किसी भी पैमाने पर मधु कोड़ा की कहानी हैरतअंगेज है। मकानों में ग्रिल लगाने
के धंधे से लेकर भारत के एक राज्य का पहला निर्दलीय मुख्यमंत्री बनने तक का सफर यकीनन किसी परीकथा-सा लगता है। लेकिन अब उन पर लगे 4,000 करोड़ के घपले के इल्जाम ने एक हीरो को रातों-रात विलेन में बदल दिया है। इसे अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक घोटाला कहा जा रहा है, और अगर ये इल्जाम सही साबित होते हैं, तो कहा जा सकता है कि कोड़ा ने चीफ मिनिस्टर के तौर पर अपने कार्यकाल में अपने साथियों के साथ मिलकर हर रोज 3.6 करोड़ का घपला किया।
निचले तबके से शुरुआत: यह कहानी मधु कोड़ा और उनके दो साथियों विनोद सिन्हा और संजय चौधरी की है। तीनों की शुरुआत समाज के निचले तबके से हुई। तीनों ने गरीबी और मुफलिसी के दिन देखे और तीनों के बीच ऐसी दोस्ती कायम हुई, जिसके चर्चे रांची में बरसों से कहे-सुने जाते रहे हैं। अब उनके बारे में एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट ने जो जानकारी हासिल करने का दावा किया है, वह हैरतअंगेज घोटाले को सामने लाती है, जिसकी कल्पना कोई नहीं कर सकता था। आरोप है कि इस तिकड़ी ने अंडरहैंड डील से कमाए पैसों के जरिए थाइलैंड में होटल खरीदे, लाइबेरिया में खदानें और दुबई में कंपनियां। इंडोनेशिया, लाओस और मलयेशिया तक इनका जाल फैला बताया गया है।
सभी को खुश किया: झारखंड में ऐसे लोग इफरात में हैं, जो आज भी मधु को एक सीधे-सरल देहाती की तरह याद करते हैं। शायद यही वजह है कि रांची में मधु के किस्सों का जिक्र होता नहीं सुना गया। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि उन्होंने हर किसी को खुश रखा। सत्ताधारी दल के विधायकों को वे विडियो कैमरे जैसे महंगे गिफ्ट और 20 से 40 हजार तक का इनाम बांट दिया करते थे।
पिता दरोगा बनाना चाहते थे : मधु का जन्म पट्टाहाटू गांव में हुआ, जो झारखंड की सोना उगलने वाली जमीन का एक गरीब पिछड़ा गांव है। उनके पिता रसिक एक खान में मजदूर थे। अपनी एक एकड़ जमीन पर खेती करते थे और हड़िया(देसी दारू) बनाते थे। उनका सपना था मधु दरोगा बन जाए, लेकिन बेटे का आइडिया अलग था। उसने चाइबासा में स्कूलिंग की, कॉरिस्पॉन्डंस कोर्स से ग्रैजुएशन और आरएसएस तथा ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन से गुजरते हुए बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी की कृपा हासिल कर ली। उन्होंने सियासत में कदम रखा और चुनाव जीते, तब भी जब बीजेपी ने टिकट नहीं दिया। तीन निर्दलीयों- कमलेश सिंह, एनोस एक्का और हरिनारायण राय के साथ मिलकर उन्होंने सरकारें बनाईं और गिराईं। साल 2000 में जगन्नाथपुर सीट जीतकर उन्होंने मरांडी सरकार में पंचायत मंत्री के तौर पर जगह बनाई। 2005 में वह वहीं से निर्दलीय के तौर पर जीते और खान मंत्रालय के बदले अर्जुन मुंडा की सरकार को समर्थन दिया। 2006 में कोड़ा और तीन निर्दलीयों ने मुंडा सरकार को गिरा दिया और कोड़ा खुद चीफ मिनिस्टर पद पर जा बैठे।
कोड़ा के मातहत फैला अरबों का साम्राज्य : विनोद सिन्हा और संजय चौधरी से कोड़ा की दोस्ती भी इसी दौरान परवान चढ़ी। सिन्हा एक जमाने में घर-घर जाकर दूध बेचते थे। चौधरी खैनी का कारोबार करते थे। सिन्हा का नाम ट्रैक्टर स्कैम में भी आया है। कोड़ा की सोहबत में दोनों करोड़ों-अरबों का हिसाब रखने लगे। उनके मातहत एक विशाल बिजनस साम्राज्य फैलने लगा। देश-विदेश में बड़ी-बड़ी डीलें उनके नाम पर होने लगीं।
