रविवार, 19 दिसंबर 2010

टू जी स्पैक्ट्रम घोटाला

पौने दो लाख करोड़ का टू जी स्पैक्ट्रम घोटाला कोई एक दिन में नहीं हो
गया। हाई प्रोफाइल दलालों ने ए. राजा को दो बार संचार मंत्री बनाने के
लिए पूरी लॉबिंग की। ताकि वे मिल जुलकर अरबों बना सकें। मामला साफ होता
है नीरा राडिया की अलग-अलग लोगों से फोन पर हुई बातचीत से। यह फोन
इनकमटैक्स विभाग ने टेप किया। किसने नीरा से क्या कहा, पढ़िए सीधी बातचीत
का हिंदी अनुवाद।
किसने नीरा से क्या कहा, पढ़िए सीधी बातचीत का हिंदी अनुवाद

मैं पीएम के घर से निकलते ही आजाद से बात करूंगी : बरखा दत्त
बरखा दत्त - ग्रुप एडिटर, एनडीटीवी चैनल (अंग्रेजी)
नीरा- हाय, क्या मैंने तुम्हें जगा दिया?
बरखा- नहीं नहीं, मैं उठ गई थी, पूरी रात ही हो गई। मामला वैसे ही अटका हुआ है।
नीरा- हां, सुनो, वो उनसे सीधी बात करना चाहते हैं। अब यही समस्या है।
बरखा- हां तो, पीएम उसके (दयानिधि मारन के) मीडिया में चले जाने से खफा हैं।
नीरा- लेकिन बालू ने ऐसा ही किया ना.. करुणानिधि ने उसे ऐसा करने को नहीं कहा था।
बरखा- अच्छा, ऐसा क्या।
नीरा- उससे कहा गया था कि वह आ जाए और कांग्रेस से बात करे।
बरखा- और उसने सब खुलासा कर दिया।
नीरा- हां, मीडिया बाहर ही मौजूद था।
बरखा- हे भगवान, तो अब क्या? मुझे उन्हें क्या बताना है? बताओ, मैं वो
बात कर लूंगी?
नीरा- मैंने उनकी (करुणानिधि की) पत्नी और बेटी से लंबी बात की। उनकी
समस्या यह है कि वे (कांग्रेस नेता) सीधे करुणानिधि से बात करना चाहते
हैं। लेकिन वे ऐसा मारन और बालू के सामने नहीं कर सकते। उन्हें करुणानिधि
से सीधी बात करने की जरूरत है।
कांग्रेस के पास तमिलनाडु में बहुत से नेता हैं, जो करुणानिधि से सीधी
बात कर सकते हैं। सबसे बड़ी समस्या अझागिरी के समर्थक हैं, जो मारन को
कैबिनेट में लिए जाने के खिलाफ हैं और अझागिरी को राज्य मंत्री का दर्जा
देने से असंतुष्ट हैं।
बरखा- मुझे पता है।
नीरा- कांग्रेस को करुणानिधि को यह बताने की जरूरत है कि हमने मारन के
बारे में कुछ नहीं कहा।
बरखा- ओके, मुझे उनसे फिर बात करने दो।
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बरखा- हाय नीरा
नीरा- बरखा, हाय, मैंने उनसे फिर बात की और वे यह मान रही हैं कि उन्हें
इस तरह सूची नहीं भेजनी चाहिए, .. लेकिन मुद्दा यह है कि विभागों के
बंटवारे पर कभी कोई चर्चा नहीं हुई।
बरखा- क्या वाकई?
नीरा- बरखा, मुझे पता चला है कि कांग्रेस किसी से बात कर रही है लेकिन
भगवान जाने डीएमके में वह कौन है।
बरखा- हां, मारन ही होना चाहिए।
नीरा- हां, अब उन्हें यह करने की जरूरत है कि उन्हें कनीमोझी से बात करनी
होगी ताकि वह अपने पिता से चर्चा कर सकें।
यहां तक कि प्रधानमंत्री के साथ चर्चा में वही दुभाषिए की भूमिका में थी,
लेकिन वह सिर्फ दो मिनट की ही बातचीत थी।
बरखा- ओके
नीरा- वो कह रही है कि कोई वरिष्ठ नेता जैसे गुलामनबी आजाद.. क्योंकि
उनके पास बातचीत का अधिकार है।
बरखा- ठीक है। मैं आरसीआर (प्रधानमंत्री निवास) से निकलते ही आजाद से बात करूंगी।
बरखा- देखो, क्या हुआ कि कांग्रेस में सभी शपथ ग्रहण समारोह में व्यस्त
थे। तो मैं किसी से बात नहीं कर पाई। अब सब खत्म हुआ है तो मैं फोन करती
हूं।
नीरा- कनीमोझी अभी चेन्नई पहुंची हंै। मेरी अभी बात हुई है।
बरखा- दया कहां है? कहां है मारन?
नीरा- दया शपथ ग्रहण समारोह में नहीं आया क्योंकि उसे वापस बुला लिया
गया। वह करुणानिधि को बताने गया है कि उसे अहमद पटेल ने शपथ के लिए
बुलाया था। लेकिन नेता (करुणानिधि ) कह रहे हैं कि इसके लिए उसे कांग्रेस
में शामिल होना पड़ेगा।
बरखा- (हंसते हुए) तो अब?
नीरा- तो राजा ही बचा है जिसे शामिल होना चाहिए। और वो 8.40 बजे की
फ्लाइट से आ रहा है..
बरखा- ओके


