटे का अनुमान लगाया।

दूसरा, दो कंपनियां, जिन्हें "पहले आओ-पहले पाओ" के आधार पर लाइसेंस मिला था, उन्होंने अपने लाइसेंस के ज्यादातर शेयर को काफी ऊंचे दामों पर बेच दिया। लाइसेंस के लिए जो राशि इन कंपनियों ने चुकाई थी, उससे कई गुना ज्यादा कमाई शेयर बेचकर इन कंपनियों ने की। उदाहरण के लिए यूनिटेक ने लाइसेंस शुल्क के रूप में सरकार को 1658 करोड़ रूपए चुकाए थे, लाइसेंस का 67 प्रतिशत हिस्सा कंपनी ने 6120 करोड़ रूपए में बेच दिया, इसका मतलब, कंपनी को प्राप्त लाइसेंस का कुल मूल्य 9100 करोड़ रूपए था। दूसरी कंपनी स्वान ने लाइसेंस के लिए 1537 करोड़ रूपए अदा किए थे और लाइसेंस का 44.7 प्रतिशत हिस्सा 3217 करोड़ रूपए में बेच दिया, इसका मतलब हुआ कि कंपनी को प्राप्त लाइसेंस का मूल्य 7192 करोड़ रूपए था। एसटेल ने 25 करोड़ रूपए का छोटा लाइसेंस खरीदा था, उसने लाइसेंस का 5.61 प्रतिशत हिस्सा बेचा, तो उसे 238.5 करोड़ रूपए प्राप्त हुए, इसका मतलब उसके लाइसेंस का वास्तविक मूल्य 4251 करोड़ रूपए था। इन आंकड़ों के आधार पर कैग ने आकलन किया कि लाइसेंस के वितरण में सरकार को 57600 करोड़ रूपए से 69300 करोड़ रूपए के बीच नुकसान हुआ।

तीसरा, 3 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से सरकार को जो भारी फायदा हुआ, उससे भी कैग ने बिना निविदा के 2 जी के आवंटन में 1,76,645 करोड़ रूपए के नुकसान का अनुमान लगाया। यह इतनी बड़ी राशि है कि घोटाले से उठ रही सड़ांध असहनीय हो गई। संसद के शीतकालीन अधिवेशन से पहले यह सब सामने आ गया, तो विपक्ष को हमले का पूरा मौका मिल गया, विपक्ष ने हमला किया और अब संसद निष्क्रिय हो गई है।

राजा, राडिया, मीडिया की तिकड़ी
2जी की कहानी मसालेदार भी है और गंभीर भी। इसमें घोटाले के मुख्य आरोपी राजा, कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया और मीडिया की मिलीभगत की घिनौनी तस्वीर सामने आई। आयकर विभाग ने वैध रूप से नीरा राडिया की फोन लाइनों को टेप किया है। कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया जनसंपर्क की दुनिया की बड़ी हस्ती हैं। जो एक तरफ टाटा समूह के लिए काम करती हैं, तो दूसरी तरफ रिलायंस समूह के लिए भी। उनकी नौ फोन लाइनों को 180 दिनों तक टेप किया गया। सीबीआई के निवेदन पर आयकर विभाग ने रिकॉर्डिग्स का एक हिस्सा उसे दिया है। जिससे कई राजनेता, उद्योगपति और मीडिया के सितारे सरेआम हो गए हैं। राडिया की कुल 5400 फोन वार्ताएं रिकॉर्ड हुई हैं, जिनमें से केवल 102 वार्ताएं नेट पर उपलब्ध हैं, जिनमें से केवल 23 को लिखा व प्रकाशित किया गया है। अनुमान लगाया जा सकता है कि कई बम अभी छिपे हुए हैं। आयकर विभाग द्वारा सीबीआई को दी गई जानकारी के अनुसार, नीरा राडिया राजा की करीबी थीं और तीन टेलीकॉम ऑपरेटरों यूनिटेक, स्वान और डाटाकॉम को 2 जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस दिलवाने के प्रयास में लगी थीं। जारी लाइसेंसों में राजा की भी हिस्सेदारी है। राडिया और कनिमोझी (करूणानिधि की बेटी) ने वीर संघवी और बरखा दत्त के मार्फत राजा को दूरसंचार मंत्री बनवाने के लिए बातचीत की। राडिया तब राजाथी अम्मा (करूणानिधि की दूसरी पत्नी व कनिमोझी की मां) के ऑडिटर की भी करीबी थीं। राडिया दूरसंचार कंपनियों द्वारा की जा रही लाइसेंस की बिक्री में भी सलाह दे रही थीं। यह एक शर्मनाक पहलू है, जिसकी पूरी सूचनाएं सामने नहीं आई हैं। टेप फोन वार्ताओं से पता चलता है कि राडिया ने ही राजा को 24 मई 2009 को फोन करके सबसे पहले दूरसंचार मंत्री बनाए जाने की सूचना दी थी। टेपों से पता चलता है कि दयानिधि मारन केन्द्रीय कैबिनेट में जगह पाने के लिए किस तरह प्रयासरत थे। वे करूणानिधि के रिश्तेदारों के जरिये दबाव बना रहे थे। इतना ही नहीं, राडिया बताती हैं, मारन ने मंत्री बनने के लिए करूणानिधि की एक पत्नी (स्टालिन की मां) को 600 करोड़ रूपए दिए।

स्वामी ने उठाया राजा की गिरफ्तारी का मुद्दा
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को निर्देश देने का अनुरोध किया। स्वामी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में इस बाबत दायर उनकी याचिका पिछले माह निरस्त किए जाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। स्वामी ने याचिका में दलील दी कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कोई मंत्री न तो अपने उत्तरदायित्व से मुकर सकता है और न ही सरकार की अनुमति के अभाव में मुकदमे का सामना करने से बच सकता है। सार्वजनिक सेवा से जुडे लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अनुमति लेने का प्रावधान सिर्फ उन्हें कर्तव्यों के निर्वहन में अनावश्यक उत्पीड़न से बचाने के लिए किया गया, न कि उन्हें भ्रष्टाचार में लिप्त होने की स्थिति में बचाने के लिए। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने संबंधी एक अन्य याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जिस पर पिछले दिनों न्यायाधीश जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केंद्र सरकार, राजा और सीबीआई को नोटिस जारी करके दस दिन में जवाब तलब किया था।