बस पत्नी के सामने झुके: रांची में इस दोस्ती के चर्चे रहे हैं। बताया जाता है कि कोड़ा के सरकारी आवास से तमाम अफसरों के चले जाने के बाद तीनों के बीच आधी रात तक बैठक चलती रहती थी। 2007 में असेंबली में यह मामला उठा और बिना हिचके कोड़ा ने कहा, हां, वे मेरे दोस्त हैं। लेकिन इन तमाम हलचलों के बावजूद कोड़ा ने कभी ऐसा कुछ नहीं किया कि आम लोग अचानक उनकी चर्चा करने लगें। ऐसा बस एक बार हुआ, जब 2006 में कोड़ा अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए उसके सामने झुके और कामयाब रहे। 2004 में शादी होने के चार महीने बाद पत्नी गीता उन्हें छोड़कर चली गई थीं।
पीआईएल ने बिगाड़ा खेल: कोड़ा का किस्सा कभी सामने नहीं आता, अगर दुर्गा ओरांव नाम के एक अनजाने शख्स ने हाई कोर्ट में एक पीआईएल दायर न कर दी होती। ओरांव ने कोड़ा के खिलाफ मामला बनाया और अदालत से जांच का रास्ता खुलवा लिया। ओरांव किसी सियासी जुड़ाव से इनकार करते हैं, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि वह कोड़ा के विरोधियों के लिए काम कर रहे हैं। उनका कहना है, एक ऐसा शख्स, जो नौवीं के बाद स्कूल छोड़ चुका हो, जिसकी आमदनी का कोई जरिया नजर नहीं आता हो, इतनी बड़ी कानूनी लड़ाई कैसे लड़ सकता है।
पिता ने बेटे की शादी में भी बेची शराब : कोड़ा के पिता रसिक अब भी ग्रामीण सादगी की मिसाल नजर आते हैं। अपने मवेशियों को चारा खिलाते उनकी तस्वीरें अखबारों में छपी हैं। रांची के पत्रकार बताते हैं कि कोड़ा की शादी के वक्त वे वहां शराब बेच रहे थे। जब उनसे पूछा गया कि वे मेहमानों से पैसा क्यों ले रहे हैं, तो उनका कहना था, ये मेरी शराब है, इसमें गजब की ताकत है, इसने मधु को मिनिस्टर बना दिया।
सोनाली दास और सचिन पाराशर।।
{ साभार नवभारत }०९-११-09
निचले तबके से शुरुआत: यह कहानी मधु कोड़ा और उनके दो साथियों विनोद सिन्हा और संजय चौधरी की है। तीनों की शुरुआत समाज के निचले तबके से हुई। तीनों ने गरीबी और मुफलिसी के दिन देखे और तीनों के बीच ऐसी दोस्ती कायम हुई, जिसके चर्चे रांची में बरसों से कहे-सुने जाते रहे हैं। अब उनके बारे में एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट ने जो जानकारी हासिल करने का दावा किया है, वह हैरतअंगेज घोटाले को सामने लाती है, जिसकी कल्पना कोई नहीं कर सकता था। आरोप है कि इस तिकड़ी ने अंडरहैंड डील से कमाए पैसों के जरिए थाइलैंड में होटल खरीदे, लाइबेरिया में खदानें और दुबई में कंपनियां। इंडोनेशिया, लाओस और मलयेशिया तक इनका जाल फैला बताया गया है।
सभी को खुश किया: झारखंड में ऐसे लोग इफरात में हैं, जो आज भी मधु को एक सीधे-सरल देहाती की तरह याद करते हैं। शायद यही वजह है कि रांची में मधु के किस्सों का जिक्र होता नहीं सुना गया। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि उन्होंने हर किसी को खुश रखा। सत्ताधारी दल के विधायकों को वे विडियो कैमरे जैसे महंगे गिफ्ट और 20 से 40 हजार तक का इनाम बांट दिया करते थे।
पिता दरोगा बनाना चाहते थे : मधु का जन्म पट्टाहाटू गांव में हुआ, जो झारखंड की सोना उगलने वाली जमीन का एक गरीब पिछड़ा गांव है। उनके पिता रसिक एक खान में मजदूर थे। अपनी एक एकड़ जमीन पर खेती करते थे और हड़िया(देसी दारू) बनाते थे। उनका सपना था मधु दरोगा बन जाए, लेकिन बेटे का आइडिया अलग था। उसने चाइबासा में स्कूलिंग की, कॉरिस्पॉन्डंस कोर्स से ग्रैजुएशन और आरएसएस तथा ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन से गुजरते हुए बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी की कृपा हासिल कर ली। उन्होंने सियासत में कदम रखा और चुनाव जीते, तब भी जब बीजेपी ने टिकट नहीं दिया। तीन निर्दलीयों- कमलेश सिंह, एनोस एक्का और हरिनारायण राय के साथ मिलकर उन्होंने सरकारें बनाईं और गिराईं। साल 2000 में जगन्नाथपुर सीट जीतकर उन्होंने मरांडी सरकार में पंचायत मंत्री के तौर पर जगह बनाई। 