गुरुवार, 20 जनवरी 2011

नीरा राडिया की रामकहानी

अरबों रुपये  के संचार घोटाले से घिरी लॉबीइस्ट नीरा राडिया ने पिछले दिनों अपने जन्मदिन पर दक्षिण दिल्ली में एक मंदिर का उद्घाटन किया. इस कृष्ण मंदिर को बनवाने के लिए दान भी उन्होंने ही दिया था. इस मौके पर मौजूद रहे लोग बताते हैं कि राडिया ने मंदिर में काफी देर तक पूजा-अर्चना की. इन दिनों उनके नाम पर जितना बड़ा बवाल मचा हुआ है उसे देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में अब तक के सबसे बड़े इस घोटाले की छाया से बाहर निकलने के लिए उन्होंने ईश्वर से मदद की प्रार्थना की होगी. मंदिर जाने से पहले दक्षिण दिल्ली की सीमा पर बने उनके फार्महाउस पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग और सीबीआई के नोटिस पहुंच चुके थे. यह वही फार्महाउस है जो जितना वहां होने वाले धार्मिक भोजों के लिए जाना जाता है उतना ही देर रात तक चलने वाली पार्टियों के लिए भी. दोनों ही आयोजनों में दिल्ली के रसूखदार लोग शामिल होते हैं.
अब यह तो वक्त ही बताएगा कि यह प्रार्थना सत्ता के गलियारों में मौजूद इस अकेली महिला लॉबीइस्ट की कोई मदद कर पाएगी या नहीं. अकसर साड़ी या बिजनेस सूट में नजर आने वाली राडिया के बारे में कहा जाता है कि इंसानी सोच और तकनीकी शब्दावली पर उनकी पकड़ इतनी कुशल है कि अमीर और ताकतवर लोगों की नब्ज टटोलने में उन्हें ज्यादा देर नहीं लगती.
लॉबीइंग की दुनिया में राडिया ने शुरुआती कदम भाजपा के साथ बढ़ाए. फिर उन्होंने कांग्रेस के भीतरी गलियारों तक पहुंच बनाई और माना जाता है कि अब सीपीएम के साथ भी उनकी अच्छी छनती है. उनके बारे में होने वाली चर्चाएं बताती हैं कि आज उनकी निजी संपत्ति 500 करोड़ रु से ऊपर की है.

कर चोरी को पकड़ने के लिए कुछ समय पहले आयकर विभाग ने जब कुछ लोगों के फोन टेप करने शुरू किए थे तो ऐसा करने वाले अधिकारियों को अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि यह रूटीन काम उन्हें इतने बड़े घोटाले तक पहुंचा देगा. अब आयकर विभाग समेत दूसरी कई एजेंसियां भी यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि क्या दिल्ली की सत्ता के गलियारों में राडिया की पहुंच इस कदर है कि वे किसी को भी मंत्री बनवा दें या फिर अपने कॉरपोरेट क्लाइंटों के हित में सरकार से नीतियां बनवा दें.
उधर, प्रवर्तन निदेशालय यह जानने की कोशिश कर रहा है कि कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस के लिए बनी राडिया की कंपनी के जरिए पैसा किससे किसको पहुंचा. शायद राडिया को भी ईडी की इस मंशा के बारे में अंदाजा हो गया था, इसलिए पूछताछ के लिए सबसे पहले भेजे गए नोटिसों को उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला देकर टालने की कोशिश की. इस दौरान मिले समय का इस्तेमाल उन्होंने उत्तर प्रदेश के कुछ नेताओं से संपर्क करने में किया. बताया जाता है कि राडिया ने उनसे कहा कि वे अपने राज्य के कैडर के अधिकारियों को खामोश रहने के लिए कहें जो इस घोटाले की जांच कर रहे हैं. लेकिन एक लाख 76 हजार करोड़ रु के इस घोटाले की आंच में कोई अपने हाथ नहीं जलाना चाहता था.