राजा की सफाई
ट्राई की सिफारिश के आधार पर ही स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया था। मैंने हमेशा प्रधानमंत्री की सहमति से काम किया है। मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं। मैं इस्तीफा नहीं दूंगा।

जांच की आंच करूणानिधि तक
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच की आंच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री व द्रमुक प्रमुख एम करूणानिधि तक पहुंच गई है। सीबीआई ने बुधवार को घोटाले के संबंध में करूणानिधि की पत्नी राजती के ऑडिटर, बेटी व सांसद कनिमोझी से जुड़े एनजीओ तमिल मैयम, कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया, ट्राई के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बैजल, पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा के रिश्तेदारों के आवास सहित 34 ठिकानों पर छापे मारे। सीबीआई के एक अधिकारी ने दावा किया कि तमिलनाडु के 27 और दिल्ली तथा नोएडा के सात स्थानों पर छापे के दौरान कुछ ऎसे दस्तावेज मिले हैं, जिनके आधार पर आरोपियों को दोषी ठहराया जा सकता है।

कनिमोझी के एनजीओ पर छापे
चेन्नई में तमिल पत्रिका "नक्कीरन" के एसोसिएट एडिटर कामराज, तिरूचिरापल्ली के निकट राजा के भाई तथा बहन के परिसर और करूणानिधि की बेटी कनिमोझी से जुड़े एनजीओ "तमिल मैयम" के परिसर पर भी कार्रवाई हुई।

राजा के करीबी कामराज पर स्पेक्ट्रम आवंटन में कई कंपनियों को बड़ा लाभ पहुंचाने के आरोप हैं। जांच एजेंसी ने राजा के ऑडिटर सुब्रमण्यम के परिसर पर भी छापे मारे। तिरूचिरापल्ली में सीबीआई ने निजी टीवी चैनल के रिपोर्टर जी. एल नरसिंहन के आवास पर छापा मारा। उन्हें राजा का करीबी माना जाता है।

बैंकों की भूमिका भी शक के घेरे में
सरकारी बैंकों की भूमिका पर सवालिया निशान खडे करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई कि संबंधित घोटाले के सिलसिले में अक्टूबर 2009 में मुकदमा दर्ज होने के बावजूद बैंकों ने 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंसी चार कम्पनियों को 10 हजार करोड़ रूपए का कर्ज बेझिझक दे दिया। बैंकों ने करोड़ों रूपए के ऋण ऎसे बांटे मानों मामूली रकम हो। सीबीआई को इसकी जांच करनी चाहिए। सीबीआई के वकील ने कहा कि यदि कोर्ट ऎसा चाहता है तो हम जांच को तैयार हैं। वह मामले को बैंक के धोखाधड़ी नियंत्रण प्रकोष्ठ के समक्ष ले जाएगी और जल्द ही रिपोर्ट सौंपेगी। भारतीय स्टेट बैंक ने लाइसेंस प्राप्त करने वाली यूनिटेक कंपनी को 2500 करोड़ रूपए उधार दिए।

सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी जांच
ताजा घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीबीआई व प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को 2001 से 2008 अवधि की जांच करने का आदेश दिया है। जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी। न्यायाधीश जीएस. सिंघवी व ए.के. गांगुली की पीठ ने हाल ही में कहा कि इन आरोपों में दम है कि स्पेक्ट्रम आवंटन में गड़बड़ी हुई है। ताजा आदेश के साथ ही राजग और संप्रग शासनकाल की दूरसंचार नीतियां जांच के दायरे में आ गई हैं। कोर्ट ने कहा कि घोटाले की जांच के लिए विशेष टीम की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सरकार अदालत की निगरानी में जांच पर सहमत हो गई है जो सही दिशा में बढ़ रही है।

यह भी कहा कोर्ट ने
सीबीआई व ईडी 10 फरवरी 2011 तक बंद लिफाफे में जांच की प्रगति रिपोर्ट सौंपे।
याचियों के सीबीआई जांच के आग्रह को स्वीकार नहीं करने का दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला सही नहीं था।
सीबीआई बताए कि ट्राई ने नाकाबिल लाइसेंसी कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की?
जांच में यह मुद्दा शामिल होगा कि दूरसंचार अफसरों ने लाइसेंस समझौते पर दस्तखत किए थे या नहीं?
दोहरी प्रौद्योगिकी सीडीएमए व जीएसएम के हस्तांतरण की जांच हों।
एजेंसियां किसी व्यक्ति या उसके पद, के प्रभाव में आए बिना जांच करें।
आयकर निदेशालय गृह सचिव की ओर से सीबीआई को दिए आदेश के तहत टेप की बातचीत की नकल सौंपें।
स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितता सम्बंधी आरोपों में पहली नजर में दम लगता है।
कैग रिपोर्ट से साफ है कि स्पेक्ट्रम आवंटन का लाइसेंस नाकाबिल कम्पनियों को दिए गए।
[साभार पत्रिका]

