राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले में जेल की सलाखों
के पीछे कैद बसपा सरकार के कद्दावर मंत्री और अब सपा की शरण में गए बाबू
सिंह कुशवाहा को एक और तगड़ा झटका लगा है। प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने
कुशवाहा की नकदी समेत करीब साठ करोड़ रुपये की सम्पत्ति जब्त की है। यह
कार्रवाई बांदा, लखनऊ, नोएडा और दिल्ली में की गयी है। इस सम्पत्ति में
करीब पांच प्रतिशत हिस्सेदारी देवरिया जिले के पूर्व विधायक राम प्रसाद
जायसवाल की है। इडी अब कुशवाहा के खिलाफ मुकदमा चलायेगा।
एनआरएचएम घोटाले में कुशवाहा की गिरफ्तारी के बाद सीबीआइ की रिपोर्ट के आधार पर इडी ने वर्ष 2012 में उनके खिलाफ जांच पंजीकृत की। करीब दो साल की छानबीन के बाद इडी ने पाया कि कुशवाहा ने अपने एजेंटों, नौकरों और सहयोगियों के नाम काफी सम्पत्ति बनाई। जांच की अवधि में इडी ने दो सौ से अधिक लोगों से पूछताछ की और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद कार्रवाई की। कुशवाहा के खिलाफ पहले चरण की बड़ी कार्रवाई करते हुए इडी ने काफी सम्पत्ति जब्त की है। इसमें कुशवाहा का बैंक में जमा 7.30 करोड़ रुपये भी है। इडी से मिली जानकारी के मुताबिक कुशवाहा की बांदा स्थित तथागत शिक्षा समिति तथा भगवत प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट के भवन जब्त किये गये हैं। राजधानी के गौरी में उनकी सात एकड़ की महंगी जमीन भी जब्त की गयी है। नोएडा में औद्योगिक क्षेत्र की जमीनों के साथ ही दिल्ली और लखनऊ के दो फ्लैट्स भी इडी ने जब्त किये हैं। लखनऊ के फ्लैट्स कालिदास मार्ग चौराहा और पार्क रोड स्थित बहुमंजिला रिहायशी अपार्टमेंट में है, जबकि दिल्ली के पॉश इलाके में भी उनका फ्लैट है। फेक नाम से बनाई गयी इन सम्पत्तियों के जब्त होने से उनके कई साझीदारों के होश उड़ गए हैं।
इडी की अदालत में चलेगा मुकदमा : बाबू सिंह कुशवाहा की जब्त की गयी सम्पत्ति का मुकदमा दिल्ली स्थित इडी की न्यायिक अथारिटी में चलेगा। इस सम्पत्ति को सही रास्ते से हासिल करने संबंधी साक्ष्य दिए जाने का कुशवाहा को मौका मिलेगा। अगर अथारिटी ने कुशवाहा के पक्ष में फैसला नहीं दिया तो यह सारी सम्पत्ति नीलाम कर दी जायेगी।
मुकद्दर ने ला दिया फिर उसी मुकाम पर
यह वक्त का तकाजा है कि बांदा के अतर्रा में लकड़ी का टाल लगाकर अपनी रोजी-रोटी शुरू करने वाले बाबू सिंह कुशवाहा का तकदीर ने साथ दिया तो वह बुलंदियों पर पहुंच गए। बसपा शासन में मिनी मुख्यमंत्री के तौर वह एक हस्ताक्षर बन गए, लेकिन एनआरएचएम घोटाले से तकदीर ने ऐसी पलटी मारी कि फिर वह उसी मुकाम पर आ गए। जिस धन और वैभव के लिए उन्होंने भ्रष्टाचार को अपनी परछाई बना लिया, अब वह भी रेत की तरह मुट्ठी से फिसलने लगा है।
इडी द्वारा साठ करोड़ की सम्पत्ति जब्त किये जाने के बाद बाबू सिंह कुशवाहा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। कयास यही लग रहा है कि अभी उनकी बहुत सी बेनामी सम्पत्तियां जब्त होंगी। पिछले डेढ़ दशक से सुर्खियों में रहे कुशवाहा ने कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें ऐसे दिन देखने पड़ेंगे। कांशीराम के सम्पर्क में आने के बाद फर्श से अर्स तक पहुंचे कुशवाहा बबेरू तहसील के पखरौली गांव में कृषक परिवार से हैं। उन्होंने अतर्रा से ही हाईस्कूल व इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। पांच भाइयों के परिवार में आर्थिक संकट देखकर बाबू सिंह ने अतर्रा में 1986 में लकड़ी का टाल खोल लिया। आइआरडी कंपोनेंट योजना के अंतर्गत बैंकों से मिलकर लोन भी कराने लगे। बसपा के कुछ नेताओं से संपर्क होने के बाद 1988 में बाबू सिंह की मुलाकात कांशीराम से हुयी। दिल्ली कार्यालय में ही बाबू सिंह को संगठन के कार्य की जिम्मेदारी दे दी गयी। यहीं से उनका राजनैतिक सफर शुरू हो गया। इसके बाद लखनऊ बसपा कार्यालय में काम किया फिर बांदा में बसपा जिलाध्यक्ष पद भी 1993 में संभाला। 1994 में ये बसपा सुप्रीमो मायावती के संपर्क में आये। काम के प्रति निष्ठा से नजदीकियां बढ़ती गयी फिर इन्हें लगातार तीन बार विधान परिषद सदस्य नामित किया गया। पहली बार 2003 में पंचायती राज मंत्री का पद मिला। दोबारा सरकार बनी तो बाबू सिंह का कद और बढ़ा दिया गया। उनके पास खनिज, नियुक्ति विभाग, सहकारिता विभाग दिये गये। इतना ही नहीं सीएम के सबसे करीबी मंत्रियों में गिनती होने के साथ अफसरों में इनका खासा रौब और दबाव था। स्कूल, कालेज, जमीन के साथ अकूत संपति बनायी है।
