इससे पहले कि 2जी घोटाला खबर बनती, देश की प्रमुख जांच एजेंसियां
नामी-गिरामी गुनाहगारों को रिहाई दिलाने की कला में माहिर हो चुकी थीं. देश
में घोटालों के सुखद अंत की भी परंपरा रही है.
इसके बावजूद बोफोर्स और कॉमनवेल्थ गेम्स घोटालों से इतर 2जी घोटाले ने देश में नीति निर्माण के तरीकों को झकझोड़ते हुए टेलिकॉम बाजार को पूरी तरह बदल दिया. वहीं 2जी मामले में दूसरा अपवाद है कि तथाकथित घोटाले की जांच कर रही सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय पूरी तरह से सरकारी मंत्रालयों से सामंजस्य रखते हुए उनके निर्देश पर काम कर रही थीं. लिहाजा, केन्द्र सरकार का भ्रष्टाचार के लिए जीरो टॉलरेंस का दावा यहां कोई मायने नहीं रखती.
हालिया इतिहास में 2जी घोटाला संभवत: पहला मौका है जब अदालत को यह कहने में कोई गुरेज नहीं था कि अभियोजन पक्ष को यह नहीं पता था कि क्या साबित किया जाना है. लिहाजा जांच की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल के साथ-साथ यह तय है कि पूरी कोशिश दिशाहीन रही. वहीं हकीकत यह भी है कि 2जी मामले ने न सिर्फ राजनीतिक भूचाल लाने का काम किया बल्कि देश में टेलिकॉम क्रांति कि दिशा को भी पलटने का काम किया है.
यह पहला मौका है कि किसी कोर्ट को कहना पड़ा,'सभी आम धारणा पर चल रहे थे, अफवाह सच्चाई पर हावी थी. कोर्ट में किसी भी आरोप को साबित करने के लिए कोई साक्ष्य तक पेश नहीं किया गया.' वहीं सच्चाई यह भी है कि इन्हीं आरोपों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने आवंटित किए जा चुके 122 टेलिकॉम लाइसेंस को निरस्त करने का फैसला सुनाया. लेकिन सीबीआई ने पांच साल तक कोशिश करने के बाद भी एक आरोप को साबित करने के लिए भी पर्याप्त सुबूत एकत्र नहीं किया.
लिहाजा कुछ गंभीर सवाल...यदि यह घोटाला नहीं होता...
1. जिन निवेशकों ने 2012 में लाइसेंस गंवाया उनके नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है? नेता और अधिकारी क्लीनचिट पा चुके हैं. लिहाजा अब इंडस्ट्री को हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा? उन कर्मचारियों की भरपाई कौन करेगा जिन्होंने लाइसेंस रद्द होने के बाद अपनी नौकरी गंवा दी? हकीकत यही है कि 2जी के झटके से सुस्त पड़ा टेलिकॉम सेक्टर अभी तक अपनी रफ्तार नहीं पकड़ पाया है.
2. वैश्विक स्तर पर निवेश के ठिकाने के तौर पर भारत की स्थिति को 2जी घोटाले ने बुरी तरह प्रभावित किया है. इस घोटाले के बाद किसी भी मल्टीनैशनल टेलिकॉम कंपनी ने भारत का रुख नहीं किया है. जिन्होंने किया था वह 2012 में अपना लाइसेंस गवां बैठे और कभी न लौटने के लिए यहां से चले गए. लिहाजा, इसकी जिम्मेदारी किसके सर मढ़ी जाएगी?
3. इस पूरे विवाद में किसे फायदा पहुंचा? 2008 से पहले देश के टेलिकॉम सेक्टर में कुछ चुनिंदा कंपनियां थीं. लेकिन 2जी आवंटन ने सेक्टर में प्रतियोगिता का माहौल पैदा किया जिसके बाद देश में कॉल दरें लगातार कम होने की दिशा में आगे बढ़ीं. लेकिन 2012 में लाइसेंस रद्द होने के बाद सेक्टर में तीन से चार कंपनियां बचीं और टेलिकॉम सेक्टर का अधिकांश काम इन्हीं कंपनियों के पास सीमित हो गया. लिहाजा, प्रतियोगिता को खत्म करने के लिए कौन जिम्मेदार है?