कॉमनवेल्थ घोटाला

दिल्ली में अक्टूबर महीने में 19वें कॉमनवेल्थ गेम्स सफलतापूर्वक संपन्न हुए और भारत ने 38 स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रौशन किया। पर कॉमनवेल्थ गेम्स होने से पहले ही जो सच सबके सामने आया वह बेहद चौंकाने वाला था। तकरीबन 2000 करोड़ रूपए के कॉमनवेल्थ घोटाले में पानी के मग से लेकर एसी और छतरी से लेकर ट्रेडमिल की बात हो या फिर कुर्सी से लेकर फ्रिज-कूलर तक खरीदने अथवा किराए पर लेने की बात हो या स्टेडियम और टेनिस टर्फ कोर्ट के निर्माण का मामला। हर चीज में जमकर धांधली हुई। इतना ही नहीं कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन की तैयारियों के नाम पर आयोजन से जुड़े अधिकारी व कर्मचारी विदेश यात्रा का लुत्फ उठाते रहे। वहीं, बैठकों में चाय नाश्ते के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई के लाखों रूपए उड़ाए गए।

आयोजन समिति ने कॉमनवेल्थ गेम्स में 45 दिनों के लिए ट्रेडमिल, फ्रिज, कूलर और एसी जैसी कई चीजें किराए पर लेने की बात कही लेकिन चौंकाने वाली बात यह थी कि इन सामानों का किराया इनकी कीमत से कहीं अधिक था।

14 अक्टूबर को शानदार ढंग से गेम्स खत्म होने के बाद एक बार फिर कॉमनवेल्थ घोटाले की पोटली खुल गई और कई अधिकारियों पर इसकी गाज गिरी। आयोजन समिति के टीएस दरबारी, संजय महेन्द्रू और एम जयचंद्रन को सीबीआई हिरासत में जाना पड़ा। यही नहीं, सीबीआई आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर भी शिंकजा कसने की तैयारी में है। विपक्ष ने भी संसद के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे को उठाकर खूब हंगामा मचाया।

सरकार को 2000 करोड़ का घाटा
राष्ट्रमंडल खेलों से सरकार को भारी नुकसान उठाना पड़ा। भले ही राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति ने दावा किया था कि वह सरकार से मिली एक-एक पाई चुका देगी लेकिन नवंबर महीने में लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों ने समिति के दावों की पोल खोलकर रख दी। सरकार को इन खेलों में लगभग 2000 करोड़ रूपए का घाटा हुआ।

केंद्रीय खेल राज्य मंत्री प्रतीक प्रकाशबापू पाटिल के मुताबिक सरकार ने आयोजन समिति को 2307.82 करोड़ रूपए जारी किए थे, जिसमें से 1669.42 करोड़ रूपए इन खेलों के आयोजन के लिए, ओवरलेज के लिए 557.40 करोड़ रूपए और टाइमिंग, स्कोरिंग तथा रिजल्ट सिस्टम के लिए 81 करोड़ रूपए दिए गए थे।

ऋण से कम राजस्व2307.82 करोड़ रूपए के ऋण के मुकाबले केवल 327.03 करोड़ रूपए का ही राजस्व प्राप्त हो पाया, जिससे सरकार को 1980.79 करोड़ रूपए का घाटा हुआ। उन्होंने बताया कि आयोजन समिति ने मर्केडाइजिंग के माध्यम से 500 करोड़ रूपए का राजस्व अर्जित करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इसे हासिल नहीं किया जा सका। [साभार पत्रिका]

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

An Important Issue: MUST READ

An Important Issue: MUST READ.
Politics is not a SERVICE anymore but a PROFESSION!!!






An Important Issue!
Salary & Govt. Concessions for a Member of Parliament (MP)

Monthly Salary :
Rs. 12,000/-

Expense for Constitution per month :
Rs. 10,000/-
Office expenditure per month :
Rs. 14,000/-

Traveling concession (Rs. 8 per km) :
Rs. 48,000/-
(eg. For a visit from South India to Delhi & return : 6000 km)

Daily DA TA during parliament meets :
Rs. 500/day

Charge for 1 class (A/C) in train :
Free (For any number of times)
(All over India )


Charge for Business Class in flights :
Free for 40 trips / year (With wife or P..A.)

Rent for MP hostel at Delhi
: Free.
Electricity
costs at home : Free up to 50,000 units.

Local phone call charge :
Free up to 1, 70,000 calls..

TOTAL expense for a MP
[having no qualification] per year : Rs.32, 00,000/-
[i.e. 2.66 lakh/month]
TOTAL expense for 5 years :
Rs. 1, 60, 00,000/-
For 534 MPs, the expense for 5 years :
Rs. 8,54,40,00,000/-
(Nearly 855 crores)
AND THE PRIME MINISTER IS ASKING THE HIGHLY QUALIFIED, OUT PERFORMING CEOs TO CUT DOWN THEIR SALARIES......
This is how all our tax money is been swallowed and price hike on our regular commodities.........
And this is the present condition of our country :




855 crores could make their lives livable!!

Think of the great democracy we have
&
FORWARD
THIS MESSAGE TO ALL REAL CITIZENS OF INDIA !!
ARE YOU?
I know hitting the Delete button is easier...but....try to press the Fwd button & make people aware!
clarity is power!!