राजनीतिक रूप से राडिया को अलग-थलग पड़ते देख जांच एजेंसियों की हिम्मत बढ़ी. पूछताछ के लिए उन्हें फिर से नोटिस भेजे गए. इस बार इन नोटिसों की भाषा काफी तल्ख थी. 24 नवंबर को राडिया ईडी के दफ्तर पहुंचीं. शायद मीडिया की नजर से बचने के लिए उन्होंने वक्त चुना सुबह सवा नौ बजे. उस समय तक तो जांच अधिकारी भी दफ्तर नहीं पहुंचे थे. जांच में शामिल ईडी के एक बड़े अधिकारी राजेश्वर सिंह से जब तहलका ने बात करने की कोशिश की तो वे इससे ज्यादा कुछ भी कहने को तैयार नहीं हुए कि वे शायद भारत में हुए अब तक के सबसे बड़े घोटाले की जांच कर रहे हैं.
जब तक राडिया ईडी के दफ्तर से बाहर निकलतीं तब तक वहां मीडिया का भारी-भरकम जमावड़ा लग गया था. सवालों की बौछार के बीच वे सधे हुए शब्दों में उसी नफासत के साथ बोलीं जो किसी पीआर प्रोफेशनल की पहचान होती है. कुछ भी ज्यादा कहने से बचते हुए उन्होंने जो कहा उसका मतलब यही था कि मामला अदालत में है और उनकी तरफ से पूरा सहयोग दिया जाएगा.
उधर, सीबीआई अधिकारियों का दावा है कि उनके पास ऐसे सबूत हैं जो बताते हैं कि राडिया की कंपनी का डाटा यूक्रेन स्थित सर्वरों (जिन तक किसी तीसरे पक्ष की पहुंच बहुत मुश्किल होती है) पर रहा है और उनके और उनके करीबी सहयोगियों ने अपने फोनों पर ऐसे इजराइली उपकरण लगा रखे थे जिनसे नंबरों की निगरानी संभव नहीं हो पाती. सीबीआई के पास वैष्णवी कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस की चेयरपर्सन राडिया और नेताओं, नौकरशाहों और कुछ बड़े पत्रकारों के बीच 180 घंटे की बातचीत है जो उन्हें उस दूरसंचार घोटाले के केंद्र में खड़ा कर सकती है जिसने ए राजा की कुर्सी छीन ली. गौरतलब है कि संचार मंत्री रहे राजा को वास्तविक कीमत से कहीं कम कीमत पर 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस बेचने से उठे विवाद के बाद अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
सीबीआई उन पूर्व नौकरशाहों और राडिया के बीच के गठजोड़ की भी जांच कर रही है जिन्हें राडिया ने इसलिए नौकरी पर रखा था ताकि वे अपने क्लाइंटों के हिसाब से नीतियां बनवा सकें. उनके क्लाइंटों में टाटा, रिलायंस, आईटीसी, महिंद्रा, लवासा, स्टार टीवी, यूनिटेक, एल्ड हेल्थकेयर, हल्दिया पेट्रोकैमिकल्स, इमामी और बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे बड़े नाम हैं.
पिछले ही हफ्ते राडिया के करीबियों में से एक प्रदीप बैजल से सीबीआई ने चार घंटे से भी ज्यादा समय तक पूछताछ की. गौरतलब है कि बैजल दूरसंचार मंत्रालय के पूर्व सचिव हैं और देश में विवादास्पद विनिवेश प्रक्रिया को शुरू करने का श्रेय उन्हीं को जाता है. सीबीआई ने उनसे गुयाना और सेनेगल जैसे अफ्रीकी देशों में उनके तथाकथित निवेशों के बारे में पूछताछ की.
इस बारे में ज्यादा जानकारी देने से इनकार करते हुए ईडी अधिकारी राजेश्वर सिंह बस इतना ही कहते हैं, 'आरोप गंभीर हैं.' सीबीआई और ईडी अधिकारियों ने तहलका को बताया है कि यह साबित करने के लिए उनके पास पर्याप्त सबूत हैं कि डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी ऐंड प्रोमोशन में सचिव रहे अजय दुआ, पूर्व वित्त सचिव सीएम वासुदेव, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन एसके नरूला और नागरिक उड्डयन सचिव रहे अकबर जंग जैसे रिटायर्ड नौकरशाह राडिया के इशारे पर काम करते हैं.