4. इस 2जी घोटाले ने केन्द्र सरकार को स्पेक्ट्रम की नीलामी के जरिए अपना राजस्व बढ़ाने का मौका दिया. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि नीलामी प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है लेकिन इससे स्पेक्ट्रम की कीमतों में इजाफा हुआ और टेलिकॉम कंपनियों की जेब पर यह भारी पड़ने लगा. कंपनियों ने इस कीमत को तो वहन किया लेकिन बदलती टेक्नोलॉजी में वह अपने नेटवर्क को मजबूत करने का खर्च करने में विफल हो गईं. इसका नतीजा यह हुआ कि तेज गति और नए जेनरेशन के स्पेक्ट्रम के बावजूद देश में टेलिकॉम सर्विस खराब होने लगी. लिहाजा, बीते कुछ वर्षों में महंगी और घटिया टेलिकॉम सर्विस के लिए कौन जिम्मेदार है?
केन्द्र सरकार ने हाल ही में मंत्रियों का समूह का गठन किया है जिसे कर्ज में डूबी हुई टेलिकॉम कंपनियों को उबारने का काम करना है. भारतीय टेलिकॉम कंपनियों पर 4.85 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और यह कर्ज देश के बैंकों के लिए बड़ी चुनौती है. इसके अलावा टेलिकॉम कंपनियों को लगभग 3 लाख करोड़ रुपये आवंटित स्पेक्ट्रम के मद में केन्द्र सरकार को अदा करना है. लिहाजा, इन सवालों के साथ एक सवाल और पूछा जाना चाहिए. घोटाले में किसे फायदा हुआ यह सब पूछ रहे हैं लेकिन पूछा यह भी जाना चाहिए कि घोटाले से किसे फायदा पहुंचा?
इसके बावजूद बोफोर्स और कॉमनवेल्थ गेम्स घोटालों से इतर 2जी घोटाले ने देश में नीति निर्माण के तरीकों को झकझोड़ते हुए टेलिकॉम बाजार को पूरी तरह बदल दिया. वहीं 2जी मामले में दूसरा अपवाद है कि तथाकथित घोटाले की जांच कर रही सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय पूरी तरह से सरकारी मंत्रालयों से सामंजस्य रखते हुए उनके निर्देश पर काम कर रही थीं. लिहाजा, केन्द्र सरकार का भ्रष्टाचार के लिए जीरो टॉलरेंस का दावा यहां कोई मायने नहीं रखती.
हालिया इतिहास में 2जी घोटाला संभवत: पहला मौका है जब अदालत को यह कहने में कोई गुरेज नहीं था कि अभियोजन पक्ष को यह नहीं पता था कि क्या साबित किया जाना है. लिहाजा जांच की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल के साथ-साथ यह तय है कि पूरी कोशिश दिशाहीन रही. वहीं हकीकत यह भी है कि 2जी मामले ने न सिर्फ राजनीतिक भूचाल लाने का काम किया बल्कि देश में टेलिकॉम क्रांति कि दिशा को भी पलटने का काम किया है.
यह पहला मौका है कि किसी कोर्ट को कहना पड़ा,'सभी आम धारणा पर चल रहे थे, अफवाह सच्चाई पर हावी थी. कोर्ट में किसी भी आरोप को साबित करने के लिए कोई साक्ष्य तक पेश नहीं किया गया.' वहीं सच्चाई यह भी है कि इन्हीं आरोपों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने आवंटित किए जा चुके 122 टेलिकॉम लाइसेंस को निरस्त करने का फैसला सुनाया. लेकिन सीबीआई ने पांच साल तक कोशिश करने के बाद भी एक आरोप को साबित करने के लिए भी पर्याप्त सुबूत एकत्र नहीं किया.