रविवार, 19 दिसंबर 2010

सत्यम घोटाला

सत्यम घोटाला  जब सामने आया तो उसके कुछ दिनों बाद तो सरकारी स्तर पर तमाम तरह की बयानबाजी हुई कि उन सारी गड़बड़ियों को दूर कर लिया जाएगा जिस वजह से इतना बड़ा घोटाला संभव हो पाया। पर साल भर बाद भी वे मसले जहां के तहां उसी रूप में पड़े हुए हैं।
दरअसल, सत्यम के प्रवर्तक और अध्यक्ष बी. रामलिंगा राजू कई सालों से सत्यम कंप्यूटर के खाते में बैलेंस और मुनाफे को बढ़ा-चढ़ा कर दिखा रहे थे।  इस पर पर्दा डालने के लिए उन्होंने 1.6 अरब डाॅलर में खुद के परिवार की स्वामित्व वाली दो इंफ्रास्टक्चर कंपनियों को खरीदने की कोशिश की। पर अंदरूनी विरोध की वजह से ऐसा हो नहीं पाया और अमरीकी बाजार में कंपनी के शेयर में 55 फीसद तक की गिरावट आई।
इस काम में असफल रहने के बाद राजू से जब झूठ छुपाए नहीं छुपा तो उन्होंने 7 जनवरी 2009 को कंपनी से इस्तीफा देते हुए लिखे गए पत्र में अपने काले कारनामों को उजागर किया और तकरीबन 7136 करोड़ रुपए के घोटाले की बात सामने आई। खाते में दिखाए गए 5361 करोड़ रुपये में से 5040 करोड़ रुपये कहीं थी ही नहीं। इस पर ब्याज के तौर पर 376 करोड़ के फर्जी रकम को दिखाया गया। इस्तीफा देते वक्त राजू ने जो पत्र लिखा था उसमें उसने स्वीकार किया कि घपला सालों से चल रहा था। जांच के बाद सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की है उसमें कहा गया है कि सत्यम घोटाला तकरीबन 14,000 करोड़ का है।
सरकार ने सत्यम के संकट के समाधान के लिए तीन निदेशकों एचडीएफसी के दीपक पारेख, वकील और सेबी से जुड़े रहे सी. अच्युतन और नास्काॅम के प्रमुख रहे किरण कार्णिक का चयन किया। इस तिकड़ी ने सत्यम को काफी हद तक संभाल लिया। इन लोगों ने कंपनी को एक ऐसी स्थिति में लाया कि 13 अप्रैल 2009 को टेक महिंद्रा ने सत्यम का सम्माजनक अधिग्रहण किया और इस कंपनी का नाम हो गया महिंद्रा सत्यम। इसके बाद कंपनी की हालत तेजी से सुधरी। कंपनी की ओर से जारी एक बयान में बताया गया कि 7 जनवरी से 13 अप्रैल के बीच कंपनी के राजस्व में तकरीबन 25 से 30 फीसदी का नुकसान हुआ।
आज कंपनी कुल मिलाजुला कर अच्छी हालत में है। कंपनी में निवेशकों का विश्वास लौटा है और इस वजह से इसके शेयर की हालत सुधरी है। कंपनी को नए ग्राहक मिल रहे हैं। इतनी बदनामी के बावजूद फीफा जैसा ग्राहक अभी भी कंपनी के साथ बना हुआ है। हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया में बड़ी संख्या में कंपनी के कर्मचारियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। जब घोटाला सामने आया था उस वक्त कंपनी के पास 52,000 कर्मचारी थे। पर अभी सिर्फ 30,000 हैं। हालांकि, कंपनी ने दूसरी कंपनियों ने कई वरिष्ठ कर्मचारियों को अपने यहां लाया है।
इस एक साल में कंपनी भले ही अच्छी हालत में पहुंच गई हो लेकिन जिन सवालों को उस समय इस घोटाले ने खड़ा किया था, वे आज भी वहीं के वहीं हैं। उस वक्त आॅडिटर की भूमिका पर सवाल खड़ा किया गया था। मालूम हो कि कंपनी का आॅडिटर प्राइसवाटरहाउस था। इस लिहाज से तो सबसे ज्यादा गुनहगार प्राइसवाटरहाउस को माना जाना चाहिए। पर इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। जानकारों का कहना है कि आॅडिटिंग को लेकर भारत के कानून इतने लचर हैं कि यहां आॅडिटरों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करना बेहद मुश्किल है। सरकार को इतने बड़े घोटाले से सबक लेकर आॅडिटिंग के लेकर कानून को सख्त करना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
बताते चलें कि प्राइसवाटरहाउस दुनिया की प्रमुख आॅडिटिंग कंपनियों में से एक है। यह कंपनी प्राइसवाटरहाउस कूपर्स की सहयोगी कंपनी है। इसका नाम अब तक दुनिया में कई आर्थिक धांधलियों में आ चुका है। दिसंबर 2005 में ग्लोबल ट्रस्ट बैंक के बारे में गलत आडिटिंग की वजह से भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकिंग क्षेत्र की आॅडिटिंग से प्राइसवाटरहाउस कूपर्स को प्रतिबंधित कर दिया था। इसके बाद जुलाई 2007 में प्राइसवाटरहाउस कूपर्स ने कई अरब डाॅलर के आर्थिक घपले में मामले को रफा-दफा करने के लिए 225 मिलियन डाॅलर संबंधित पक्ष को चुकाए। इसके कुछ ही दिन पहले मार्च 2007 में रूस की तेल कंपनी ओएओ युकोस से जुडे़ एक मामले की जांच के लिए प्राइसवाटरहाउस कूपर्स के कार्यालय पर छापा मारा गया। इतने खराब रिकार्ड के बावजूद इसके खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं किया जाना कई तरह के सवाल खड़े करता है।