दूसरी तरफ, आयकर विभाग की जांच बताती है कि रीयल एस्टेट कंपनी यूनिटेक को टेलीकॉम लाइसेंस दिलवाने में राडिया ने अहम भूमिका निभाई.
ईडी अधिकारियों ने तहलका को बताया है कि यूनिटेक के लिए 1,600 करोड़ रु जुटाने में राडिया की अहम भूमिका थी. गौरतलब है कि यूनिटेक
भी उन विवादास्पद कंपनियों में से एक है जिसे ये टेलीकॉम लाइसेंस हासिल हुए थे. कंपनी ने अपनी दूरसंचार फर्म का एक बड़ा हिस्सा आखिरकार नार्वे की एक कंपनी टेलेनॉर को बेचा और उस कीमत से सात गुना ज्यादा पैसा वसूला जो उसने लाइसेंस खरीदने के लिए चुकाई थी.
एजेंसियों के पास जो बातचीत रिकाॅर्ड है उसके कुछ हिस्से राडिया का संबंध लंदन स्थित वेदांता समूह से भी जोड़ते हैं. गौरतलब है कि उड़ीसा के कालाहांडी जिले में अपनी खनन परियोजनाओं में पर्यावरण संबंधी मानकों का उल्लंघन करने के लिए इस समूह की काफी आलोचना हुई है. विश्वस्त सूत्रों ने तहलका को यह भी बताया है कि वेदांता समूह ने राडिया को भारत में अपनी नकारात्मक छवि को बदलने की भी जिम्मेदारी सौंपी थी. नतीजा यह हुआ कि अखबारों और पत्रिकाओं में वेदांता को अच्छा बताते कई महंगे विज्ञापन छपे. लेकिन इनसे कोई खास असर नहीं हुआ क्योंकि पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने उसकी परियोजना को रद्द कर दिया.
बातचीत के टेप राडिया का संबंध सुनील अरोड़ा से भी साबित करते हैं. अरोड़ा राजस्थान में तैनात आईएएस अफसर हैं जिन्होंने राडिया को अलग-अलग मंत्रालयों में तैनात अपने दोस्तों तक पहुंचाया. इन टेपों में रिकॉर्ड बातचीत उन नोट्स का हिस्सा है जो सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे हैं. ऐसा लगता है कि नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल के खिलाफ मोर्चा खोलकर इंडियन एयरलाइंस के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर की अपनी कुर्सी गंवाने वाले अरोड़ा ने राडिया के लिए भारत में कई दरवाजे खोले. यह पता चला है कि इंडियन एयरलाइंस के मुखिया के तौर पर अरोड़ा के कार्यकाल के दौरान सात विमान उन कंपनियों से लीज पर लिए गए थे जिनके एजेंट के तौर पर राडिया की कंपनियां काम कर रही थीं. वरिष्ठ आयकर अधिकारी अक्षत जैन कहते हैं, 'हमारे पास सबूत हैं कि राडिया की कंपनी ने अरोड़ा के मेरठ स्थित भाई को काफी पैसा दिया है.'
अब राडिया की पृष्ठभूमि पर एक नजर. 19 नवंबर ,1960 को सुदेश और इकबाल मेमन के घर नीरा राडिया का जन्म हुआ. ईदी आमिन के पतन के वक्त उनके परिवार को अफ्रीका छोड़कर ब्रिटेन जाना पड़ा. कभी कुख्यात हथियार डीलर अदनान खशोगी का उभरता प्रतिद्वंद्वी कहे जाने वाले मेमन ने लंदन में विमान लीज कारोबार में काम शुरू किया. परिवार के इस कारोबार की राडिया स्वाभाविक उत्तराधिकारी थीं. लंदन में उन्होंने एक अमीर व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले जनक राडिया से शादी की. सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि 1996 में काले धन की जमाखोरी के एक मामले में वे जांच के घेरे में आईं और फिर वे भागकर भारत आ गईं. यहां पहले उन्होंने तब सहारा सुप्रीमो सुब्रत रॉय के चहेते उत्तर कुमार बोस के साथ काम किया जो एयर सहारा का काम देख रहे थे. सहारा इंडिया के निदेशकों में से एक अभिजित सरकार भी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं, 'उन्होंने कुछ समय तक हमारे लिए काम किया.' मगर बोस तब राय की नजरों से उतर गए जब यह पाया गया कि जो एयरक्राफ्ट लीज पर लिए गए हैं उनके किराए बाजार भाव से 50 फीसदी ज्यादा हैं.