लिहाजा कुछ गंभीर सवाल...यदि यह घोटाला नहीं होता...
1. जिन निवेशकों ने 2012 में लाइसेंस गंवाया उनके नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है? नेता और अधिकारी क्लीनचिट पा चुके हैं. लिहाजा अब इंडस्ट्री को हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा? उन कर्मचारियों की भरपाई कौन करेगा जिन्होंने लाइसेंस रद्द होने के बाद अपनी नौकरी गंवा दी? हकीकत यही है कि 2जी के झटके से सुस्त पड़ा टेलिकॉम सेक्टर अभी तक अपनी रफ्तार नहीं पकड़ पाया है.
2. वैश्विक स्तर पर निवेश के ठिकाने के तौर पर भारत की स्थिति को 2जी घोटाले ने बुरी तरह प्रभावित किया है. इस घोटाले के बाद किसी भी मल्टीनैशनल टेलिकॉम कंपनी ने भारत का रुख नहीं किया है. जिन्होंने किया था वह 2012 में अपना लाइसेंस गवां बैठे और कभी न लौटने के लिए यहां से चले गए. लिहाजा, इसकी जिम्मेदारी किसके सर मढ़ी जाएगी?
3. इस पूरे विवाद में किसे फायदा पहुंचा? 2008 से पहले देश के टेलिकॉम सेक्टर में कुछ चुनिंदा कंपनियां थीं. लेकिन 2जी आवंटन ने सेक्टर में प्रतियोगिता का माहौल पैदा किया जिसके बाद देश में कॉल दरें लगातार कम होने की दिशा में आगे बढ़ीं. लेकिन 2012 में लाइसेंस रद्द होने के बाद सेक्टर में तीन से चार कंपनियां बचीं और टेलिकॉम सेक्टर का अधिकांश काम इन्हीं कंपनियों के पास सीमित हो गया. लिहाजा, प्रतियोगिता को खत्म करने के लिए कौन जिम्मेदार है?
4. इस 2जी घोटाले ने केन्द्र सरकार को स्पेक्ट्रम की नीलामी के जरिए अपना राजस्व बढ़ाने का मौका दिया. हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि नीलामी प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी है लेकिन इससे स्पेक्ट्रम की कीमतों में इजाफा हुआ और टेलिकॉम कंपनियों की जेब पर यह भारी पड़ने लगा. कंपनियों ने इस कीमत को तो वहन किया लेकिन बदलती टेक्नोलॉजी में वह अपने नेटवर्क को मजबूत करने का खर्च करने में विफल हो गईं. इसका नतीजा यह हुआ कि तेज गति और नए जेनरेशन के स्पेक्ट्रम के बावजूद देश में टेलिकॉम सर्विस खराब होने लगी. लिहाजा, बीते कुछ वर्षों में महंगी और घटिया टेलिकॉम सर्विस के लिए कौन जिम्मेदार है?
केन्द्र सरकार ने हाल ही में मंत्रियों का समूह का गठन किया है जिसे कर्ज में डूबी हुई टेलिकॉम कंपनियों को उबारने का काम करना है. भारतीय टेलिकॉम कंपनियों पर 4.85 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और यह कर्ज देश के बैंकों के लिए बड़ी चुनौती है. इसके अलावा टेलिकॉम कंपनियों को लगभग 3 लाख करोड़ रुपये आवंटित स्पेक्ट्रम के मद में केन्द्र सरकार को अदा करना है. लिहाजा, इन सवालों के साथ एक सवाल और पूछा जाना चाहिए. घोटाले में किसे फायदा हुआ यह सब पूछ रहे हैं लेकिन पूछा यह भी जाना चाहिए कि घोटाले से किसे फायदा पहुंचा?