मैंने दोनों भाइयों के बीच बातचीत की कोशिश की थी :प्रभु चावला

प्रभु चावला : संपादक, भाषाई प्रकाशन, इंडिया टुडे
नीरा- हाय प्रभु!
प्रभु- हां बताओ
नीरा- कुछ नहीं, मैं सिर्फ आपसे स्थितियां समझना चाहती थीं। प्रभु- किस
बारे में? नीरा- इस महान ऐतिहासिक फैसले के बारे में क्या विचार है।
प्रभु- कौन-सा, बॉम्बे वाला?
नीरा- जिसने परिवार को देश हित के ऊपर खड़ा कर दिया।
प्रभु- देखिए जहां दोनों भाई (मुकेश और अनिल अंबानी) शामिल होंगे, वहां
देश को भी शामिल होना पड़ेगा?
नीरा- शायद यह देश के लिए अच्छा नहीं होगा।
प्रभु- लेकिन दोनों भाई एक-दूसरे से बात नहीं करते। ऐसा कोई है भी नहीं
जो दोनों को बात करने के लिए मजबूर कर दे।
नीरा- वो तो होगा नहीं, प्रभु तुम भी जानते हो।
प्रभु- मैंने कोशिश की थी, नहीं हुआ। वो (मुकेश अंबानी) कभी जवाब नहीं
देता। इसलिए मैंने उसे फोन करना बंद कर दिया है। उसको मैंने 15-20 दिन
पहले मैसेज भेजा था।
उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसके बाद मैंने मैसेज
नहीं भेजा। फैसला आने से पहले मैं उसके बारे में मालूम करना चाहता था।
नीरा- क्या फैसला उसके खिलाफ आ रहा है।
प्रभु- हां, लेकिन इतना घमंडी है ना, उसके साथ क्या करें? दोनों भाइयों
को मैं समझ नहीं पाता।
नीरा- प्रभु मुझे एक बात बताओ। फैसला फिक्स है ना?
प्रभु- देखो इस देश में, दोनों के पास फिक्स करने की क्षमता है। छोटा भाई
पैसे कम खर्च करता है, कंजूस है सबसे ज्यादा। लेकिन वो बड़े भाई के
मुकाबले ज्यादा मोबाइल है। बड़ा भाई तो धीरूभाई की तय की हुई सीमा से आगे
जाना ही नहीं चाहता। वो उन्हीं लोगों पर निर्भर है जिन्हें धीरूभाई ने
बनाया। अब वे किसी काम के नहीं। अनिल ने नए सूत्र बनाए हैं, नए संपर्क,
नई सोच विकसित की है। यदि उसको कुछ.. क्योंकि आज-कल सब फिक्स हो जाता है।
यदि सुप्रीम कोर्ट में उलट-फेर हो गया तो वह सालों के लिए बर्बाद हो
जाएगा। यदि उसके पक्ष में फैसला नहीं आया तो? तब तो वह खत्म ना?
नीरा- कोर्ट के आर्डर में, 328 पन्नों में, मैं आपको दे सकती हूं। मैं
बताऊं डुअल टेक्नोलॉजी मामले में जो वाहनवती ने करवाया, राजा ने डॉ.
शर्मा को ट्राई चेअरमैन बनाया। मैं गारंटी देती हूं उसमें वही पैन ड्राइव
इस्तेमाल की गई होगी।
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प्रभु- जिस तरह वह (मुकेश) सुप्रीम कोर्ट जा रहा है, इससे ज्यादा मैं
तुमको कुछ नहीं बता सकता। जिन लोगों को वह इस काम के लिए इस्तेमाल कर रहा
है, वे भरोसे के काबिल नहीं हैं। तो इन कमजोर कड़ियों को मजबूत करना है
ना?
नीरा- अनिल अपना लगा होगा, अपने लोगों के जरिए, डीएमके के जरिए, अपने चीफ
जस्टिस के साथ।
प्रभु- नहीं, चीफ जस्टिस केरल का है। मुकेश जिस तरीके से चल रहा है, मैं
कहना चाहता हूं कि वह सही नहीं है।
नीरा- मैं बात करूंगी थोड़ी देर में, मैं बोलूंगी कि वो (मुकेश अंबानी)
आपसे बात करे।
प्रभु- मैंने उसे मैसेज भेजा था। दस बार मैसेज भेजा, उसने जवाब नहीं
दिया। मैं इस मामले में पड़ना नहीं चाहता.. क्योंकि मेरा बेटा अनिल के
लिए काम करता है। मैं उससे कुछ भी बात नहीं करना चाहता। लेकिन सुन तो
लेता हूं, इधर-उधर पोलिटिकल लोगों से। लेकिन वह उसके लिए नहीं खड़ा हो
रहा है। मेरा बेटा इस केस में शामिल नहीं है। वह इस केस में मेरे बेटे पर
भरोसा नहीं करता है। अनिल को मेरे बेटे पर भरोसा नहीं है।
नीरा- आपका बेटा किसके साथ है?
प्रभु- वह अनिल के लिए काम करता है। उसकी अपनी वकालत कंपनी है। वह कई
लोगों के लिए काम करता है। अनिल की मोबाइल कंपनी ने उसे काम दिया था। इस
केस में वह उसके साथ नहीं है। लेकिन इधर-उधर से चीजें तो पकड़ ही लेते
हैं सब। मेरे पास जो जानकारी है, वह कानूनी क्षेत्र के सूत्रों से मिली
है। एक बार जब तुम बताओगी कि प्रभु, लंदन के लोगों से मिली जानकारी के
आधार पर तुम्हारे बारे में कुछ कह रहे थे तो वो समझ जाएगा।
नीरा- उन्हें बताऊंगी। प्रभु-छोटा भाई बड़ा हरामी है।
नीरा-हरामी तो है लेकिन हर वक्त हरामीपना नहीं चलता ना?