इसके बाद राडिया ने अपने बूते आगे बढ़ने का फैसला किया. उनकी नजर बंद हो चुकी मोदीलुफ्त पर थी जिसे फिर से शुरू कर वे मैजिक एयर के नाम से चलाना चाहती थीं, मगर इसके लिए उन्हें जरूरी मंजूरियां नहीं मिलीं. ताकतवर प्राइवेट एयरलाइंस लॉबी ने हर कदम पर उन्हें मात दी और जल्दी ही राडिया ने इस काम के लिए खाड़ी स्थित जिन फायनेंसरों को राजी किया था वे पीछे हट गए. मलेशियन एयरलाइंस सहित कई एयरलाइनों से पायलटों और उड्डयन विशेषज्ञों की जो क्रैक टीम राडिया ने बनाई थी वह एक लंबी और परेशान कर देने वाली यथास्थिति के बाद टूट गई.
ऐसे कई लोग हैं जो दावा करते हैं कि राडिया आज भी जेट एयरवेज के मुखिया नरेश गोयल और नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल से खार खाती हैं. उन्हें लगता है कि इन दोनों व्यक्तियों की वजह से उनकी अपनी एयरलाइन का सपना पूरा नहीं हो सका. राडिया को क्राउन एयर के प्रोमोटर के तौर पर सुरक्षा मंजूरी तो नहीं मिली लेकिन वे तत्कालीन उड्डयन मंत्री और भाजपा के अनंत कुमार के करीबी संपर्क में आ गईं. भाजपा नेतृत्व के सूत्र बताते हैं कि जब पीएमओ से उन्हें साफ संकेत मिले कि कुमार की कुर्सी जाने वाली है तो राडिया ने मान लिया था कि क्राउन एयर अब एक मर चुका सपना है. इसके बाद भी राडिया ने एनडीए शासनकाल के दौरान जमीन का एक विशाल टुकड़ा बहुत ही सस्ते दामों में अपनी स्वर्गवासी मां के नाम पर बनी सुदेश फाउंडेशन को आवंटित कराने में सफलता पा ली.
आईबी की एक पुरानी रिपोर्ट बताती है कि राडिया को सुरक्षा संबंधी मंजूरी देने के खिलाफ जो एतराज थे उनमें से कुछ का संबंध मुंबई स्थित एक व्यक्ति चंदू पंजाबी के साथ उनकी डीलिंग से भी था जिसकी पृष्ठभूमि संदिग्ध थी. पंजाबी ठाकरे परिवार का भी करीबी था. राडिया ने फिल्म अग्निसाक्षी की फंडिंग में भी अहम भूमिका निभाई थी. इस फिल्म के निर्माता बाल ठाकरे के बेटे बिंदा ठाकरे थे. पंजाबी के बारे में बताया जाता है कि बांद्रा स्थित सी रॉक होटल में उसका भी कुछ हिस्सा था. 1992 में मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्टों में से एक इस होटल में भी हुआ था और अब यह होटल टाटा समूह की इंडियन होटल्स कंपनी द्वारा चलाया जाता है. नेटवर्किंग के अपने गुण की बदौलत राडिया ने सिंगापुर एयरलाइंस के साथ तालमेल स्थापित कर लिया और भारत में उसके रखरखाव, रिपेयर और ओवरहॉल सुविधा स्थापित करने में मदद की. सरकार की नीति में इस बदलाव  कि विदेशी एयरलाइंस भारत में नहीं आ सकतीं, के बारे में भी यह चर्चा चली थी कि यह बदलाव उनके विरोधियों गोयल और पटेल ने करवाया था.