साभार-जागरण कॉम
एनआरएचएम घोटाले में कुशवाहा की गिरफ्तारी के बाद सीबीआइ की रिपोर्ट के आधार पर इडी ने वर्ष 2012 में उनके खिलाफ जांच पंजीकृत की। करीब दो साल की छानबीन के बाद इडी ने पाया कि कुशवाहा ने अपने एजेंटों, नौकरों और सहयोगियों के नाम काफी सम्पत्ति बनाई। जांच की अवधि में इडी ने दो सौ से अधिक लोगों से पूछताछ की और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद कार्रवाई की। कुशवाहा के खिलाफ पहले चरण की बड़ी कार्रवाई करते हुए इडी ने काफी सम्पत्ति जब्त की है। इसमें कुशवाहा का बैंक में जमा 7.30 करोड़ रुपये भी है। इडी से मिली जानकारी के मुताबिक कुशवाहा की बांदा स्थित तथागत शिक्षा समिति तथा भगवत प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट के भवन जब्त किये गये हैं। राजधानी के गौरी में उनकी सात एकड़ की महंगी जमीन भी जब्त की गयी है। नोएडा में औद्योगिक क्षेत्र की जमीनों के साथ ही दिल्ली और लखनऊ के दो फ्लैट्स भी इडी ने जब्त किये हैं। लखनऊ के फ्लैट्स कालिदास मार्ग चौराहा और पार्क रोड स्थित बहुमंजिला रिहायशी अपार्टमेंट में है, जबकि दिल्ली के पॉश इलाके में भी उनका फ्लैट है। फेक नाम से बनाई गयी इन सम्पत्तियों के जब्त होने से उनके कई साझीदारों के होश उड़ गए हैं।
इडी की अदालत में चलेगा मुकदमा : बाबू सिंह कुशवाहा की जब्त की गयी सम्पत्ति का मुकदमा दिल्ली स्थित इडी की न्यायिक अथारिटी में चलेगा। इस सम्पत्ति को सही रास्ते से हासिल करने संबंधी साक्ष्य दिए जाने का कुशवाहा को मौका मिलेगा। अगर अथारिटी ने कुशवाहा के पक्ष में फैसला नहीं दिया तो यह सारी सम्पत्ति नीलाम कर दी जायेगी।
मुकद्दर ने ला दिया फिर उसी मुकाम पर
यह वक्त का तकाजा है कि बांदा के अतर्रा में लकड़ी का टाल लगाकर अपनी रोजी-रोटी शुरू करने वाले बाबू सिंह कुशवाहा का तकदीर ने साथ दिया तो वह बुलंदियों पर पहुंच गए। बसपा शासन में मिनी मुख्यमंत्री के तौर वह एक हस्ताक्षर बन गए, लेकिन एनआरएचएम घोटाले से तकदीर ने ऐसी पलटी मारी कि फिर वह उसी मुकाम पर आ गए। जिस धन और वैभव के लिए उन्होंने भ्रष्टाचार को अपनी परछाई बना लिया, अब वह भी रेत की तरह मुट्ठी से फिसलने लगा है।
इडी द्वारा साठ करोड़ की सम्पत्ति जब्त किये जाने के बाद बाबू सिंह कुशवाहा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। कयास यही लग रहा है कि अभी उनकी बहुत सी बेनामी सम्पत्तियां जब्त होंगी। पिछले डेढ़ दशक से सुर्खियों में रहे कुशवाहा ने कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें ऐसे दिन देखने पड़ेंगे। कांशीराम के सम्पर्क में आने के बाद फर्श से अर्स तक पहुंचे कुशवाहा बबेरू तहसील के पखरौली गांव में कृषक परिवार से हैं। उन्होंने अतर्रा से ही हाईस्कूल व इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। पांच भाइयों के परिवार में आर्थिक संकट देखकर बाबू सिंह ने अतर्रा में 1986 में लकड़ी का टाल खोल लिया। आइआरडी कंपोनेंट योजना के अंतर्गत बैंकों से मिलकर लोन भी कराने लगे। बसपा के कुछ नेताओं से संपर्क होने के बाद 1988 में बाबू सिंह की मुलाकात कांशीराम से हुयी। दिल्ली कार्यालय में ही बाबू सिंह को संगठन के कार्य की जिम्मेदारी दे दी गयी। यहीं से उनका राजनैतिक सफर शुरू हो गया। इसके बाद लखनऊ बसपा कार्यालय में काम किया फिर बांदा में बसपा जिलाध्यक्ष पद भी 1993 में संभाला। 1994 में ये बसपा सुप्रीमो मायावती के संपर्क में आये। काम के प्रति निष्ठा से नजदीकियां बढ़ती गयी फिर इन्हें लगातार तीन बार विधान परिषद सदस्य नामित किया गया। पहली बार 2003 में पंचायती राज मंत्री का पद मिला। दोबारा सरकार बनी तो बाबू सिंह का कद और बढ़ा दिया गया। उनके पास खनिज, नियुक्ति विभाग, सहकारिता विभाग दिये गये। इतना ही नहीं सीएम के सबसे करीबी मंत्रियों में गिनती होने के साथ अफसरों में इनका खासा रौब और दबाव था। स्कूल, कालेज, जमीन के साथ अकूत संपति बनायी है।
साभार-जागरण कॉम
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