2005 में वह वहीं से निर्दलीय के तौर पर जीते और खान मंत्रालय के बदले अर्जुन मुंडा की सरकार को समर्थन दिया। 2006 में कोड़ा और तीन निर्दलीयों ने मुंडा सरकार को गिरा दिया और कोड़ा खुद चीफ मिनिस्टर पद पर जा बैठे।
कोड़ा के मातहत फैला अरबों का साम्राज्य : विनोद सिन्हा और संजय चौधरी से कोड़ा की दोस्ती भी इसी दौरान परवान चढ़ी। सिन्हा एक जमाने में घर-घर जाकर दूध बेचते थे। चौधरी खैनी का कारोबार करते थे। सिन्हा का नाम ट्रैक्टर स्कैम में भी आया है। कोड़ा की सोहबत में दोनों करोड़ों-अरबों का हिसाब रखने लगे। उनके मातहत एक विशाल बिजनस साम्राज्य फैलने लगा। देश-विदेश में बड़ी-बड़ी डीलें उनके नाम पर होने लगीं।
बस पत्नी के सामने झुके: रांची में इस दोस्ती के चर्चे रहे हैं। बताया जाता है कि कोड़ा के सरकारी आवास से तमाम अफसरों के चले जाने के बाद तीनों के बीच आधी रात तक बैठक चलती रहती थी। 2007 में असेंबली में यह मामला उठा और बिना हिचके कोड़ा ने कहा, हां, वे मेरे दोस्त हैं। लेकिन इन तमाम हलचलों के बावजूद कोड़ा ने कभी ऐसा कुछ नहीं किया कि आम लोग अचानक उनकी चर्चा करने लगें। ऐसा बस एक बार हुआ, जब 2006 में कोड़ा अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए उसके सामने झुके और कामयाब रहे। 2004 में शादी होने के चार महीने बाद पत्नी गीता उन्हें छोड़कर चली गई थीं।
पीआईएल ने बिगाड़ा खेल: कोड़ा का किस्सा कभी सामने नहीं आता, अगर दुर्गा ओरांव नाम के एक अनजाने शख्स ने हाई कोर्ट में एक पीआईएल दायर न कर दी होती। ओरांव ने कोड़ा के खिलाफ मामला बनाया और अदालत से जांच का रास्ता खुलवा लिया। ओरांव किसी सियासी जुड़ाव से इनकार करते हैं, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि वह कोड़ा के विरोधियों के लिए काम कर रहे हैं। उनका कहना है, एक ऐसा शख्स, जो नौवीं के बाद स्कूल छोड़ चुका हो, जिसकी आमदनी का कोई जरिया नजर नहीं आता हो, इतनी बड़ी कानूनी लड़ाई कैसे लड़ सकता है।
पिता ने बेटे की शादी में भी बेची शराब : कोड़ा के पिता रसिक अब भी ग्रामीण सादगी की मिसाल नजर आते हैं। अपने मवेशियों को चारा खिलाते उनकी तस्वीरें अखबारों में छपी हैं। रांची के पत्रकार बताते हैं कि कोड़ा की शादी के वक्त वे वहां शराब बेच रहे थे। जब उनसे पूछा गया कि वे मेहमानों से पैसा क्यों ले रहे हैं, तो उनका कहना था, ये मेरी शराब है, इसमें गजब की ताकत है, इसने मधु को मिनिस्टर बना दिया।
सोनाली दास और सचिन पाराशर।।
{ साभार नवभारत }०९-११-09
Ye madhu koda kya hai?? Aapko pata hai. Nahi na Pahle to yah janta ko Madhu Ki trah Mitha Mitha Shahd ka ahsass dilya. Apni loklubhawan Netagiri vaydo ke sath. Jab janta ne is par vishwas kiya to Ye kisi Yamraj Ki trah apne Koda ka istemal karte huye. Ek Ajgar ki trah bagair dakaar mare 4000 Crores Rupees aise nigla ki log to hakke bakke rah gaye. Kya ye wahi Madhu (Honey) aur Koda (Hunter) hai. Ise is trah naam diya jana chahiye Madhu koda nahi Honey & Hunter.
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