नौकरशाह और राजनेताओं से अपने संपर्क और कुमार के साथ उनके गठजोड़ ने राडिया के लिए दिल्ली की सत्ता के गलियारों के कई दरवाजे खोले. एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के एक पूर्व मुखिया और एनडीए सरकार के दौरान ताकतवर रहे नौकरशाह एसके नरूला रिटायर होने के बाद भी राडिया के विश्वासपात्र हैं और उनकी तरफ से सरकार के साथ कुछ महत्वपूर्ण सौदेबाजियों को अंजाम देते हैं.
राडिया को सबसे बड़ा ब्रेक तब मिला जब उनका परिचय रतन टाटा के करीबी सहयोगी आरके कृष्ण कुमार से हुआ. कुमार वही शख्स थे जिन्हें टाटा ने अपनी एयरलाइन के सपने को हकीकत में बदलने की जिम्मेदारी सौंपी थी. टाटा-सिंगापुर एयलाइंस गठजोड़ नाकाम रहा मगर जल्दी ही राडिया ने पब्लिक रिलेशंस के क्षेत्र में फिर से शरुआत की. उन्होंने वैष्णवी कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस की शुरुआत की और उन्हें टाटा समूह की सभी कंपनियों का काम मिल गया. अब उनके पास भारत के सबसे प्रतिष्ठित कारोबारी घराने का नाम था. जल्दी ही उनकी कंपनी की जड़ें आठ शहरों में जम गई थीं.
जब टाटा समूह टाटा फायनैंस के दिलीप पेंडसे के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करना चाहता था और पेंडसे ने मराठी मानुस कार्ड खेलकर उसका यह प्रयास विफल कर दिया था तब एक दिन दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने पेंडसे को एक बहुत ही छोटे मामले में गिरफ्तार कर लिया. पेंडसे ने आरोप लगाया कि यह सब राडिया के इशारे पर हुआ है क्योंकि पुलिस विभाग में पहुंच उनकी रणनीतियों का एक अहम पहलू है. यह एक ऐसा हथियार है जिसे वे अकसर अपना काम निकालने के लिए इस्तेमाल करती हैं. इसका राडिया को इतना खयाल है कि पिछले आठ सालों में एक स्टाफर को इसी काम के लिए रखा गया है कि ग्राउंड लेवल पर काम करने वाले पुलिसकर्मियों के साथ रिश्ते बनाकर रखे जाएं. उधर, राडिया पुलिस के सीनियर स्टाफ के साथ बनाकर रखती हैं. दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर केके पॉल राडिया के करीबी दोस्त थे जिन्हें एनडीए की सरकार के आखिरी चार महीने के दौरान ही यह पद मिला था. महाराष्ट्र के एक पूर्व डीजीपी को जब फरवरी, 2007 में रातों-रात मुंबई पुलिस कमिश्नर के पद से हटाया गया तो यह चर्चा खूब उड़ी थी कि राडिया उसे दिल्ली में सीबीआई या किसी इंटेलिजेंस एजेंसी में कोई अहम पद दिलवाने के लिए भारी लॉबीइंग कर रही हैं. इंटेलिजेंस के सूत्र मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर हसन गफूर से जुड़े उस विवाद में राडिया का हाथ होने से इनकार नहीं करते जब उनका एक विवादास्पद इंटरव्यू एक मैगजीन में छप गया था. इससे पहले वे महाराष्ट्र के डीजीपी पद के लिए पहली पसंद कहे जा रहे थे. गफूर विवाद का फायदा एएन राय को हुआ जो टाटा मोटर्स के मुखिया रविकांत के करीबी रिश्तेदार हैं. राय भी दक्षिण मुंबई के उसी रेजीडेंसियल कांप्लेक्स में रहते हैं जहां कांत सहित टाटा मोटर्स के तीन-चार बड़े लोगों का आशियाना है.
दिलचस्प यह भी है कि राडिया ने अपनी कमर्शियल एयरलाइन का सपना 2004 में एक बार फिर जिंदा किया और फिर मलेशियन एयरलाइंस के उड्डयन विशेषज्ञों की एक टीम बनाई. इसके मुखिया नग फूक मेंग पहले भी क्राउन एयर का हिस्सा रह चुके थे. अपने विरोधी प्रफुल पटेल के उड्डयन मंत्री होने के बावजूद आशावादी राडिया इस मोर्चे पर जम गईं. लेकिन 14 महीने तक कोशिशों के बाद आखिरकार उन्हें मैदान छोड़ना पड़ा.