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एनडीटीवी पर बरखा दत्त का बयान
दिलीप पडगांवकर (टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व संपादक) ने पूछा : जब द्रमुक
और कांग्रेस मंत्रिमंडल गठन पर पहले ही बातचीत कर रहे थे, तो आपको
संदेशवाहक बनने की क्या जरूरत थी?
बरखा : एक पत्रकार की हैसियत से मैं तो केवल और जानकारी हासिल करने के
लिए राडिया से बात कर रही थी।
संजय बारू (बिजनेस स्टैंडर्ड के संपादक)- आपनेखुद कहा कि आप राडिया का
संदेश अहमद पटेल तक पहुंचा देंगी?
बरखा : वह तो मैंने उनका विश्वास जीतने के लिए झूठा वादा किया था।
संजय बारू - आपने यह भी कहा कि आपने राजा के बारे में गुलाम नबी आजाद से
बात कर ली है?
बरखा : मैंने झूठ बोला था।
मनु जोसेफ (ओपेन मैगजीन के संपादक) - सरकार के गठन में कॉपरेरेट पीआर का दो
पार्टियों से बातचीत करना क्या दशक की सबसे सनसनीखेज खबर नहीं थी? आपने
इसे रिपोर्ट क्यों नहीं किया?
बरखा - हां, मैं सही फैसला नहीं ले पाई, लेकिन इससे यह सिद्ध नहीं होता
कि मैं किसी भी तरह सत्ता की दलाली या भ्रष्टाचार में लिप्त थी।

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हेडलाइन्स टुडे पर प्रभु चावला की सफाई
मैं मुकेश अंबानी को वैसे ही सलाह दे रहा था जैसे ‘द हिंदू’ के संपादक
श्रीलंका सरकार को देते हैं

हरतोष सिंह बल (ओपन पत्रिका के राजनीतिक संपादक) : आप मुकेश अंबानी को
गैस के बंटवारे पर फैसले के बारे में चेतावनी क्यों देना चाहते थे?
चावला : नहीं, मैं तो इस बारे में केवल उनसे बात (प्रोब) करके जानकारी
लेना चाहता था।
बल : आपने टेप की स्क्रिप्ट में बदलाव कर दिया है। टेप में चेतावनी
(फोरवार्न) शब्द है जबकि आपने स्क्रिप्ट में उसे बदल कर गहराई से बात
करना (प्रोब) कर दिया?
चावला : नहीं आपका आरोप सरासर निराधार है। मैंने चेतावनी शब्द का प्रयोग
ही नहीं किया।
एम जे अकबर (इंडिया टुडे के संपादकीय निदेशक): लेकिन आप मुकेश अंबानी को
बिना मांगे सलाह क्यों देना चाहते थे?
चावला - मेरा मानना है कि मुकेश और अनिल
के झगड़े से पूरा देश प्रभावित हो रहा था। इसीलिए मैं उन दोनों को ही
सलाह देना चाहता था कि उन्हें देश हित में समझौता कर लेने में कोई हर्ज
नहीं है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
वैसे भी मैं अपने विचारों को लेकर अपने दर्शकों और पाठकों के अलावा और
किसी के प्रति उत्तरदाई नहीं हूं। सभी संपादक अपने कॉलम में सलाह देते
हैं। मैं तो वैसे ही सलाह दे रहा था जैसे एन राम श्रीलंका की सरकार को
देते हैं।
एन राम (द हिंदू के संपादक) - मुझे भरोसा है कि प्रभु चावला ने कुछ भी
गलत नहीं किया। बल्कि उन्हें तो सफाई देने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम
में बुलाया ही नहीं जाना चाहिए था।
[साभार Dainik bhaskar]

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