सत्यम घपले के सामने आने के बाद सेेबी की भूमिका को भी संदेह की निगाह से देखा जा रहा था। सेबी की भूमिका पर इसलिए सवाल उठ रहे थे कि आखिर कैसे इतने बड़े घोटाले का अनुमान लगा पाने में यह संस्था नाकाम रही। उस वक्त सेबी के अधिकारियों ने बड़े लंबे-चैड़े दावे किए थे लेकिन इस एक साल में सेबी ने कोई वैसा तंत्र विकसित नहीं किया है जिसके सहारे आगे से ऐसे घोटाले नहीं हो पाए, यह सुनिश्चित किया जा सके।
सत्यम घोटाले के मामले में स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका भी सवालों के घेरे में रही है। स्वतंत्र निदेशकों की कंपनी के प्रति जिम्मेदारी को लेकर सवाल तो लंबे समय से उठते रहे हैं। स्वतंत्र निदेशक नियुक्त करने की कोई पारदर्शी व्यवस्था नहीं होने की वजह से भी इनकी भूमिका पर सवाल उठता रहा है। साल भर पहले यह बात की जा रही थी कि स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति को लेकर कोई दिशानिर्देश जारी होना चाहिए। पर अभी तक तो ऐसा हो नहीं पाया है।
दरअसल, इस तरह के घोटालों को रोकने के लिए अगर जरूरी बंदोबस्त नहीं किया जाए तो आखिरकार नुकसान तो आम निवेशकों का ही होना है। आम तौर पर ऐसे तूफान में बड़ी मछलियां तो सुरक्षित बच निकलती हैं लेकिन छोटी मछलियों को बर्बादी का सामना करना पड़ता है। सत्यम के मामले में भी ऐसा ही हुआ था। कंपनी के शेयर धारक बर्बादी के कगार पर पहुंच गए थे। जिस दिन घोटाला उजागर हुआ उस दिन बंबई स्टाॅक एक्सचेंज के सेंसेक्स में 7.25 फीसदी और सत्यम के शेयरों में 78 फीसदी गिरावट दर्ज की गई थी। न्यूयार्क स्टाक एक्सचेंज में कंपनी के शेयरों में 84 फीसद की गिरावट आई थी। जाहिर है कि सबसे ज्यादा नुकसान शेयर धारकों का ही हुआ।
पर अहम सवाल यह है कि इन शेयर धारकों के गुनहगार को क्या कोई सजा मिलेगी? जाहिर है कि इस पूरे मामले में सबसे बड़ा खलनायक राजू ही है। पर क्या उसे सजा मिल पाएगी? अगर राजू का गुनाह साबित हो जाता है तो भारतीय कानूनों के मुताबिक यहां राजू को अधिकतम दस साल की कैद और 25 करोड़ रुपए जुर्माना भरना पड़ सकता है। राजू और अन्य के खिलाफ कार्रवाई का एक प्रमुख आधार सिक्योरिटीज एक्सचेंज एक्ट 1934 की धारा 10-बी का जनरल एंटी फ्राड प्राविजन और नियम 10-बी-5 होगा। कानून के जानकारों के मुताबिक सत्यम मामले के गुनहगारों पर कंपनी कानून की धारा 623 के तहत आर्थिक मामलों में गलतबयानी के लिए दो साल तक की कैद का प्रावधान है। इसके अलावा धारा 629 के तहत गलत हलफनामा देने के लिए सात साल तक की कैद का प्रावधान है। पर भारतीय न्यायिक व्यवस्था को देखते हुए यह सवाल उभरना स्वाभाविक है कि क्या गुनहगारों को सजा मिल पाएगी?
बहरहाल, पिछले साल जब सत्यम घोटाला उजागर हुआ था तो कई एजेंसियों ने ऐसा कहा था कि सत्यम के अलावा और भी कई नाम ऐसे घोटालों के लिए सामने आ सकते हैं। पर ऐसा नहीं हुआ। ब्रिटेन के इंवेस्टमेंट बैंक नोबल ग्रुप की एक रपट के मुताबिक बीएसई में पंजीकृत बीस फीसद कंपनियों में एकाउंटिंग की गड़बड़ियां हैं। इस बात की ओर संकेत बीएसई की रपट भी करती है। बीएसई की लिस्टिंग एग्रीमंेट के क्लाउज 49 में यह प्रावधान है कि हर कंपनी को उसके बोर्ड, आॅडिट समिति, काॅरपोरेट गवर्नेंस और अकाउंट से जुड़ी जानकारी बीएसई को देनी होती है। पर बीएसई की ही रिपोर्ट बताती है कि उसके यहां लिस्टेड 4,995 कंपनियों में से 1,228 कंपनियों ने काॅरपोरेट गवर्नेंस रिपोर्ट नहीं दाखिल किया। क्या इन कंपनियों काॅरपोरेट गवर्नेंस रिपोर्ट नहीं दाखिल करना इन्हें सवालों के घेरे में नहीं लाता।
दरअसल, भविष्य में सत्यम जैसे घोटाले नहीं हों इसके लिए बुनियादी स्तर पर कुछ बंदोबस्त किया जाना बेहद जरूरी है। सबसे पहले तो कंपनी कानून में सरकार को संशोधन करना चाहिए। संशोधन के जरिए इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कंपनियां ज्यादा से ज्यादा सूचनाएं सार्वजनिक करें और उनके व्यवहार में पारदर्शिता हो। इसके अलावा कानून बनाकर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बीएसई में सूचीबद्ध हर कंपनी काॅरपोरेट गवर्नेंस रिपोर्ट बीएसई को हर हाल में दे। साथ ही साथ आॅडिटर की भूमिका भी स्पष्ट की जानी चाहिए। कानून के जरिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अगर कोई आॅडिटर ऐसे घोटाले के लिए जिम्मेदार पाया जाता है तो उसके खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई हो। इसके अलावा स्वतंत्र निदेशकों के नियुक्ति के मामले में भी स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार होना चाहिए और इनकी नियुक्ति में पारदर्शिता बरती जाए, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। बहस तो इस बात पर भी होनी चाहिए कि क्या पूंजीवाद का वह माॅडल जिस पर भारत चल रहा है और जो सत्यम जैसे घोटाले को पैदा कर रहा है, वह भारतीय संदर्भ में कितना प्रासंगिक है?
[हिमांशु शेखर]