इसी अवधि के दौरान राडिया ने दयानिधि मारन के साथ भी एक तीखी लड़ाई लड़ी. मारन, कारोबारी सी शिवशंकरन को रतन टाटा के कथित संरक्षण से नाराज थे. राडिया ने डीएमके मुखिया करुणानिधि की पत्नी राजति अम्मल के एक करीबी के साथ संपर्क बढ़ाया और चेन्नई की कई यात्राएं करके अम्मल के साथ अच्छी दोस्ती कर ली. उन्हें तब मौका मिला जब मारन और करुणानिधि परिवार में फूट पड़ी जिसकी वजह से दयानिधि मारन को संचार मंत्रालय छोड़ना पड़ा. माना जाता है कि राडिया  चेन्नई गईं और उन्होंने डीएमके सुप्रीमो, उनके बेटे एमके स्टालिन और टाटा के बीच एक गुपचुप वार्ता आयोजित की थी.
एएआई के पूर्व सीएमडी नरूला ने नौकरशाही के उस शीर्ष स्तर तक उनकी पहुंच के द्वार खोले जिसके रिटायर होने में पांच-छह साल बचे होते हैं और जो रिटायर होने के बाद कॉरपोरेट इंडिया के साथ अवसरों की तलाश में होता है. बैजल और वासुदेव ने भी इस काम में अहम भूमिका निभाई. इनकी सेवाओं का इनाम देते हुए राडिया ने बैजल, वासुदेव और नरूला को पार्टनर बनाते हुए नियोसिस नाम की फर्म खोली. जल्दी ही इसने टेलीकाॅम क्षेत्र की बड़ी खिलाड़ी हुवाई सहित कुछ चीनी कंपनियों को अपनी परामर्श सेवाएं देनी शुरू कर दीं.
राडिया की इस अचानक बड़ी छलांग और सिंगापुर की उनकी कई यात्राओं ने कई लोगों का ध्यान उनकी तरफ खींचा. बताया जाता है कि बड़े नकद सौदों में से कुछ को उनके नाम से मिलते-जुलते कोड के साथ किया गया था. उनकी अबाध उन्नति ने बहुतों को हैरान भी किया. उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज लि. (आरआईएल) का काम संभाला तो अपने संपर्कों की बदौलत मुकेश अंबानी को करोड़ों का अप्रत्याशित लाभ करवा दिया. आरआईएल का काम संभालने के लिए राडिया ने न्यूकॉम बनाई. अब भारत के दो सबसे बड़े उद्योगपति उनके पास थे, जिनसे उन्हें चर्चाओं के मुताबिक 100 करोड़ रु सालाना मिल रहे थे. राडिया ने इस क्षेत्र में काम शुरू करने के छह साल के भीतर ही हर स्थापित खिलाड़ी को मीलों पीछे छोड़ दिया था. जल्दी ही वे कॉरपोरेटों के लिए ही नहीं बल्कि राज्य सरकारों को भी अपनी सेवाएं देने लगीं. तेलगू देशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उन लोगों में से कुछ हैं जिनके साथ राडिया ने करीबी से काम किया. कहा जाता है कि नैनो प्रोजेक्ट को बंगाल से गुजरात लाने में राडिया की भूमिका अहम थी.
अगर स्पेक्ट्रम घोटाला इतना बड़ा नहीं हुआ होता तो उनकी यह निर्बाध यात्रा निश्चित रूप से जारी रहती. मगर राडिया जिस कारोबार में हैं वहां टिके रहने के लिए नेताओं और कॉरपोरेट्स के विश्वास की जरूरत होती है. और ये दोनों इसमें पैसे के लिए आते हैं. इसके अलावा कोई भी ऐसे शख्स के साथ काम नहीं करना चाहता जिसकी छवि पर दाग लग चुका हो.  [शांतनु गुहा रे]
[साभार तहलका]

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