इसे पशुपालन घोटाला ही कहा जाना चाहिए क्योंकि मामला सिर्फ़ चारे का नहीं है. असल में, यह सारा घपला बिहार सरकार के ख़ज़ाने से ग़लत ढंग से पैसे निकालने का है. कई वर्षों में करोड़ों की रक़म पशुपालन विभाग के अधिकारियों और ठेकेदारों ने राजनीतिक मिली-भगत के साथ निकाली है.
घपला रोशनी में धीरे-धीरे आया और जांच के बाद पता चला कि ये सिलसिला वर्षों से चल रहा था. शुरूआत छोटे-मोटे मामलों से हुई लेकिन बात बढ़ते-बढ़ते तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव तक जा पहुंची.
लालू यादव: बुरे फंसे मामला एक-दो करोड़ रूपए से शुरू होकर अब 360 करोड़ रूपए तक जा पहुंचा है और कोई पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि घपला कितनी रक़म का है क्योंकि यह वर्षों से होता रहा है और बिहार में हिसाब रखने में भी भारी गड़बड़ियां हुई हैं.
मामले के जाल में फंसे लालू यादव को इस सिलसिले में जेल जाना पड़ा, उनके ख़िलाफ़ सीबीआई और आयकर की जांच हुई, छापे पड़े और अब भी वे कई मुक़दमों का सामना कर रहे हैं. आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में सीबीआई ने राबड़ी देवी को भी अभियुक्त बनाया है.
घपले की पोल बिहार पुलिस ने 1994 में राज्य के गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्ज़ी बिलों के ज़रिए करोड़ों रूपए की कथित अवैध निकासी के मामले दर्ज किए.रातो-रात सरकारी कोषागार और पशुपालन विभाग के कई सौ कर्मचारी गिरफ़्तार कर लिए गए, कई ठेकेदारों और सप्लायरों को हिरासत में लिया गया और राज्य भर में दर्जन भर आपराधिक मुक़दमे दर्ज किए गए.
राब़ड़ी देवी भी लपेटे में लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, राज्य के विपक्षी दलों ने मांग उठाई कि घोटाले के आकार और राजनीतिक मिली-भगत को देखते हुए इसकी जांच सीबीआई से कराई जाए.सीबीआई ने मामले की जांच की कमान संयुक्त निदेशक यू एन विश्वास को सौंपी और यहीं से जांच का रुख़ बदल गया.
शातिर कारगुज़ारी सीबीआई ने अपनी शुरुआती जांच के बाद कहा कि मामला उतना सीधा-सादा नहीं है जितना बिहार सरकार बता रही है.सीबीआई का कहना है कि चारा घोटाले में शामिल सभी बड़े अभियुक्तों के संबंध राष्ट्रीय जनता दल और दूसरी पार्टियों के शीर्ष नेताओं से रहे हैं और उसके पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि काली कमाई का हिस्सा नेताओं की झोली में भी गया है. सीबीआई के अनुसार, राज्य के ख़ज़ाने से पैसा कुछ इस तरह निकाला गया- पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने चारे, पशुओं की दवा आदि की सप्लाई के मद में करोड़ों रूपए के फ़र्जी बिल कोषागारों से वर्षों तक नियमित रूप से भुनाए.
विपक्ष ने चुनावी मुद्दा बनाया जांच अधिकारियों का कहना है कि बिहार के मुख्य लेखा परीक्षक ने इसकी जानकारी राज्य सरकार को समय-समय पर भेजी थी लेकिन बिहार सरकार ने इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया.
राज्य सरकार की वित्तीय अनियमितताओं का हाल ये है कि कई-कई वर्षों तक विधानसभा से बजट पारित नहीं हुआ और राज्य का सारा काम लेखा अनुदान के सहारे चलता रहा है.
सीबीआई का कहना है कि उसके पास इस बात के दस्तावेज़ी सबूत हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री को न सिर्फ़ इस मामले की पूरी जानकारी थी बल्कि उन्होंने कई मौक़ों पर राज्य के वित्त मंत्रालय के प्रभारी के रूप में इन निकासियों की अनुमति दी थी.
जांच के दौरान सीबीआई ने ये दावा भी किया लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी अपनी घोषित आय से अधिक संपत्ति रखने के दोषी हैं.
व्यापक षड्यंत्र सीबीआई का कहना रहा है कि ये सामान्य आर्थिक भ्रष्टाचार का नहीं बल्कि व्यापक षड्यंत्र का मामला है जिसमें राज्य के कर्मचारी, नेता और व्यापारी वर्ग समान रूप से भागीदार है. मामला सिर्फ़ राष्ट्रीय जनता दल तक सीमित नहीं रहा. इस सिलसिले में बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र को गिरफ़्तार किया गया. राज्य के कई और मंत्री भी गिरफ़्तार किए गए. सीबीआई के कमान संभालते ही बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारियां हुईं और छापे मारे गए. लालू प्रसाद यादव के ख़िलाफ़ सीबीआई ने आरोप पत्र दाख़िल कर दिया जिसके बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा और बाद में सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिलने तक वे कई महीनों तक जेल में रहे. मामले के तेज़ी से निबटारे में बहुत सारी बाधाएं आईं. पहले तो इसी पर लंबी क़ानूनी बहस चलती रही कि बिहार से अलग होकर बने झारखंड राज्य के मामलों की सुनवाई पटना हाईकोर्ट में होगी या रांची हाईकोर्ट में.
सीबीआई ने ज़्यादातर मामलों में आरोप पत्र दाख़िल कर दिए हैं और जांच समाप्त हो गई है लेकिन मुक़दमों की सुनवाई शुरू होने में अभी वक्त लगेगा. {साभार विकिपीडिया}
रांची। लाखों रुपये के चारा घोटाला मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदलत ने अधिकारियों व आपूतिकर्ताओं सहित 12 लोगों को छह वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
आरोपियों पर पांच लाख से लेकर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगाया गया है।
सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ए.एच.अंसारी ने सोमवार को रांची के डोरंडा कोषागार से फर्जी तरीके से 20 करोड़ रुपये निकलवाने के आरोप में 52 लोगों को दोषी करार दिया था।
शुक्रवार को 12 लोगों को छह वर्ष कैद की सजा सुनाए जाने के साथ ही सभी 52 आरोपियों की सजा तय किए जाने की प्रक्रिया पूरी हो गई।
चारा घोटाला अविभाजित बिहार में 1996 में सामने आया था। नवम्बर 2000 में इस घोटाले से जुड़े 61 मामले झारखण्ड में स्थानांतरित कर दिए गए। सीबीआई की विशेष अदालत इस घोटाले से जुड़े 32 मामलों में सजा सुना चुकी है।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र इस घोटाले से जुड़े पांच मामलों में अभियुक्त बनाए गए हैं। ये मामले रांची स्थित सीबीआई की अदालत में विचाराधीन है।{साभार इंडियालाइव.कॉम }
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