घोटाला टॉप 10

2 जी स्पेक्ट्रम                    2008                  1.76 लाख करोड़
राष्ट्रमंडल खेल                    2009-10          70 ह़जार करोड़
स्टांप पेपर (तेलगी)          1992-2002      20 ह़जार करोड़
सत्यम                               2009                 14 ह़जार करोड़
बोफोर्स                               1987                 16 मिलियन डॉलर
चारा घोटाला                     1996                 900 करोड़
हवाला                               1996              18 मिलियन डॉलर
आईपीएल                        2009              6000 करोड़ की लीग है और हर फिक्स्ड मैच पर
सट्टेबाजी होती थी.
स्टॉक मार्केट घोटाला
(हर्षद मेहता)             1992                4 ह़जार करोड़
(केतन पारीख)          1999-2001     1 ह़जार करोड़

[साभार चौथी दुनिया]

क्या है विकीलीक्स, कौन है असांजे

विकीलीक्‍स द्वारा अमेरिकी दूतावासों से जुड़े ढाई लाख गोपनीय संदेश जारी किए गए जाने के बाद अमेरिका सहित पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया है। इतिहास में खुफिया जानकारियों का इतना बड़ा खुलासा इससे पहले कभी नहीं हुआ था। विकीलीक्‍स ने इससे पहले इराक और अफगानिस्‍तान में अमेरिकी सेना की ज्‍यादती की पोल खोल कर अमेरिका की नींद उड़ा दी थी।

विकीलीक्स एक वेबसाइट है, जो संवेदनशील दस्तावेज प्रकाशित करती है। यह एक अंतरराष्ट्रीय गैर लाभ मीडिया संगठन है। इसमें दस्तावेज किस सूत्र से प्राप्त हुए हैं, यह गुप्त रखा जाता है। यह दस्तावेज किसी देश की सरकार, कंपनी के, संस्था के या किसी धार्मिक संगठन के भी हो सकते हैं।

2006 में जूलियन असांजे नामक शख्‍स ने विकीलीक्स वेबसाइट की स्थापना की। असांजे विकीलीक्स. कॉम के एडिटर इन चीफ और प्रवक्ता हैं। असांजे का मानना है कि उनकी पांच लोगों की टीम ने इतने अहम और गुप्त दस्तावेज जारी किए हैं, जितनी पूरी दुनिया की मीडिया में नहीं किए गए हैं। इस वेबसाइट का संचालन ‘द सनशाइन प्रेस’ करती है। अपने लांच के एक साल के अंदर ही वेबसाइट ने दावा किया था कि उसकी वेबसाइट पर 12 लाख से भी अधिक ऐसे दस्तावेज हैं, जिसके बारे में दुनिया नहीं जानती। इसे कई पुरस्कार मिल चुके हैं।

2008 में इंग्लैंड की ‘इकोनॉमिस्ट मैगजीन’ ने विकीलीक्स को ‘न्यू मीडिया अवॉर्ड’ दिया था। 2009 में विकीलीक्स और इसके प्रमुख जूलियन असांजे को एमनेस्टी इंटरनेशनल ने यूके मीडिया अवॉर्ड दिया। मई 2010 में ‘न्यूयॉर्क डेली न्यूज’ ने विकीलीक्स को उन वेबसाइट्स की सूची में सबसे ऊपर रखा, जिनमें समाचार बदल देने की क्षमता है। विकीलीक्स को कोई भी व्यक्ति ऐसी जानकारी इलेक्ट्रॉनिक ड्रॉप बॉक्स के जरिए दे सकता है, जो सेंसर्ड हो, प्रतिबंधित हो या पहले कभी न प्रकाशित हुई हो। विकीलीक्स की वेबसाइट विकीलीक्सडॉटओआरजी पर खबर देने संबंधित जानकारी जुटाने के लिए ऑन लाइन चैट की भी सुविधा है।

हैकर असांजे1971 में जन्मे जूलियन असांजे 1980 के दशक के आखिर में हैकिंग करने वाले ग्रुप 'इंटरनैशनल सबवर्सिव्स' के सदस्य थे। इस ग्रुप को मेंडेक्स के नाम से भी जाना जाता था। इस दौरान 1991 में मेलबर्न में मौजूद असांजे के घर पर ऑस्ट्रेलियाई पुलिस ने छापेमारी भी की थी। १९९४ में असांजे ने कंप्यूटर प्रोग्रामर की हैसियत से काम करना शुरू किया। 1999 में असांजे ने लीक्स. ओआरजी नाम से एक डोमेन रजिस्टर्ड कराया था। लेकिन असांजे का कहना है तब उन्होंने इस डोमेन पर कोई काम नहीं किया था।

अमेरिका के लिए 'सिरदर्द'
असांजे अमेरिका के लिए लंबे से समय से 'सिरदर्द' बने हुए हैं। उन्होंने इराक युद्ध से जुड़े लगभग चार लाख दस्तावेज अपनी वेबसाइट पर जारी किए थे जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड एवं नाटो की सेनाओं के गंभीर युद्ध अपराध करने के सबूत मौजूद होने का दावा किया गया था। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओवामा तक ने उन्हें इसके खिलाफ चेतावनी दी। इसके बाद गिरफ्तारी के डर से उन्हें छिप-छिप कर जीवन बिताना पडा। एक इंटरव्यू में असांजे ने कहा कि वह झूठे नामों से होटलों में रह रहे हैं, अपने बालों को दूसरे रंगों में रंग रहे हैं और क्रेडिट कार्ड की जगह नकद राशि का उपयोग कर रहे हैं। इसके लिए अक्सर उन्हें अपने दोस्तों से पैसे उधार लेने पड़ते हैं।


रेप का आरोप
अगस्त, 2010 में असांजे पर एक महिला के साथ बलात्कार करने का आरोप लगा। साथ ही यह आरोप भी लगा कि दो दिनों बाद ही असांजे ने स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में एक महिला के यौन उत्पीड़न का आरोप लगा। असांजे ने अपने बचाव में कहा कि मेरे एक महिला के साथ शारीरिक संबंध बने थे, लेकिन वह दोनों की मर्जी से हुआ था। असांजे ने कहा कि मेरे ऊपर आरोप लगाने वाले दरअसल विकीलीक्स के खुलासों से सहमे हुए हैं।

कैसे लीक हुए दस्‍तावेज

ताजा मामला दुनियाभर के देशों में अमेरिकी राजदूतों द्वारा विदेश मंत्रालय को भेजे गए गोपनीय संदेशों से जुड़ा है जिसने अमेरिकी विदेश मंत्रालय की ‘रणनीति’ की पोल खोल दी। आरोप है कि ये गोपनीय संदेश अमेरिकी सैनिक ब्रेडले मैनिंग ने ही चुराए और विकीलीक्‍स वेबसाइट के संस्‍थापक जूलियन असांजे को सौंप दिए।

इन गोपनीय दस्‍तावेजों को समटने वाले टेक्‍सट फाइल की साइज 1.6 गीगाबाइट है। यह फाइल पहले एक सीडी में थी जिसके कवर पर मशहूर पॉप सिंगर लेडी गागा की तस्‍वीर थी। इससे ऐसा लगता है कि यह लेडी गागा के किसी एल्‍बम की सीडी है। बाद में इसे एक मेमोरी स्टिक में ट्रांसफर किया गया। यह स्टिक इतना छोटा था कि इसे चाबी के छल्‍ले में आसानी से लटका कर चला जा सकता है।

आने वाले दिनों में इस दस्‍तावेजों के सार्वजनिक होने से और बड़े खुलासे सामने आएंगे। दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति अमेरिका की सहयोगी और दुश्‍मन देशों के प्रति क्‍या नीति है, एक-एक कर परतें खुल रही हैं। विकीलीक्‍स की ओर से दुनियाभर के 250 से अधिक देशों में स्थित अमेरिकी दूतावासों की 251287 फाइलें सार्वजनिक की जा रही हैं जो अमेरिकी प्रशासन को भेजी गई थीं। इन फाइलों पर लिखा था कि इन्‍हें गैर-अमेरिकी नागरिकों को किसी भी सूरत में नहीं दिखाना है।

अमेरिकी सेना के मुताबिक ब्रेडले मैनिंग (22) नाम के एक सैनिक पर गोपनीय दस्‍तावेज लीक किए जाने का संदेह है जो पहले बगदाद के पास एक सैन्‍य शिविर पर तैनात था। इस सैनिक ने न सिर्फ अमेरिकी विदेश मंत्रालय की गोपनीय दस्‍तावेज लीक किए बल्कि अफगानिस्‍तान और इराक में अमेरिकी सेना की कार्रवाई की कई तस्‍वीरें भी उतारी हैं जिसमें स्‍थानीय लोगों की मौत हुई थी।

संदिग्‍ध सैनिक को पिछले सात महीने से कैद कर रखा गया है। सैनिक को ५२ साल की कैद की सज़ा सुनाई गई है। इस सैनिक की एक हैकर से हुई बातचीत भी रिकार्ड की गई है। बातचीत के दौरान उसने कहा कि वह ‘लेडी गागा’ जैसी कोई सीडी ला रहा है जिसकी सूचनाएं एक छोटी फाइल में समेटी जाएगी। वह पिछले आठ महीने से रोज 14 घंटे गोपनीय सूचनाओं के नेटवर्क पर नजरें गड़ाए हुए है। अमेरिकी सेना के खुफिया विश्‍लेषक रह चुके मैनिंग की नजर में विकिलीक्‍स सूचना के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं की आजादी का प्रतीक है।

किए बड़े खुलासे

2006 दिसंबर विकीलीक्स ने पहला डॉक्यूमेंट पोस्ट किया था। इसमें सोमालिया के सरकारी अधिकारी की हत्या के निर्णय पर शेख हसन दाहिर ने हस्ताक्षर किए थे।
2008 सितंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान सारा पालिन ने अपने कार्य संबंधी संदेश को भेजने के लिए निजी याहू ई-मेल का प्रयोग किया था। यह पब्लिक रिकॉर्ड लॉ का उल्लंघन था।
2009 जनवरी में यूनाइटेड नेशन्स की 600 आंतरिक रिपोर्ट की सूचनाओं को लीक लिया।
2009 जनवरी में यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एन्जिलिया की क्लाइमेट रिसर्च यूनिट के विवादास्पद डॉक्यूमेंट को छापा गया। इसमें मौसम वैज्ञानिकों के बीच ई-मेल में हुई बातें थीं। यूनिवर्सिटी के अनुसार, ई-मेल और दस्तावेज सर्वर को हैक कर हासिल किए गए थे।
19 मार्च 2009 को विभिन्न देशों की उन गैरकानूनी साइट्स की सूची प्रकाशित की जो प्रतिबंधित थीं। इसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी और आतंकवाद से जुड़ी साइट्स के पते थे।28 जनवरी 2009 को पेरू के राजनेताओं और बिजनेसमैन के बीच 86 टेलीफोन कॉल की रिकॉर्डिग जारी की। इसमें पेट्रोगेट ऑयल स्कैंडल से जुड़ी बातें थीं, जो कि 2008 में हुआ था।
16 जनवरी, 2009 को ईरानी समाचार एजेंसी ने रिपोर्ट दी कि ईरान की एटोमिक एजेंसी ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख घोल्म रेजा ने 12 वर्षो की सेवा के बाद अज्ञात कारणों से तत्काल इस्तीफा दे दिया। बाद में विकीलीक्स ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया कि ईरान में गंभीर परमाणु दुर्घटना हुई थी। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स ने जारी एक रिपोर्ट में कहा कि एनरिच सेंट्रीफ्यूगल ऑपरेशनल्स (संवर्धित परमाणु सामग्री) की संख्या 4700 से रहस्यमयी तरीके से घट कर 3900 हो गई थी।
25 नवंबर, 2009 को विकीलीक्स ने 5.70 लाख पेजर मैसेज को रिलीज किया। ये संदेश 11 सितंबर को हुई आतंकी हमले के दिन पेंटागन अधिकारियों और न्यूयॉर्क सिटी पुलिस विभाग के बीच किए गए थे।
2010 अक्टूबर में इराक युद्ध से संबंधित चार लाख दस्तावेज जारी किए।
22 अक्टूबर 2010 को अल जजीरा ने पहली बार इस रिलीज का विश्लेषण किया।
25 जुलाई, 2010 को अफगान युद्ध में 2004-09 के बीच हुई घटनाओं, नागरिकों की मौतों के बारे में 92 हजार दस्तावेज जारी किए।
15 मार्च, 2010 को अमेरिकी रक्षा विभाग के 32 पेज की खुफिया रिपोर्ट रिलीज की। इसमें 2008 की काउंटरइंटेलीजेंस एनालिसिस रिपोर्ट थी। असांजे ने कहा कि सेना की रिपोर्ट पूरी तरह से सही नहीं है।

[साभार दैनिक भास्कर]

विकीलीक्स [सरकारों की नींद उड़ाती साइट]

ऑस्ट्रेलिया वासी जूलियन एस्सेंज को एक दिन सुझा कि क्यों ना एक ऐसी साइट बनाई जाए जहाँ लोग अपने मन की बात धड़ल्ले से लिख सकें, जहाँ लोग भ्रष्टाचार और मानवाधिकार हनन के खिलाफ सबूत पेश कर सकें, जहाँ सरकारों के "कुकर्मो" की पोल खोली जा सके. इस विचार के साथ ही जन्म हुआ विकीलीक्स नामक साइट का जो कि आजकल काफी चर्चा में है.

विकीलीक्स को जनवरी 2007 में लॉंच किया गया है और इसके बाद लगभग 3 साल के भीतर इस साइट ने ना केवल कई देशों की सरकारों की नींद उड़ा दी है बल्कि कई कॉर्पोरेट घरानों और हस्तियों की पोल भी खोली है. विकीलीक्स फिलहाल अमेरिका की अफगान लड़ाई और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की आतंकवादियों के साथ सांठगाठ का पर्दाफाश कर रही है. परंतु ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि विकीलीक्स ने इतने बड़े षड़यंत्र की पोल खोली हो. विकीलीक्स ने पहले भी कई बार ऐसे दस्तावेज लीक किए हैं जो रातोंरात दुनिया भर के समाचारपत्रों के शीर्षक बन गए थे.

विकीलीक्स ने ही अबु गरीब जेल और उसमें अमेरिकी सैन्य अधिकारियों द्वारा कैदियों के ऊपर किए जाने वाले जूल्मों का ब्यौरा प्रकाशित किया था. इससे संबंधित दस्तावेज विकीलीक्स पर छपते ही दुनिया भर में हंगामा मच गया था और इसका असर इतना व्यापक था कि राष्ट्रपति ओबामा को घोषणा करनी पड़ी कि अबु गरीब जेल को बंद कर दिया जाएगा.

इसके अलावा विकीलीक्स ने अमेरिकी जेट पायलटों द्वारा किए गए युद्ध अपराधों की भी पोल खोली थी और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों से पहले रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी की प्रत्याशी सारा पालीन के निजी ईमेल भी प्रकाशित कर दिए थे. इससे सारा पालीन की योजनाओं को धक्का लगा था.

और आईएसआई और अमेरिकी सेना के अफगान मिशन से संबंधित भारी भरकम दस्तावेजों के लीक होने के बाद से तो दुनिया भर में ना केवल अमेरिका की किरकिरी हुई है बल्कि पाकिस्तान के लिए भी जवाब देना भारी पड़ रहा है. यह विकीलीक्स का असर है.

विकीलीक्स पर 3 साल के भीतर करीब 12 लाख दस्तावेजों को लीक किया गया है. कहना ना होगा अधिकतर दस्तावेज अमेरिकी सरकार से संबंधित हैं.

तो क्या विकीलीक्स का मुख्य उद्देश्य सरकारों की पोल खोलना ही है?
शुरू में ऐसा नहीं था. जब विकीलीक्स की शुरूआत की गई थी तो उद्देश्य यह था कि इंटरनेट जनता को एक ऐसा हथियार उपलब्ध कराया जाए जहाँ उन्हें सही, सटीक और गुप्त जानकारियाँ मिल सके. इस साइट पर कोई भी व्यक्ति लोगिन करने के बाद गुप्त दस्तावेज रख सकता था.

परंतु समय के साथ इस साइट के नियमों को बदला गया और अब कोई भी दस्तावेज बिना जाँच के प्रकाशित नहीं किए जाते. अब कोई भी दस्तावेज प्रकाशित होने से पहले जाँच की प्रक्रिया से गुजरते हैं. इसके लिए विकिलीक्स कुछ समीक्षकों की सहायता लेता है. इसके अलावा जो व्यक्ति जानकारी लीक कर रहा है उसकी भी जाँच की जाती है. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि लीक करने वाले व्यक्ति का उद्देश्य क्या है और वह जानकारी कितनी सही है.

अब विकीलीक्स पर मात्र वही दस्तावेज लीक किए जाते हैं जो राजनीतिक, ऐतिहासिक अथवा सांस्कृतिक महत्व के हों. प्रधानता उन दस्तावेजों को दी जाती है जो एशिया और अफ्रीका महाद्विप के तानाशाही देशों के खिलाफ हो. इस वजह से चीन सहित कई अन्य देशों तथा कुछ बैंकों और कोर्पोरेट घरानों ने इस साइट को बंद कराना भी चाहा था परंतु सफलता नहीं मिली. यह साइट एक जटील ओनलाइन वेब होस्टिंग तकनीक पर आधारित है और इससे यह पता लगाना कठीन हो जाता है कि इस साइट से संबंधित सर्वर कहाँ मौजूद हैं.

विकीलीक्स कभी दिवालिया होने की कगार पर थी और चर्चा थी कि यदि इस साइट को सहारा नहीं मिला तो यह बंद हो जाएगी. वैसे यह सरकारों के लिए तो खुशी की ही बात थी. परंतु ऐसा हुआ नहीं. विकीलीक्स को कहाँ से "सहारा' मिला यह तो ज्ञात नहीं परंतु यह साइट अभी भी कई लोगों के रक्तचाप को बढा रही है.
[साभार तरकश.कॉम,पंकज बेगाणी]